इक मुसलसल सफ़र में रहता हूँ ये मैं किसके असर में रहता हूँ मुझको ये बेखुदी कहाँ लाई अब मै सबकी नज़र में रहता हूँ जब भी सोचूँ मैं कुछ तुझे लेकर एक अन्जाने डर में रहता हूँ देवता होता तो निकल पाता आदमी हूँ, भँवर में रहता हूँ घर की दुनिया से कुछ नही अच्छा घर से बाहर भी घर में रहता हूँ