आम्रकूट

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आम्रकूट को अमरकंटक भी कहते हैं। कई विद्वानों का मत है कि मेघदूत[1] में वर्णित अमरकूट ही आम्रकूट है।

'त्वामासारप्रशमितवनोपप्लवं साधु मूर्ध्ना, वक्ष्यत्यध्वश्रमपरिगतं सानुमानाम्रकूट:' मेघ0, पूर्वमेघ 17 ।

  • उपर्युक्त पद्य में कालिदास ने आम्रकूट नामक पर्वत का वर्णन मेघ की रामगिरि से अलका तक की यात्रा के प्रसंग में नर्मदा से पहले ही अर्थात् उससे पूर्व की ओर किया है। जान पड़ता है कि यह वर्तमान पंचमढ़ी अथवा महादेव की पहाड़ियों (सतपुड़ा पर्वत) का कोई भाग है।
  • कई विद्वानों के मत में रींवा से 86 मील दूर स्थित अमरकूट ही आम्रकूट है। किंतु यह स्पष्ट ही है कि इस पहाड़ का वास्तविक नाम अमरकूट न होकर आम्रकूट ही है क्योंकि कालिदास ने अगले (पूर्वमेघ 18) छंद में इस पर्वत को आम्रवृक्षों से आच्छादित बताया है- 'दन्नोपान्त: परिणतफलद्योतिभि: काननाम्रै: त्वययारूढे शिखरमचल: स्निग्धवेणी सवर्णे, नूनं यास्यत्यमर मिथुनप्रेक्षणीयामवस्थां मध्येश्याम: स्तन इव भुवश्शेषविस्तारपांडु:'।
  • संभव है नर्मदा के उद्गम अमरकंटक, अमरकूट और आम्रकूट नामों में परस्पर संबंध हो और एक ही पर्वत-शिखर के ये नाम हों। निश्चय ही चित्रकूट आम्रकूट से भिन्न है क्योंकि चित्रकूट का वर्णन कालिदास ने पूर्वमेघ, 19 में पृथक् रूप से किया है।


इन्हें भी देखें: अमरकंटक, अमरकूट, कालिदास एवं मेघदूत

टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

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