हरिनाम संकीर्तन
ओडिशा में पुरी में जब चैतन्य महाप्रभु निवास कर रहे थे, तो प्रवास के दौरान रथयात्रा के दिन चैतन्य महाप्रभु कुल 7 टोलियां बनाकर हरिनाम संकीर्तन करते थे। उन टोलियों में दो-दो मृदंग, ढोल-नगाड़े बजाने वाले कीर्तनकार होते थे। सभी भक्त जगन्नाथ जी के रथयात्रा उत्सव को देखकर नाचते थे और उसी धुन में मस्त होते।
चैतन्य महाप्रभु की लीला के कारण सभी टोलियों में सम्मिलित भक्तों को ऐसा आभास होता था कि चैतन्य महाप्रभु उनकी टोली का नेतृत्व कर रहे हैं। सभी भक्तों को चैतन्य महाप्रभु के साथ नृत्य एवं हरिनाम संकीर्तन करने में आत्मिक आनंद एवं प्रभु मिलन का सुख प्राप्त होता। रथयात्रा के दौरान चैतन्य महाप्रभु रथ पर विराजमान जगन्नाथ जी के दिव्य स्वरूप को देखकर आनंद के आंसू बहा रहे थे और उनकी आंखों से अश्रुधारा निकल रही थी। उन अश्रुधाराओं में आसपास खड़े सभी भक्त भीग गए। भक्त उन अश्रुधाराओं को अमृत मान पीकर स्वयं को कृष्ण भक्ति से ओतप्रोत करने लगे। चैतन्य महाप्रभु की ऐसी दिव्य लीलाओं को देखकर जगन्नाथ भगवान का रथ रुक जाता था। चैतन्य महाप्रभु "हरि बोल, हरि बोल" के उद्घोष करते रथयात्रा में अपनी योग शक्ति का परिचय देते थे। जो भक्त चैतन्य महाप्रभु को संकीर्तन के इस महास्वरूप में देखता, वह भक्त हरि बोल, हरि बोल कह उठता।
संकीर्तन में चैतन्य महाप्रभु इतने मस्त हो जाते थे कि यदि जमीन पर गिर पड़ते तो वहां भी लोट-लोट कर प्रभु संकीर्तन और ऐसा दिव्य दृश्य प्रस्तुत करते कि मानो कोई स्वर्ण पर्वत भूमि पर लोट रहा है। इतना ही नहीं, इस अवस्था में उनके शरीर पर यदि कोई पांव रख कर भी गुजर जाता तो भक्ति भाव में अत्यंत मस्त होने के कारण उन्हें पीड़ा न होती। ऐसा प्रतीत होता जैसे भगवान ने अपनी शक्ति की किरण अपने भक्त में डाल दी हो। चैतन्य महाप्रभु के इस नृत्य को देखकर भगवान जगन्नाथ अति प्रसन्न होते। ऐसे अथाह भक्ति के प्रतीक श्री चैतन्य महाप्रभु से प्रेरणा लेकर इस्कॉन के संस्थापक आचार्य ए.सी. भक्ति वेदांत स्वामी प्रभुपाद ने जगन्नाथ रथयात्राओं के माध्यम से संकीर्तन की छेड़ी तरंग को जारी रखा। आज भी जगन्नाथ रथयात्राओं एवं प्रभातफेरियों में चैतन्य महाप्रभु का नाम लेकर ‘निताई गौर हरि बोल’ का उद्घोष करके संकीर्तन शुरू किया जाता है।[1] नाचो-गाओ, हरिनाम कीर्तन में मस्त रहो, ईश्वर मूर्तियों में मिले तो वाह-वाह वरना वह तुम्हारे मन में, वचन और कर्मों में सदा तुम्हारे साथ है। उसके नाम पर निर्भर जियो। चैतन्य ने नाच-गाकर कृष्ण नाम लेने वाले दीवानों के जुलूस निकलवा दिये। अहिंसात्मक विद्रोह करने का यह सामूहिक उपाय तब तक इतिहास में शायद पहली बार ही प्रयोग में लाया गया था। आतंक से जड़ीभूत जन-जीवन को श्री चैतन्य ने फिर से नवचैतन्य प्रदान किया। श्री चैतन्य अपने देशकाल का प्रतीक बनकर अवतरित हुए थे।[2]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ आईए करें यात्रा चैतन्य महाप्रभु जी के नृत्य एवं हरिनाम संकीर्तन की (हिन्दी) पंजाब केसरी। अभिगमन तिथि: 15 मई, 2015।
- ↑ नागर, अमृतलाल। जीवनी/आत्मकथा >> चैतन्य महाप्रभु (हिन्दी) भारतीय साहित्य संग्रह। अभिगमन तिथि: 16 मई, 2015।
बाहरी कड़ियाँ
- चैतन्य महाप्रभु
- गौरांग ने आबाद किया कृष्ण का वृन्दावन
- Gaudiya Vaishnava
- Lord Gauranga (Sri Krishna Chaitanya Mahaprabhu)
- Gaudiya History
- Sri Gaura Purnima Special: Scriptures that Reveal Lord Chaitanya’s Identity as Lord Krishna
- Gaudiya Vaishnavas
- चैतन्य महाप्रभु - जीवन परिचय
- परिचय- चैतन्य महाप्रभु
- जीवनी/आत्मकथा >> चैतन्य महाप्रभु (लेखक- अमृतलाल नागर)
- श्री संत चैतन्य महाप्रभु
- चैतन्य महाप्रभु यदि वृन्दावन न आये होते तो शायद ही कोई पहचान पाता कान्हा की लीला स्थली को
- Shri Chaitanya Mahaprabhu -Hindi movie (youtube)
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