जयपुर पर्यटन

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जयपुर पर्यटन
आमेर का क़िला जयपुर
आमेर का क़िला जयपुर
विवरण जयपुर राजस्थान राज्य की राजधानी है। यहाँ के भवनों के निर्माण में गुलाबी रंग के पत्थरों का उपयोग किया गया है, इसलिए इसे 'गुलाबी नगर' भी कहते हैं।
राज्य राजस्थान
ज़िला जयपुर ज़िला
निर्माता राजा जयसिंह द्वितीय
स्थापना सन 1728 ई. में स्थापित
भौगोलिक स्थिति उत्तर- 26.9260°, पूर्व- 75.8235°
प्रसिद्धि कराँची का हलवा
कब जाएँ सितंबर से मार्च
कैसे पहुँचें दिल्ली से अजमेर शताब्दी और दिल्ली जयपुर एक्सप्रेस से जयपुर पहुँचा जा सकता है। कोलकाता से हावड़ा-जयपुर एक्सप्रेस और मुम्बई से अरावली व बॉम्बे सेन्ट्रल एक्सप्रेस से जयपुर पहुँचा जा सकता है। दिल्ली से राष्ट्रीय राजमार्ग 8 से जयपुर पहुँचा जा सकता है जो 256 किलोमीटर की दूरी पर है। राजस्थान परिवहन निगम की बसें अनेक शहरों से जयपुर जाती हैं।
हवाई अड्डा जयपुर के दक्षिण में स्थित संगनेर हवाई अड्डा नज़दीकी हवाई अड्डा है। जयपुर और संगनेर की दूरी 14 किलोमीटर है।
रेलवे स्टेशन जयपुर जक्शन
बस अड्डा सिन्धी कैम्प, घाट गेट
यातायात स्थानीय बस, ऑटो रिक्शा, साईकिल रिक्शा
क्या देखें पर्यटन स्थल
क्या ख़रीदें कला व हस्तशिल्प द्वारा तैयार आभूषण, हथकरघा बुनाई, आसवन व शीशा, होज़री, क़ालीन, कम्बल आदि ख़रीदे जा सकते हैं।
एस.टी.डी. कोड 0141
गूगल मानचित्र, हवाई अड्डा
अद्यतन‎

राजस्थान पर्यटन की दृष्टि से पूरे विश्व में एक अलग स्थान रखता है लेकिन शानदार महलों, ऊँची प्राचीर व दुर्गों वाला शहर जयपुर राजस्थान में पर्यटन का केंद्र है। यह शहर चारों ओर से परकोटों (दीवारों) से घिरा है, जिस में प्रवेश के लीये 7 दरवाज़े बने हुए हैं 1876 मैं प्रिंस आफ वेल्स के स्वागत में महाराजा सवाई मानसिहं ने इस शहर को गुलाबी रंग से रंगवा दिया था तभी से इस शहर का नाम गुलाबी नगरी (पिंक सिटी) पड़ गया। यहाँ के प्रमुख भवनों में सिटी पैलेस, 18वीं शताब्दी में बना जंतर-मंतर, हवामहल, रामबाग़ पैलेस और नाहरगढ़ शामिल हैं। अन्य सार्वजनिक भवनों में एक संग्रहालय और एक पुस्तकालय शामिल है।

पर्यटन स्थल

सिटी पैलेस

सवाई जयसिंह ने जयपुर शहर की स्‍थापना करते हुये चार दीवारी का लगभग सातवां हिस्‍सा अपने निजी निवास के लिये बनवाया। राजपूत और मुग़ल स्‍थापत्‍य में बना महाराजा का यह राजकीय आवास चन्‍द्र महल के नाम से विख्‍यात हुआ। चन्‍द्र महल में प्रवेश करते ही मुबारक महल के नाम से एक चतुष्‍कोणीय महल बना हुआ है।

हवा महल

इसका निर्माण सवाई प्रताप सिंह (सवाई जयसिंह के पौत्र और सवाई माधोसिंह के पुत्र) ने 1799 ए. डी. में कराया था और श्री लाल चंद उस्‍ता इसके वास्‍तुकार थे। महल का निर्माण महाराज सवाई प्रताप सिहं ने सिर्फ़ इसलीये करवाया था ताकि रानीयाँ व राजकुमारीयाँ विशेष मोकों पर निकलने वाले जुलूस व शहर आदि को देख सकें।

चमत्कारी छतरी

गुलाबीनगर में रजवाड़ों के जमाने में बनाया हुआ एक तालाब है जिसे तालकटोरा के नाम से जाना जाता है। तालकटोरा के सामने महाराजा सवाई ईश्वरीसिंहजी की छतरी बनी हुई है। ईश्वरीसिंहजी की छतरी गुम्बज के आकार में बनी हुई है जिसके ऊपर आठ व नीचे चार कोण बने हुए हैं। छतरी चार खम्भों पर टिकी हुई है। छतरी के अंदर बहुत ही ख़ूबसूरत चित्रकारी की हुई है जिसमें बेल-पत्तियों के अलावा सात चित्र रामायण व एक चित्र महाभारत (गीता) से संबंधित हैं। इनमें स्वयं महाराजा ईश्वरी सिंह जी का चित्र दर्शाया गया है।

गोविंद देवजी का मंदिर, जयपुर

छतरी के चार खंभों पर चार परियों के चित्र भी बने हुए हैं। यहाँ एक ज्योति जलती रहती है जिसके बारे में बताया जाता है कि जब से यह छतरी बनी है तब से आज तक यह अखंड ज्योति जलती रहती है। वर्षों से चली आ रही परम्परा के अनुसार यहाँ वर्ष में दो बड़े कार्यक्रम होते हैं एक फागोत्सव और दूसरा पौष बड़ा महोत्सव। इसके अतिरिक्त जलाभिषेक, अखंड रामायण पाठ एवं छोटे-छोटे अन्य कार्यक्रम वर्ष पर्यंत होते रहते हैं।

  • महाराजा ईश्वरीसिंह जी जयपुर के महाराजा सवाई जयसिंह जी के बड़े पुत्र थे। इनका बचपन का नाम 'चीना' था। दो वर्ष की अल्पायु में ही इनके पिताजी ने इनकी देखभाल के लिए भारी राशि का बंदोबस्त किया था। महाराजा ईश्वरीसिंह जी माने हुए तांत्रिक थे। इन्होंने मात्र 7 वर्ष (1743 से 1750) तक शासन किया था। जयपुर में ईश्वरसिंह की लाट (सरगासूली) का निर्माण भी इन्होंने ही कराया था। ईश्वरीसिंह जी राधागोविन्द देवजी के अनन्य भक्त थे। विश्वासघात के शिकार हुए ईश्वरीसिंह की अंतिम संस्कार चारदीवारी के भीतर ही किया गया था।
  • भक्तों की ऐसी मान्यता है कि आज भी वे अपने सूक्ष्म शरीर से भगवान गोविन्ददेवजी की सातों झांकियों के दर्शन करते हैं। महाराजा माधोसिंहजी ने ईश्वरीसिंह जी को गया भिजवाने का विचार बनाया किंतु स्वप्न में गया भिजवाने की मना होने पर ईश्वरीसिंहजी को देवरूप में मान्यता दी। उसके बाद ईश्वरीसिंहजी की पूजा होने पर लगी। ईश्वरीसिंहजी की छतरी पर श्रद्धालुओं की आवक लगातार बनी रहती है। विशेषतौर पर रविवार की गुरुवार के दिन। छतरी पर दर्शनार्थ आए कई श्रद्धालु बताते हैं कि इस छतरी पर आकर धोक लगाने से कार्य सफल होता है तथा इकातरा बुखार एवं पीलिया की बीमारी से छुटकारा मिलता है। छतरी के दर्शनार्थ विदेशी पयर्टक भी बहुतायत में आते हैं और सुकून महसूस करते हैं। वे इस छतरी के बारे में बड़ी उत्सुकता से जानकारी करते हैं और अपनी डायरी में नोट कर ले जाते हैं। छतरी की दक्षिण दिखा में एक बहुत पुराना बड़ का विशालकाय पेड़ है जिसके नीचे महादेवजी एवं हनुमानजी का मन्दिर बना हुआ है। इनके बीच में एक पानी का नाला भी बहता रहता है।

वीथिका

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

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