सदस्य:गोविन्द राम/sandbox
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इंद्रकील हिमालय के उतर में एक छोटा सा पर्वत।
'हिमवन्तमतिक्रम्य गंधमादनमेव च, अत्यक्रामत् स दुर्गाणि दिवारात्रमतिन्द्रत:। इंद्रकीलं समासाद्यततोऽतिष्ठद् धनंजय:'।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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