राम मन्दिर, अयोध्या

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राम मन्दिर, अयोध्या
राम मन्दिर, अयोध्या
राम मन्दिर, अयोध्या
राज्य उत्तर प्रदेश
ज़िला अयोध्या
निर्माता लार्सन एंड टुब्रो
प्रबंधक श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट
स्थापना 22 जनवरी, 2024
प्रसिद्धि श्रीराम की जन्मभूमि के रूप में
वास्तुकार सोमपुर परिवार

चन्द्रकान्त सोमपुर, निखिल सोमपुर और आशीष सोमपुर

निर्माण शैली नागर शैली
शिलान्यास 5 अगस्त, 2020
मूर्तिकार अरुण योगीराज (मैसूर), गणेश भट्ट और सत्यनारायण पांडे
मंदिर क्षेत्रफल 2.77 एकड़
मंदिर आयाम लंबाई- 380 फीट, चौड़ाई- 250 फीट, ऊँचाई- 161 फीट
परियोजना प्रबंधन कंपनी टाटा कंसल्टिंग इंजीनियर्स लिमिटेड
डिज़ाइन सलाहकार आईआईटी चेन्नई, आईआईटी बॉम्बे, आईआईटी गुवाहाटी, सीबीआरआई रुड़की, एसवीएनआईटी सूरत, एनजीआरआई हैदराबाद
अद्यतन‎

राम मन्दिर (अंग्रेज़ी: Ram Mandir) विश्व का प्रसिद्ध मन्दिर है जो भारत के उत्तर प्रदेश राज्य की धार्मिक नगरी अयोध्या में स्थित है। यह प्रसिद्ध मन्दिर भगवान श्रीराम को समर्पित है। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 22 जनवरी, 2024 को मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के पवित्र कार्यक्रम को पूरा किया था। परंपरागत नागर शैली में तैयार किये गए इस मंदिर की सुन्दरता देखने योग्य है। राम मन्दिर की देखरेख 'श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट' द्वारा की जा रही है। हिन्दू मान्यानुसार यह मन्दिर राम जन्मभूमि स्थल पर स्थित है, जो हिन्दू धर्म के मुख्याराध्य श्रीराम का पौराणिक जन्मस्थान है। 5 अगस्त, 2020 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राम मन्दिर के निर्माणारम्भ हेतु भूमि पूजन किया था। इसके बाद 22 जनवरी, 2024 को उन्होंने राम मन्दिर प्राण प्रतिष्ठा (अभिषेक) के अनुष्ठान में मुख्य यजमान निभाया।

यह मंदिर 70 एकड़ में बना है। श्रद्धालु पूर्व दिशा से 32 सीढ़ियां चढ़कर सिंहद्वार से मंदिर में प्रवेश कर सकेंगे। इस मंदिर की नींव को बनाने में 2587 जगहों की मिट्टी का इस्तेमाल किया गया है। यह राम मंदिर भगवान राम से जुड़ी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत को दर्शाता है और हिंदुओं के लिए अत्यधिक सांस्कृतिक और धार्मिक महत्त्व को प्रदर्शित करता है। मंदिर में श्रीराम की जो मूर्ति है, उसके मूतिकार अरुण योगीराज (मैसूर), गणेश भट्ट और सत्यनारायण पांडे हैं।

विशेषताएँ

राम मन्दिर की निम्न विशेषताएँ हैं-

  • मंदिर परंपरागत नागर शैली में बनाया गया है। मंदिर की लंबाई (पूर्व से पश्चिम) 380 फुट, चौड़ाई 250 फुट और ऊंचाई 161 फुट है। वहीं 3 मंजिला मंदिर में प्रत्येक मंजिल की ऊंचाई 20 फुट जहां कुल 392 खंभे और 44 द्वार बनाये गए हैं।[1]
  • राम मंदिर ट्रस्ट के मुताबिक मुख्य गर्भगृह में प्रभु श्रीराम का बालरूप (श्रीरामलला सरकार का विग्रह) और प्रथम तल पर श्रीराम दरबार बनाया गया है। मंदिर में पूर्व दिशा से 32 सीढ़ियां चढ़कर सिंहद्वार से प्रवेश किया जा सकेगा।
  • मंदिर के 70 एकड़ क्षेत्र में से 70 प्रतिशत क्षेत्र हमेशा हरा-भरा रहेगा। वहीं मंदिर में लोहे का उपयोग नहीं किया गया है और न ही धरती के ऊपर कंक्रीट बिछाई गयी है।
  • मंदिर में 5 मंडप बनाये गए हैं, जिनके नाम इस प्रकार हैं-
  1. नृत्य मंडप
  2. रंग मंडप
  3. सभा मंडप
  4. प्रार्थना मंडप
  5. कीर्तन मंडप
  • मंदिर के खंभों व दीवारों में देवी-देवता तथा देवांगनाओं की मूर्तियां उकेरी गयी हैं जो मंदिर की खूबसूरती को और बढ़ा देती हैं। दिव्यांगजन एवं वृद्धों के लिए मंदिर में रैम्प व लिफ्ट की व्यवस्था की गयी है।
  • राम मंदिर के चारों ओर आयताकार परकोटा रहेगा। चारों दिशाओं में इसकी कुल लंबाई 732 मीटर तथा चौड़ाई 14 फीट है। परकोटा के चारों कोनों पर सूर्यदेव, मां भगवती, गणपतिभगवान शिव को समर्पित चार मंदिरों का निर्माण किया गया है। वहीं उत्तरी भुजा में मां अन्नपूर्णा, व दक्षिणी भुजा में हनुमान जी का मंदिर है।
  • मंदिर के समीप पौराणिक काल का सीताकूप विद्यमान रहेगा। मंदिर परिसर में प्रस्तावित अन्य मंदिर- महर्षि वाल्मीकि, महर्षि वशिष्ठ, महर्षि विश्वामित्र, महर्षि अगस्त्य, निषादराज, माता शबरी व ऋषिपत्नी देवी अहिल्या को समर्पित होंगे।
  • दक्षिण पश्चिमी भाग में नवरत्न कुबेर टीला पर भगवान शिव के प्राचीन मंदिर का जीर्णो‌द्धार किया गया है और वहां जटायु की प्रतिमा की स्थापना की गई है।
  • मंदिर के नीचे 14 मीटर मोटी रोलर कॉम्पेक्टेड कंक्रीट बिछाई गई है। इसे कृत्रिम चट्टान का रूप दिया गया है। मंदिर को धरती की नमी से बचाने के लिए 21 फीट ऊंची प्लिंथ ग्रेनाइट से बनाई गई है। मंदिर परिसर में स्वतंत्र रूप से सीवर ट्रीटमेंट प्लांट, वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट, अग्निशमन के लिए जल व्यवस्था तथा स्वतंत्र पॉवर स्टेशन का निर्माण किया गया है, ताकि बाहरी संसाधनों पर न्यूनतम निर्भरता रहे।[1]
  • 25 हजार क्षमता वाले एक दर्शनार्थी सुविधा केंद्र का निर्माण किया जा रहा है, जहां दर्शनार्थियों का सामान रखने के लिए लॉकर व चिकित्सा की सुविधा रहेगी।
  • मंदिर परिसर में स्नानागार, शौचालय, वॉश बेसिन, ओपन टैप्स आदि की सुविधा भी रहेगी। मंदिर का निर्माण पूर्णतया भारतीय परम्परानुसार व स्वदेशी तकनीक से किया जा रहा है। पर्यावरण-जल संरक्षण पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है।
  • मंदिर के गर्भगृह में लगे सोने के दरवाजे की ऊंचाई करीब 12 फीट है, जबकि इसकी चौड़ाई 8 फीट है। मंदिर में कुल 46 दरवाजों में से 42 पर 100 किलोग्राम सोने की परत चढ़ाई गई है।
  • मंदिर के 2000 फीट नीचे गाड़े गए टाइम कैप्सूल में मंदिर, भगवान राम और अयोध्या के बारे में प्रासंगिक जानकारी अंकित की गई है। ऐसा आने वाली पीढ़ियों के लिए मंदिर की पहचान संरक्षित करने के मकसद से किया गया है।
  • राम मंदिर को बनवाने के लिए हजारों लोगों ने अपनी-अपनी क्षमता और आस्था के मुताबिक दान किया है। मंदिर के लिए कुल 3200 करोड़ रुपये दान में मिला है।

इतिहास

अयोध्या का राम जन्मभूमि देश के सबसे लंबे चलने वाले केस में एक रहा। राम जन्मभूमि का इतिहास बहुत पुराना है। सन 1528 से लेकर 2023 तक श्रीराम जन्मभूमि के पूरे 495 वर्षों के इतिहास में कई मोड़ आए। इसमें 9 नवंबर 2019 का दिन बेहद खास रहा, जब 5 जजों की संवैधानिक बेंच ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया।[2]

  • 1528: मुग़ल बादशाह बाबर के सिपहसालार मीर बाकी ने विवादित जगह पर मस्जिद का निर्माण कराया। इस स्थान को लेकर हिंदू समुदाय के लोगों द्वारा यह दावा किया कि यहां भगवान राम की जन्मभूमि है और इस स्थान पर एक प्राचीन मंदिर भी था। हिंदू पक्ष के लोगों ने मस्जिद में बने तीन गुंबदों में एक गुंबद के नीचे भगवान राम का जन्मस्थान बताया।
  • 1853-1949: श्रीराम जन्मभूमि पर जहां मस्जिद का निर्माण किया गया, वहां के आसपास के कई स्थानों पर पहली बार 1853 में दंगे हुए। इसके बाद 1859 में अंग्रेजी प्रशासन ने विवादित स्थान के पास बाड़ लगा दी और मुस्लिमों को ढांचे के अंदर वहीं हिंदुओं को बाहर चबूतरे के पास पूजा करने की इजाजत दे दी।
  • 1949: असली विवाद 23 सितंबर 1949 को तब हुआ, जब मस्जिद में भगवान राम की मूर्तियां मिलीं। इसे लेकर हिन्दू समुदाय के लोग कहने लगे कि यहां साक्षात भगवान राम प्रकट हुए हैं। वहीं मुस्लिम समुदाय के लोगों ने आरोप लगाया कि किसी ने चुपके से यहां मूर्तियां रखीं। ऐसे में यूपी सरकार ने तुरंत मूर्तियों को वहां से हटाने के आदेश दिए। लेकिन जिला मैजिस्ट्रेट (डीएम) के.के. नायर ने धार्मिक भावना को ठेस पहुंचने और दंगों भड़कने के डर से इस आदेश में असमर्थता जताई। इस तरह से सरकार द्वारा इसे विवादित ढांचा मानकर ताला लगा दिया गया।
  • 1950: फैजाबाद के सिविल कोर्ट में दो अर्जी दाखिल हुई। इसमें एक तो विवादित भूमि पर रामलला की पूजा की इजाजत और दूसरी मूर्ति रखे जाने की इजाजत पर थी।
  • 1961: यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड ने एक अर्जी दाखिल की और विवादित भूमि पर पजेशन और मूर्तियों को हटाने की मांग की।
  • 1984: 1 फरवरी 1986 में यूसी पांडे की याचिका पर फैजाबाद के जिला जज के.एम. पांडे ने हिंदुओं को पूजा करने की इजाजत दे दी और ढांचे पर लगे ताले को हटाने का आदेश दिया।
  • 1992: 6 दिसंबर 1992 को वीएचपी और शिवसेना समेत कई हिंदू संगठन के लाखों कार्यकर्ताओं ने विवादित ढांचे को गिरा दिया। इससे देशभर में सांप्रदायिक दंगे हुए।
  • 2002: गोधरा ट्रेन जो कि हिन्दू कार्यकर्ताओं को लेकर जा रही थी, उसमें आग लगा दी गई और करीब 58 लोग मारे गए। इसे लेकर गुजरात में भी दंगे की आग भड़क गई और दो हजार से अधिक लोग इस दंगे में मारे गए।
  • 2010: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने फैसले पर विवादित भूमि को सुन्नी वक्फ बोर्ड, रामलला विराजमान और निर्मोही अखाड़ा के बीच तीन बराबर हिस्सों में बांटने का आदेश दिया।
  • 2011: अयोध्या विवाद पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी।
  • 2017: सुप्रीम कोर्ट ने आउट ऑफ कोर्ट सेटलमेंट का आह्वान किया और भाजपा के कई नेताओं पर आपराधिक साजिश आरोप बहाल किए गए।
  • 2019: 8 मार्च 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने मामले को मध्यस्थता के लिए भेजा और 8 सप्ताह के भीतर कार्यवाही को खत्म करने के आदेश दिए। इसके बाद 1 अगस्त को मध्यस्थता पैनल ने रिपोर्ट पेश की और 2 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट मध्यस्थता पैनल मामले में समाधान निकालने कामयाब नहीं रहे। इस बीच सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या मामले को लेकर प्रतिदिन सुनाई होने लगी और 16 अगस्त 2019 को सुनवाई पूरी होने के बाद फैसला सुरक्षित रखा गया। 9 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की बेंच ने श्रीराम जन्मभूमि के पक्ष में फैसला सुनाया। वहीं 2.77 एकड़ विवादित भूमि हिंदू पक्ष को मिली और मस्जिद के लिए अलग से 5 एकड़ जमीन मुस्लिम पक्ष को मुहैया कराने का आदेश दिया गया।
  • 2020: 25 मार्च 2020 को पूरे 28 साल बाद रामलला टेंट से निकलकर फाइबर मंदिर में शिफ्ट हुए और इसके बाद 5 अगस्त को भूमि पूजन किया गया।
  • 2023: अब एक बार फिर से राम की जन्मभूमि अयोध्या में रामलला का भव्य मंदिर बनकर तैयार हुआ।
  • 2024: करीब 500 साल के लंबे इंतजार के बाद आखिरकार 22 जनवरी 2024 को श्रीराम जन्मभूमि अयोध्या में भव्य राम मंदिर का अभिषेक समारोह आयोजित किया गया। यह सनातन प्रेमियों के लिए भक्ति, खुशी और उत्साह का पल था। 22 जनवरी को राम मंदिर के अभिषेक व प्राण प्रतिष्ठा के बाद 24 जनवरी 2024 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा मंदिर का उद्घाटन किया गया।[2]

निर्माण शैली

अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण वास्तुकला की नागर शैली में किया गया है। उत्तर भारत की मंदिर वास्तुकला की शैली को नागर शैली के नाम से जाना जाता है। दक्षिण भारत के विपरीत नागर शैली में आमतौर पर विस्तृत दीवारें या प्रवेश द्वार नहीं होते हैं। इन मंदिरों में गर्भगृह के सामने मंडपों का निर्माण किया जाता है। जबकि शुरुआती मंदिरों में सिर्फ एक मीनार या शिखर था, लेकिन बाद के मंदिरों में कई शिखर थे। गर्भगृह हमेशा सबसे ऊंचे शिखर के नीचे स्थित होता है। हिन्दू मंदिर के मूल रूप में निम्न शामिल हैं-

  • ‘गर्भगृह’ जो एक प्रवेश द्वार के साथ एक छोटा कक्ष था, समय के साथ एक बड़े कक्ष में विकसित हुआ। गर्भगृह में देवता की मूर्ति स्थापित की जाती है।
  • मंदिर का प्रवेश द्वार जो एक स्तंभयुक्त कक्ष है, बड़ी संख्या में उपासकों के लिए स्थान है, इसे एक ‘मंडप’ के रूप में जाना जाता है।
  • ‘शिखर’ आकार में पर्वत जैसा होता है, जो उत्तर भारत में एक घुमावदार 'शिखर' का आकार ले सकता है और इसे दक्षिण भारत में 'विमान' कहा जाता है, जो पिरामिड के आकार का होता है।
  • 'वाहन' मंदिर के मुख्य देवता का वाहन होता है जो गर्भगृह की सीध में रखा जाता है।

राम मंदिर का मूल डिज़ाइन 1988 में अहमदाबाद के सोमपुरा परिवार द्वारा तैयार किया गया था। सोमपुरा ने कम से कम 15 पीढ़ियों से दुनिया भर में 100 से अधिक मंदिरों के डिजाइन में योगदान दिया है, जिसमें सोमनाथ मंदिर भी शामिल है। मंदिर के मुख्य वास्तुकार चंद्रकांत सोमपुरा थे, उनकी सहायता उनके दो बेटे- निखिल सोमपुरा और आशीष सोमपुरा ने की, जो वास्तुकार भी हैं। मूल से कुछ बदलावों के साथ एक नया डिज़ाइन 2020 में सोमपुरा द्वारा तैयार किया गया था हिंदू ग्रंथों वास्तुशास्त्र और शिल्पशास्त्रों के अनुसार। मंदिर 250 फीट चौड़ा, 380 फीट लंबा और 161 फीट ऊँचा है। एक बार पूरा होने पर मंदिर परिसर दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा हिंदू मंदिर होगा। इसे नागर शैली की वास्तुकला की गुर्जर-चालुक्य शैली में डिज़ाइन किया गया है, जो एक प्रकार की हिंदू मंदिर वास्तुकला है जो मुख्य रूप से उत्तरी भारत में पाई जाती है। मंदिर का एक मॉडल 2019 में प्रयाग कुंभ मेले के दौरान प्रदर्शित किया गया था। मंदिर की मुख्य संरचना तीन मंजिला ऊंचे चबूतरे पर बनाई जाएगी। इसमें गर्भगृह के मध्य में और प्रवेश द्वार पर पांच मंडप होंगे। एक तरफ तीन मंडप कुडु, नृत्य और रंग के होंगे और दूसरी तरफ के दो मंडप कीर्तन और प्रार्थना के होंगे। नागर शैली में मंडपों को शिखरों से सजाया जाता है।

वास्तुकार

अयोध्या में भव्य राम मंदिर, जिसका उद्घाटन 22 जनवरी, 2024 को हुआ, एक चमत्कार है; जो पारंपरिक भारतीय विरासत को आधुनिक वैज्ञानिक तकनीकों के साथ मिश्रित करता है। प्रसिद्ध वास्तुकार चन्द्रकान्त बी सोमपुरा और उनके बेटे आशीष द्वारा डिजाइन किया गया यह ऐतिहासिक मंदिर शहर में 2.7 एकड़ भूमि पर गर्व से खड़ा है। अयोध्या राम मंदिर के मुख्य वास्तुकार चंद्रकांत सोमपुरा, अहमदाबाद स्थित मंदिर वास्तुकारों के एक प्रतिष्ठित वंश से हैं। कई पीढ़ियों से चली आ रही पारिवारिक विरासत के साथ सोमपुरा ने 200 से अधिक मंदिरों का डिज़ाइन और निर्माण करके भारतीय मंदिर वास्तुकला पर एक अमिट छाप छोड़ी है। उनकी कृतियों में गुजरात में सोमनाथ मंदिर, मुंबई में स्वामीनारायण मंदिर, गुजरात में अक्षरधाम मंदिर परिसर और कोलकाता में बिड़ला मंदिर जैसी प्रतिष्ठित संरचनाएं उल्लेखनीय हैं।

स्थापत्य

अयोध्या राम मंदिर नागर वास्तुकला की भव्यता का एक जीवंत प्रमाण है, एक शैली जिसकी जड़ें पांचवीं शताब्दी में हैं। मंदिर की जटिल नक्काशी, राजसी शिखर और पवित्र गर्भगृह भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता को श्रद्धांजलि देते हैं। यह डिज़ाइन भगवान राम के पूजनीय निवास के सार को दर्शाता है, जो आध्यात्मिकता और वास्तुशिल्प प्रतिभा का सामंजस्यपूर्ण मिश्रण बनाता है। जैसे-जैसे राम मंदिर का भव्य प्रतिष्ठा समारोह नजदीक आ रहा था, चंद्रकांत सोमपुरा का नाम भारतीय इतिहास के पन्नों में अंकित हो रहा था। अयोध्या राम मंदिर के मुख्य वास्तुकार के रूप में उनके समर्पण और विशेषज्ञता ने एक दिव्य संरचना तैयार की है जो वास्तुशिल्प सीमाओं से परे है। उनकी दृष्टि की परिणति न केवल एक पवित्र पूजा स्थल का वादा करती है, बल्कि एकता, सांस्कृतिक गौरव और स्थायी विश्वास का प्रतीक भी है जो भारत की विविध टेपेस्ट्री में प्रतिध्वनित होती है।

इमारत में कुल 366 कॉलम होंगे। स्तंभों में प्रत्येक में 16 मूर्तियाँ होंगी जिनमें शिव के अवतार, 10 दशावतार, 64 चौसठ योगिनियाँ और देवी सरस्वती के 12 अवतार शामिल होंगे। सीढ़ियों की चौड़ाई 16 फीट होगी। विष्णु को समर्पित मंदिरों के डिज़ाइन के अनुसार, गर्भगृह अष्टकोणीय होगा। मंदिर 10 एकड़ में बनाया गया है और 57 एकड़ भूमि को एक प्रार्थना कक्ष, एक व्याख्यान कक्ष, एक शैक्षिक सुविधा और एक संग्रहालय और एक कैफेटेरिया सहित अन्य सुविधाओं के साथ एक परिसर में विकसित किया गया है। मंदिर समिति के अनुसार, 70,000 से अधिक लोग इस स्थल का दौरा कर सकेंगे। लार्सन एंड टुब्रो ने मंदिर के डिजाइन और निर्माण की निःशुल्क देखरेख करने की पेशकश की थी और वह इस परियोजना का ठेकेदार बन गया था।

मंदिर का वास्तुशिल्प आयाम

आयाम- मंदिर एक प्रभावशाली संरचना है, जो 161 फीट ऊंची, 235 फीट चौड़ी और कुल 360 फीट लंबी है। इसमें लगभग 57,000 वर्ग फुट का निर्मित क्षेत्र शामिल है।
स्थापत्य शैली- प्राचीन भारत की विशिष्ट मंदिर-निर्माण शैलियों में से एक, नागर शैली का अनुसरण करते हुए, मंदिर आधुनिक तकनीक को शामिल करते हुए सावधानीपूर्वक वैदिक अनुष्ठानों का पालन करता है।

पारंपरिक सामग्री

मंदिर को गुप्त काल के दौरान उभरी नागर शैली का पालन करते हुए ग्रेनाइट, बलुआ पत्थर और संगमरमर का उपयोग करके बनाया गया है। विशेष रूप से इसके निर्माण में किसी भी सीमेंट या मोर्टार का उपयोग नहीं किया गया था, जो दीर्घायु सुनिश्चित करता है। स्टील या लोहे के बजाय मंदिर में ग्रेनाइट और बलुआ पत्थर के मिश्रण से एक ताला और चाबी तंत्र शामिल है, जो 1,000 साल तक का जीवनकाल प्रदान करता है।

वैज्ञानिक योगदान

इंजीनियरिंग उत्कृष्टता: निर्माण में शीर्ष भारतीय वैज्ञानिक शामिल थे, जिनमें 'केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान' (सीबीआरआई) के निदेशक प्रदीप कुमार रामंचरला शामिल थे, जो इस परियोजना में सक्रिय रूप से योगदान दे रहे थे।
इसरो टेक्नोलॉजीज: मंदिर में 'भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन' (इसरो) की प्रौद्योगिकियों को शामिल किया गया है, जो पारंपरिक वास्तुकला और आधुनिक वैज्ञानिक प्रगति का मिश्रण प्रदर्शित करता है।
अभिनव समारोह: सीबीआरआई और 'भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान' (आईआईए) के वैज्ञानिकों द्वारा डिजाइन किया गया एक विशेष ‘सूर्य तिलक’ दर्पण, सूरज की रोशनी का उपयोग करके, हर रामनवमी के दिन दोपहर में भगवान राम के औपचारिक अभिषेक के लिए इस्तेमाल किया जाएगा।

रामलला के आभूषण

अयोध्या में भव्य राम मंदिर में विराजमान रामलला के लिए आभूषण अध्यात्म रामायण, वाल्मीकि रामायण, रामचरितमानस और अलवंदर स्तोत्रम जैसे ग्रंथों पर लंबी रिसर्च और स्टडी के बाद तैयार किए गए हैं। ये जानकारी मंदिर ट्रस्ट की तरफ से दी गई है। रामलला के आभूषण बदायूं, उत्तर प्रदेश के सर्राफ हरसहायमल श्यामलाल ज्वेलर्स की लखनऊ शाखा ने तैयार किए हैं। अयोध्या के कवि यतेंद्र मिश्रा के निर्देश पर रामलला के गहने तैयार किए गए हैं।[3] भगवान राम के शीष पर मुकुट या किरीट धारण है। कानों में कुंडल, गले में कंठा, ह्रदय पर कौस्तुभ मणि, नाभिकमल के ऊपर पदिक, वैजयन्ती या विजयमाल, कमर में कांची या करधनी, भुजबंध या अंगद, कंकण या कंगन, मुद्रिका, पैरों में छड़ा या पैजनिया, हाथों में धनुष, गले में माला, मस्तक पर तिलक, चरणों के नीचे कमल, पांच साल के रामलला के खेलने के लिए चांदी के खिलौने, भगवान के प्रभा मंडल के ऊपर छत्र आदि मौजद हैं।

शीष पर मुकुट या किरीट

भगवान रामलला ने उत्तर भारतीय परंपरा के मुताबिक सोने से बना मुकुट पहना है, जिस पर माणिक्य, पन्ना, हीरे जड़े हुए हैं। मुकुट के बीच में भगवान सूर्य विराजमान हैं। मुकुट के दायी तरफ मोतियों की लड़ियां लगी हैं।

कुंडल

रामलला के कानों में खूबसूरत कुंडल धारण किए हैं। इसमें मोर की आकृतियां बनी हैं। सोने से बने भगवान के कुंडलों में हीरे, माणिक्य और पन्ना जड़े गए हैं।

कण्ठा

गले में रत्नों से जड़ा अर्द्धचंद्राकार कंठा पहना हुआ है। इसे मंगल का विधान रचते फूल अर्पित किए गए हैं। इसके बीच में सूर्य की आकृति बनी है। सोने से बने इस कण्ठे में हीरे, माणिक्य और पन्ना जड़ा गया है। इसके नीचे पन्ने की लड़ियां लगाई गई हैं।

ह्रदय पर कौस्तुभ मणि

भगवान ने कौस्तुभ मणि धारण किया है। इसको बड़े माणिक्य और हीरों से सजाया गया है। शास्त्रों के मुताबिक भगवान विष्णु और उनके अवतार ह्रदय में कौस्तुभ मणि धारण करते हैं, इसीलिए रामलला को भी इसे धारण कराया गया है।[3]

पदिक

रामलला के गले के नीचे नाभिकमल के ऊपर एक हार धारण कराया गया है। देव अलंकरण में इसका खास महत्व है। पदिक पांच लड़ियों वाला हीरे और पन्ने का ऐसा पंचलड़ा है, जिसके नीचे एक बड़ा सा सुंदर और जड़ाऊ पेंडेंट लगाया गया है।

वैजयंती या विजयमाल

वैजयंती रामलला को पहनाया जाने वाला सोने से बना तीसरा और सबसे लंबा हार है। इसमें जगह-जगह माणिक्य जड़े गए हैं। इसे भगवान को विजय के प्रतीक के रूप में पहनाया जाता है, जिसमें वैष्णव परंपरा के सभी मंगल चिन्ह, सुदर्शन चत्र, पद्यपुष्प, शंख और मंगल कलश बना हुआ है। इसमें पांच तरह के देवों के पसंदीदा फूलों को भी खूबसूरती से सजाया गया है, ये कमल, चंपा, पारिजात, कुंद और तुलसी हैं।

कांची या करधनी

रामलला को कमर में रत्नों से जड़ी करधनी धारण कराई गई है। सोने से बनी करधनी में हीरे, माणिक्य, मोती, पन्ना जड़े गए हैं। पवित्रता के तौर पर इसमें पांच घंटियां भी लगाई गई हैं। इन घंटियों पर पन्ना, मोती, माणिक्य की लड़ियां लगाई गई हैं।

भुजबंद या अंगद

भगवान रामलला को दोनों भुजाओं में सोने और रत्नों से जड़े भुजबंद पहनाए गए हैं।

कंकण, कंगन

रामलला के दोनों हाथों में हीरे, मोती जैसे रत्नों से जड़े खूबसूरत कंगन पहनाए गए हैं।

मुद्रिका

रामलला दाएं और बाएं, दोनों हाथों में मुद्रिकाएं धारण की हुई हैं। इन अंगूठियों में रत्न जड़े हैं और मोती लटक रहे हैं।

छड़ा और पैजनियां

पैरों में छड़ा और पैजनिया पहनाए गए हैं। भगवान के पैरों की सुंदरता बढ़ा रही पायलें सोने की हैं।

धनुष

रामलला के बाएं हाथ में सोने का धनुष पहनाया गया है। इस धनुष को मोती, माणिक्य और पन्ने की लड़ियों से सजाया गया है। वहीं हाहिने हाथ मे सोने का बाण भगवान धारण किए हुए हैं।

वनमाला

गले में रंग-बिरंगे फूलों की आकृतियों वाली वनमाला पहनाई गई है। इसको हस्तशिल्प के लिए समर्पित शिल्पमंजरी संस्था ने बनाया है।

तिलक

भगवान रामलला के मस्तक पर मंगल तिलक पहनाया गया है। इस तिलक में हीरे और माणिक्य जड़े हुए हैं।

चरणों के नीचे कमल

भगवान के चरणों के नीचे कमल शोभायमान है। इसके नीचे एक सोने की माला सजी हुई है।

खिलौने

भव्य राम मंदिर में पांच साल के रामलला विराजे हैं, तो उनके खेलने के लिए चांदी से बने खिलौने रखे गए हैं। खिलौनों में झुनझुना, हाथी, घोड़ा, ऊंट, खिलौनागाड़ी और लट्टू शामिल है।

छत्र

भगवान रामलला के प्रभा-मंडल के ऊपर सोने का छत्र लगा हुआ है।[3]

आरती

पहली आरती : सुबह 4:30 बजे- मंगला आरती, ये जगाने के लिए है।
श्रद्धालु सुबह 6:30 बजे, दोपहर 11:30 बजे और शाम 6:30 बजे की आरती में ही शामिल हो सकते हैं।
दूसरी आरती : सुबह 6:30-7:00 बजे- ये शृंगार आरती कहलाती है। इसमें यंत्र पूजा, सेवा और बाल भोग होगा।
तीसरी आरती : 11:30 बजे- राजभोग आरती (दोपहर का भोग) और शयन से पहले की आरती होगी। इसके बाद रामलला ढाई घंटे तक विश्राम करेंगे। गर्भगृह बंद हो जाएगा। इस दौरान श्रद्धालु मंदिर परिसर में घूम सकते हैं।
चौथी आरती: दोपहर 2:30 बजे। इसमें अर्चक रामलला को शयन से जगाएंगे।
पांचवीं आरती : शाम 6:30 बजे।
छठी आरती : रात 8:30-9:00 बजे के बीच। यह शयन आरती कहलाएगी। इसके बाद रामलला शयन करेंगे।

और क्या देखें

यदि अयोध्या घूमने की योजना बना रहे हैं तो राम मंदिर के अलावा अयोध्या में और भी कई जगहों पर घूमने की योजना कर सकते हैं। अयोध्या में कम बजट में भी कई स्थानों पर घूमा जा सकता है।[4]

कनक भवन

यह भवन अयोध्या के बेहतरीन और प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। ऐसा माना जाता है कि यह भवन भगवान श्रीराम से विवाह के तुरंत बाद महारानी कैकेयी द्वारा सीता को उपहार में दिया गया था। यह देवी सीता और भगवान राम का निजी महल है।

गुलाबबाड़ी

गुलाबबाड़ी शहर के सबसे सुंदर बगीचों में से एक है। एक बड़े भू-भाग में फैले इस स्थल की हरियाली लोगों को सम्मोहित करती है। अवध के तीसरे नवाब शुजा-उद-दौला और उनके परिजनों की यहां समाधि बनी हुई है। यहां शानदार मकबरा है, जो विशाल दीवारों से घिरा हुआ है। 8वीं सदी में इस बगीचे में रंगीन गुलाब की कई किस्में लगाई गई थीं।

बहू बेगम का मकबरा

अयोध्या स्थित बहू-बेगम के मकबरे को 'पूर्वांचल का ताजमहल' कहा जाता है। इसे अवध के तीसरे नवाब शुजाउद्दौला ने कई साल पहले अपनी पत्नी की याद में बनवाया था।

नागेश्वरनाथ मंदिर

ऐसा कहा जाता है कि नागेश्वरनाथ मंदिर को राम के पुत्र कुश ने बनवाया था। माना जाता है जब कुश सरयू नदी में नहा रहे थे तो उनका बाजूबंद खो गया था। बाजूबंद एक नाग कन्या को मिला, जिसे कुश से प्रेम हो गया। वह शिव भक्त थी। कुश ने उसके लिए यह मंदिर बनवाया था।

तुलसी स्मारक भवन

तुलसी स्मारक महान संत कवि गोस्वामी तुलसीदास को समर्पित है। नियमित रूप से यहां प्रार्थना, भक्ति संगीत और धार्मिक प्रवचन आयोजित होते हैं। परिसर में स्थित 'अयोध्या शोध संस्थान' के पास गोस्वामी तुलसीदास पर साहित्यिक रचनाओं का एक बड़ा भंडार है।

हनुमानगढ़ी

अयोध्या का हनुमानगढ़ी काफी प्रसिद्ध है। यहां एक गुफ़ा है जिसको लेकर कहा जाता है कि यहां हनुमान विराजते हैं। यहां जाकर काफी शांति का अहसास होता है।

सरयू घाट

अयोध्या में राम मंदिर दर्शन के बाद सरयू घाट पर जरूर जाना चाहिए। यह सरयू नदी के तट पर मौजूद है। रामनवमी, दीपावली, विजयादशमी जैसे पर्व पर यहां हजारों की संख्या में लोग आते हैं।

मोती महल

यह महल फैजाबाद में एक स्मारक है, जिसका ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व है। मोती महल को अक्सर 'पर्ल पैलेस' कहा जाता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 क्या है अयोध्या के 'राम मंदिर' की मुख्य विशेषताएं (हिंदी) jagranjosh.com। अभिगमन तिथि: 14 फ़रवरी, 2024।
  2. 2.0 2.1 जानिए राम जन्मभूमि का इतिहास (हिंदी) prabhasakshi.com। अभिगमन तिथि: 14 फ़रवरी, 2024।
  3. 3.0 3.1 3.2 रामलला ने सिर से पांव तक पहने हैं कौन-कौन से 17 आभूषण? (हिंदी) ndtv.in। अभिगमन तिथि: 14 फ़रवरी, 2024।
  4. अयोध्या में राम मंदिर घूमने के बाद इन जगहों का करें प्लान (हिंदी) zeebiz.com। अभिगमन तिथि: 14 फ़रवरी, 2024।

बाहरी कड़ियाँ

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