शाहगढ़, मध्य प्रदेश

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शाहगढ़ मध्य प्रदेश के सागर ज़िले की तहसील है। मध्य प्रदेश के इतिहास में इस स्थान की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। शाहगढ़ गढ़मण्डला नरेश संग्राम सिंह (मृत्यु 1541 ई.) के 52 क़िलों में से एक था।[1] यहाँ 'शिवरात्रि' के अवसर पर एक मेला लगता है, जिसमें आसपास के इलाकों से बड़ी संख्‍या में लोग आते हैं। साप्‍ताहिक हाट की परंपरा आज भी जारी है और शनिवार को कस्‍बे में हाट बाज़ार भरता है।

  • मध्य प्रदेश के शाहगढ़ को हाल ही में तहसील का दर्जा प्राप्‍त हुआ है। शाहगढ़ का बुन्देलखंड के इतिहास में महत्‍वपूर्ण स्‍थान है और यह कई बुन्देला शासकों की कर्मस्‍थली रहा है।
  • सागर ज़िले के उत्तर पूर्व में सागर-कानपुर मार्ग पर क़रीब 70 कि.मी. की दूरी पर स्थि‍त यह कस्‍बा कई ऐतिहासिक घटनाओं का साक्षी है।
  • वनाच्‍छादित उत्तुंग शैलमाला की तराई में लांच नदी के दक्षिणी किनारे पर बसे शाहगढ़ का इतिहास बुन्देलों की वीरता का महत्‍वपूर्ण साक्ष्‍य है।
  • अंग्रेज़ों ने शाहगढ़ को इसी नाम के परगने का मुख्‍यालय बनाया था। इसमें क़रीब 500 वर्ग कि.मी. में क़रीब सवा सौ गांव थे।
  • शाहगढ़ में कुछ ऐतिहासिक‍ अवशेष अभी भी हैं। यहां राजा अर्जुनसिंह द्वारा बनवाए गए दो मंदिर हैं। बड़े मंदिर में भित्ति चित्रणों की सजावट है। इसके अतिरिक्‍त यहां चार समाधियां और राज-परिवार की एक विशाल समाधि भी है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 897 |

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