है वही घर, वो ही चीज़ें
वो ही शब, वो ही सहर
है नहीं तो बस वो नहीं
जिससे घर लगता था घर
हमसे ये दीवार, आँगन कोई बोलेगा नहीं
चाँद-सा चेहरा कभी अब द्वार खोलेगा नहीं
मेघ जब बरसा करेंगे
हम बहुत तरसा करेंगे
अब तो हर इक मोड़ पर
है नहीं तो बस वो नहीं…
जब दु;खों की धूप थी तो कुछ नहीं था हाथ में
अब सुखों की छाँव है तो तुम नहीं हो साथ में
हो गए हम कितने रीते
बिन तुम्हारे कैसे बीते
अब ये जीवन का सफ़र
है नहीं तो बस वो नहीं…
अब जिएँगे उम्र भर हम दर्द की परछाईं में
हँस तो लेंगे साथ सबके, रोएँगे तनहाई में
लोग तो सब जान लेंगे
दर्द को पहचान लेंगे
तुम रहोगे बेखबर
है नहीं तो बस वो नहीं…
ख्वाब आँखों में सँजोकर काश हम सोते नहीं
जिन्दगी तेरी कसम तुझको यूँ खोते नहीं
अब तो बस आहें भरेंगे
और तुझे ढूँढा करेंगे
तारों में हम रात भर
है नहीं तो बस वो नहीं…
कोई कहने को सफ़र यूँ अपना पूरा कर चला
पर किसी को उम्र भर को, वो अधूरा कर चला
कौन सी दुनिया है आख़िर
जिस तरफ़ जामर मुसाफ़िर
आते कब हैं लौटकर
है नहीं तो बस वो नहीं…
या तो तुम आते नहीं यूँ मेरे घर-संसार में
या कि फिर जाते नहीं यूँ छोड़कर मँझधार में
अब न आहों में असर है
और कठिन कितना सफ़र है
उसपे तनहा रहगुज़र
है नहीं तो बस वो नहीं…
हम सहेजे ही रहेंगे हर निशानी उम्र भर
साथ में चलती रहेगी इक कहानी उम्र भर
तुम कहीं पर भी रहोगे
पर सदा मेरी सुनोगे
सुन रहे हो हमसफ़र !
है नहीं तो बस वो नहीं…
मैं अपने दिलपे पत्थर रखके बस तुमसे कहूँगा