महमूद ग़ज़नवी के भारत पर आक्रमण
- महमूद ग़ज़नवी के भारत पर आक्रमण (1001-1026 ई.)
महमूद ग़ज़नवी (971-1030 ई.) मध्य अफ़ग़ानिस्तान में केन्द्रित ग़ज़नवी वंश का महत्वपूर्ण शासक था, जो पूर्वी ईरान में साम्राज्य विस्तार के लिए जाना जाता है। वह तुर्क मूल का था और अपने समकालीन[1] सल्जूक़ तुर्कों की तरह पूर्व में एक सुन्नी इस्लामी साम्राज्य बनाने में सफल हुआ। उसके द्वारा जीते गए प्रदेशों में आज का पूर्वी ईरान, अफ़ग़ानिस्तान और संलग्न मध्य एशिया[2], पाकिस्तान और उत्तर-पश्चिम भारत शामिल थे। उसके युद्धों में फ़ातिमी सुल्तानों (शिया), काबुल शाहिया राजाओं (हिन्दू) और कश्मीर का नाम प्रमुखता से आता है। भारत में इस्लामी शासन लाने और आक्रमण के दौरान लूटपाट मचाने के कारण भारतीय हिन्दू समाज में उसको एक लुटेरे आक्रांता के रूप में जाना जाता है। सोमनाथ के मन्दिर को लूटना इस कड़ी की एक महत्वपूर्ण घटना थी।
भारत पर आक्रमण
999 ई. में जब महमूद ग़ज़नवी सिंहासन पर बैठा, तो उसने प्रत्येक वर्ष भारत पर आक्रमण करने की प्रतिज्ञा की। उसने भारत पर कितनी बार आक्रमण किया यह स्पष्ट नहीं है, किन्तु सर हेनरी इलियट ने महमूद ग़ज़नवी के 17 आक्रमणों का वर्णन किया, जिनका उल्लेख निम्न प्रकार से है-
प्रथम आक्रमण (1001 ई.)- महमूद ग़ज़नवी ने अपना पहला आक्रमण 1001 ई. में भारत के समीपवर्ती नगरों पर किया। पर यहां उसे कोई विशेष सफलता नहीं मिली।
दूसरा आक्रमण (1001-1002 ई. - अपने दूसरे अभियान के अन्तर्गत महमूद ग़ज़नवी ने सीमांत प्रदेशों के शासक जयपाल के विरुद्ध युद्ध किया। उसकी राजधानी बैहिन्द पर अधिकार कर लिया। जयपाल इस पराजय के अपमान को सहन नहीं कर सका और उसने आग में जलकर आत्मदाह कर लिया।
तीसरा आक्रमण (1004 ई.)- महमूद ग़ज़नवी ने उच्छ के शासक वाजिरा को दण्डित करने के लिए आक्रमण किया। महमूद के भय के कारण वाजिरा सिन्धु नदी के किनारे जंगल में शरण लेने को भागा और अन्त में उसने आत्महत्या कर ली।
चौथा आक्रमण (1005 ई.)- 1005 ई. में महमूद ग़ज़नवी ने मुल्तान के शासक दाऊद के विरुद्ध मार्च किया। इस आक्रमण के दौरान उसने भटिण्डा के शासक आनन्दपाल को पराजित किया और बाद में दाऊद को पराजित कर उसे अधीनता स्वीकार करने के लिए बाध्य कर दिया।
पाँचवा आक्रमण (1007 ई.)- पंजाब में ओहिन्द पर महमूद ग़ज़नवी ने जयपाल के पौत्र सुखपाल को नियुक्त किया था। सुखपाल ने इस्लाम धर्म ग्रहण कर लिया था और उसे नौशाशाह कहा जाने लगा था। 1007 ई. में सुखपाल ने अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी थी। महमूद ग़ज़नवी ने ओहिन्द पर आक्रमण किया और नौशाशाह को बन्दी बना लिया गया।
छठा आक्रमण (1008 ई.)- महमूद ने 1008 ई. अपने इस अभियान के अन्तर्गत पहले आनन्दपाल को पराजित किया। बाद में उसने इसी वर्ष कांगड़ी पहाड़ी में स्थित नगरकोट पर आक्रमण किया। इस आक्रमण में महमूद को अपार धन की प्राप्ति हुई।
सातवाँ आक्रमण (1009 ई.)- इस आक्रमण के अन्तर्गत महमूद ग़ज़नवी ने अलवर राज्य के नारायणपुर पर विजय प्राप्त की।
आठवाँ आक्रमण (1010 ई.)- महमूद का आठवां आक्रमण मुल्तान पर था। वहां के शासक दाऊद को पराजित कर उसने मुल्तान के शासन को सदा के लिए अपने अधीन कर लिया।
नौवा आक्रमण (1013 ई.)- अपने नवे अभियान के अन्तर्गत महमूद ग़ज़नवी ने थानेश्वर पर आक्रमण किया।
दसवाँ आक्रमण (1013 ई.)- महमूद ग़ज़नवी ने अपना दसवां आक्रमण नन्दशाह पर किया। हिन्दू शाही शासक आनन्दपाल ने नन्दशाह को अपनी नयी राजधानी बनाया। वहां का शासक त्रिलोचन पाल था। त्रिलोचनपाल ने वहाँ से भाग कर कश्मीर में शरण लिया। तुर्को ने नन्दशाह में लूटपाट की।
ग्यारहवाँ आक्रमण (1015 ई.)- महमूद का यह आक्रमण त्रिलोचनपाल के पुत्र भीमपाल के विरुद्ध था, जो कश्मीर पर शासन कर रहा था। युद्ध में भीमपाल पराजित हुआ।
बारहवाँ आक्रमण (1018 ई.)- अपने बारहवें अभियान में महमूद ग़ज़नवी ने कन्नौज पर आक्रमण किया। उसने बुलंदशहर के शासक हरदत्त को पराजित किया। उसने महाबन के शासक बुलाचंद पर भी आक्रमण किया। 1019 ई. में उसने पुनः कन्नौज पर आक्रमण किया। वहाँ के शासक राज्यपाल ने बिना युद्ध किए ही आत्मसमर्पण कर दिया। राज्यपाल द्धारा इस आत्मसमर्पण से कालिंजर का चंदेल शासक क्रोधित हो गया। उसने ग्वालियर के शासक के साथ संधि कर कन्नौज पर आक्रमण कर दिया और राज्यपाल को मार डाला।
तेरहवाँ आक्रमण (1020 ई.)- महमूद का तेरहवाँ आक्रमण 1020 ई. में हुआ था। इस अभियान में उसने बारी, बुंदेलखण्ड, किरात तथा लोहकोट आदि को जीत लिया।
चौदहवाँ आक्रमण (1021 ई.)- अपने चौदहवें आक्रमण के दौरान महमूद ने ग्वालियर तथा कालिंजर पर आक्रमण किया। कालिंजर के शासक गोण्डा ने विवश होकर संधि कर ली।
पन्द्रहवाँ आक्रमण (1024 ई.)- इस अभियान में महमूद ग़ज़नवी ने लोदोर्ग (जैसलमेर), चिकलोदर (गुजरात), तथा अन्हिलवाड़ (गुजरात) पर विजय स्थापित की।
सोलहवाँ आक्रमण (1025 ई.)- इस 16वें अभियान में महमूद ग़ज़नवी ने सोमनाथ को अपना निशाना बनाया। उसके सभी अभियानों में यह अभियान सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण था। सोमनाथ पर विजय प्राप्त करने के बाद उसने वहाँ के प्रसिद्ध मंदिरों को तोड़ दिया तथा अपार धन प्राप्त किया। यह मंदिर गुजरात में समुद्र तट पर अपनी अपार संपत्ति के लिए प्रसिद्ध था। इस मंदिर को लूटते समय महमूद ने लगभग 50,000 ब्राह्मणों एवं हिन्दुओं का कत्ल कर दिया। पंजाब के बाहर किया गया महमूद का यह अंतिम आक्रमण था।
सत्रहवाँ आक्रमण (1027 ई.)- यह महमूद ग़ज़नवी का अन्तिम आक्रमण था। यह आक्रमण सिंध और मुल्तान के तटवर्ती क्षेत्रों के जाटों के विरुद्ध था। इसमें जाट पराजित हुए।
महमूद के भारतीय आक्रमण का वास्तविक उद्देश्य धन की प्राप्ति था। वह एक मूर्तिभंजक आक्रमणकारी था। महमूद की सेना में सेवदंराय एवं तिलक जैसे हिन्दू उच्च पदों पर आसीन व्यक्ति थे। महमूद के भारत आक्रमण के समय उसके साथ प्रसिद्ध इतिहासविद्, गणितज्ञ, भूगोलावेत्ता, खगोल एवं दर्शन शास्त्र के ज्ञाता तथा ‘किताबुल हिन्द’ का लेखक अलबरूनी भारत आया। अलबरूनी महमूद का दरबारी कवि था। ‘तहकीक-ए-हिन्द’ पुस्तक में उसने भारत का विवरण लिखा है। इसके अतिरिक्त इतिहासकार ‘उतबी’, 'तारीख-ए-सुबुक्तगीन' का लेखक ‘बेहाकी’ भी उसके साथ आये। बेहाकी को इतिहासकार लेनपूल ने ‘पूर्वी पेप्स’ की उपाधि प्रदान की है। ‘शाहनामा’ का लेखक 'फ़िरदौसी’, फ़ारस का कवि जारी खुरासानी विद्धान तुसी, महान् शिक्षक और विद्वान उन्सुरी, विद्वान अस्जदी और फ़ारूखी आदि दरबारी कवि थे।
|
|
|
|
|