एकांकी

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एकांकी साहित्य की एक विधा है। एक अंक वाले नाटकों को एकांकी कहते हैं। अंग्रेज़ी के 'वन ऐक्ट प्ले' शब्द के लिए हिंदी में 'एकांकी नाटक' और 'एकांकी' दोनों ही शब्दों का समान रूप से व्यवहार होता है।

इतिहास

हिंदी साहित्य के इतिहासकार एकांकी का प्रारंभ भारतेंदु युग से मानते हैं। जयशंकर प्रसाद के 'एक घूँट' (1929ई.) से दूसरा चरण, भुवनेश्वर प्रसाद के 'कारवाँ' (1935 ई.) से तीसरा तथा डॉ. रामकुमार वर्मा के 'रेशमी टाई' (1941 ई.) संकलन से चौथे चरण की शुरूआत कही गई है। किंतु उक्त कालविभाजन में उन एकांकीकारों को सम्मिलित नहीं किया गया है, जिन्होंने 1955 ई. के आसपास लिखना प्रारंभ किया है और आज भी लिख रहे हैं।

हिंदी एकांकी का विकास

डॉ. रामकुमार वर्मा

हिंदी की लघु नाट्य परंपरा को एक नया मोड़ देने वाले डॉ. रामकुमार वर्मा आधुनिक हिंदी साहित्य में ‘एकांकी सम्राट्’ के रूप में समादृत हैं। उन्होंने हिंदी नाटक को एक नया संरचनात्मक आदर्श सौंपा। नाट्य कला के विकास की संभावनाओं के नए पाट खोलते हुए नाट्य साहित्य को जन जीवन के निकट पहुँचा दिया। नाटककार और कवि के साथ-साथ उन्होंने समीक्षक, अध्यापक तथा हिंदी साहित्येतिहास-लेखक के रूप में भी हिंदी साहित्य-सृजन में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। नाटककार के रूप में उन्होंने मनोविज्ञान के अनेकानेक स्तरों पर मानव-जीवन की विविध संवेदनाओं को स्वर दिया तो छाया वादी कवियों की कतार में खड़े होकर रहस्य और अध्यात्म की पृष्ठभूमि में अपने काव्यात्मक संस्कारों को विकसित कर रहस्यमयी जगत् के स्वप्नों में सहृदय को प्रवेश कराया। डॉ. वर्मा के साहित्यिक व्यक्तित्व को नाटककार और कवि के रूप में अधिक प्रमुखता मिली सन् 1930 में रचित ’बादल की मृत्यु’ उनका पहला एकांकी है, जो फेंटेसी के रूप में अत्यंत लोकप्रिय हुआ। भारतीय आत्मा और पाश्चात्य तकनीक के समन्वय से उन्होंने हिंदी एकांकी कला को निखार दिया। उन्होंने ऐतिहासिक और सामाजिक दो तरह के एकांकी नाटकों की सृष्टि की। ऐतिहासिक नाटकों में उन्होंने भारतीय इतिहास से स्वर्णिम पृष्ठों से नाटकों की विषय-वस्तु को ग्रहण कर चरित्रों की ऐसी सुदृढ़ रूप रेखा प्रस्तुत की जो पाठकों में उच्च चारित्रिक संस्कार भर सके और सामयिक जीवन की समस्याओं को समाधान की दिशा दे सके। उनके नाटक भारतीय संस्कृति और राष्ट्रीय उद्बोधन के स्वर बखूबी समेटे हुए हैं। गर्व के साथ वे कहते हैं, ’ऐतिहासिक एकांकियों में भारतीय संस्कृति का मेरुदंड-नैतिक मूल्यों में आस्था और विश्वास का दृष्टिकोण प्रस्तुत किया गया है।’ उनके सामाजिक एकांकी प्रेम और सेक्स की समस्याओं से संबंधित हैं। ये एकांकी मानसिक अंतर्द्वंद की आधार भूमि पर यथार्थवादी कलेवर में समाज और जीवन की वस्तु-स्थिति तक पहुँचते हैं। पर इन एकांकियों में लेखक की आदर्शवादी सोच इतनी गहरी है कि वे आदर्शवादी झोंक में यथार्थ को मनमाना नाटकीय मोड़ दे बैठते हैं। इसलिए उनके स्त्री पात्र शिक्षा और नए संस्कारों के बावजूद प्रेम और जीवन के संघर्ष में जीवन का मोह त्यागकर प्रेम के लिए उत्सर्ग कर बैठते हैं मानो उत्सर्ग या प्राणांत ही सच्चे प्रेम की कसौटी हो। आधुनिक पात्रों पर भी लेखक ने अपनी आदर्शवादी सोच को थोप दिया है।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. शर्मा, कुमुद। हिंदी एकांकी के जन्मदाता डॉ. रामकुमार वर्मा (हिंदी) अभिव्यक्ति। अभिगमन तिथि: 9 सितम्बर, 2013।

बाहरी कड़ियाँ

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