विश्व विरासत दिवस

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विश्व विरासत दिवस प्रत्येक वर्ष '18 अप्रैल' को मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूनेस्को ने हमारे पूर्वजों की दी हुई विरासत को अनमोल मानते हुए और लोगों में इन्हें सुरक्षित और सम्भाल कर रखने के उद्देश्य से ही इस दिवस को मनाने का निर्णय लिया था। किसी भी राष्ट्र का इतिहास, उसके वर्तमान और भविष्य की नींव होता है। किसी भी देश का इतिहास जितना गौरवमयी होगा, वैश्विक स्तर पर उसका स्थान उतना ही ऊँचा माना जाएगा। वैसे तो बीता हुआ कल कभी वापस नहीं आता, लेकिन उस काल में बनीं इमारतें और लिखे गए साहित्य उन्हें हमेशा सजीव बनाए रखते हैं।

शुरुआत

हमारे पूर्वजों और पुराने समय की यादों को संजोकर रखने वाली इन अनमोल वस्तुओं की कीमत को ध्यान में रखकर ही संयुक्त राष्ट्र की संस्था 'युनेस्को' ने वर्ष 1983 से हर साल '18 अप्रैल' को "विश्व विरासत दिवस" मनाने की शुरुआत की थी। बीता हुआ कल यूँ तो वापस नहीं आता, किंतु अतीत के पन्नों को हमारी विरासत के तौर पर कहीं पुस्तकों तो कहीं इमारतों के रूप में संजो कर रखा गया है। हमारे पूर्वजों ने हमारे लिए निशानी के तौर पर तमाम तरह के मक़बरे, मस्जिदें, मंदिर और अन्य चीज़ों का सहारा लिया, जिनसे हम उन्हें आने वाले समय में याद रख सकें। लेकिन वक्त की मार के आगे कई बार उनकी यादों को बहुत नुकसान पहुँचा। किताबों, इमारतों और अन्य किसी रूप में सहेज कर रखी गई यादों को पहले स्वयं हमने भी नजरअंदाज किया, जिसका परिणाम यह हुआ कि हमारी अनमोल विरासत हमसे दूर होती गईं और उनका अस्तित्व भी संकट में पड़ गया। इन सब बातों को ध्यान में रखकर ही 'विश्व विरासत दिवस' की शुरुआत की गई।

इमारतों आदि की देखभाल

वक्त रहते ही हमने पूर्वजों द्वारा दी गई अपनी विरासत को संभालने की दिशा में कार्य करना शुरू कर दिया था। पुरानी हो चुकी जर्जर इमारतों की मरम्मत की जाने लगी, उजाड़ भवनों और महलों को पर्यटन स्थल बनाकर उनकी चमक को बिखेरा गया। किताबों और स्मृति चिह्नों को संग्रहालय में जगह दी गई, किंतु किसी भी विरासत को संभालकर रखना इतना आसान नहीं है। हम एक तरफ तो इन पुरानी इमारतों को बचाने की बात करते हैं तो वहीं दूसरी तरफ उन्हीं इमारतों के ऊपर अपने नाम और कई प्रकार के सन्देश आदि लिखकर उन्हें गंदा भी करते हैं। अपने पूर्वजों की दी हुई अनमोल वस्तु को संजोकर रखने की बजाय उसे खराब कर देते हैं। प्रत्येक व्यक्ति को इन धरोहर में मिली इन विरासतों का विशेष ध्यान रखना चाहिए।

कैसे मनाएँ

  1. अपने घर के आस-पास के किसी पुरातत्व स्थल या भवन पर जाएँ, जहाँ एंट्री फीस ना हो और अगर हो भी, तब भी वहाँ अवश्य घूमें।
  2. अपने बच्चों को इतिहास के बारे में बताएँ और किसी स्थल, क़िले, मक़बरे या जगह पर ले जाकर वहाँ के बारे में रोचक तथ्य बताएँ, जिससे आने वाली पीढ़ी भी हमारी संस्कृति और इतिहास से परिचित हो सके।
  3. सरकार को इस दिन किसी विशेष स्थान या व्यक्तित्व का जो भी ऐतिहासिक विरासत के तौर पर देखा जा सके, उसके संदर्भ में 'डाक टिकट' जारी करने चाहिए।
  4. पुरातत्व स्थलों पर गंदगी फैलाने वालों में जागरुकता फैलानी चाहिए ताकि वह ऐसा ना करें।


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