रामकृष्ण शिंदे

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रामकृष्ण शिंदे (अंग्रेज़ी: Ramkrishna Shinde, जन्म- 1918, महाराष्ट्र, मृत्यु- 14 सितम्बर, 1985) हिन्दी सिनेमा के जानेमाने संगीतकार थे। हिंदी सिनेमा के इतिहास में ऐसे बहुत से गुणी संगीतकारों के नाम मौजूद हैं, जिन्होंने मौक़ा मिलते ही बेहद मधुर धुनें रचीं; लेकिन तमाम काबिलियत और संगीत का भरपूर ज्ञान होने के बावजूद सिनेजगत में उन्हें वह जगह नहीं मिल पायी, जिसके वह हक़दार थे। इसकी एकमात्र वजह यही थी कि उनमें इस चकाचौंध भरी दुनिया में ख़ुद को बनाए रखने के लिए सबसे ज़्यादा ज़रूरी, ख़ुद को बेच पाने का गुण नहीं था। ऐसे ही संगीतकारों में रामकृष्ण शिंदे भी शामिल थे, जिन्होंने 1947 में बनी फ़िल्म 'मैनेजर' से अपना कॅरियर शुरू किया था।

परिचय

पश्चिमी महाराष्ट्र के मालवण इलाक़े के एक मराठा परिवार में जन्मे रामकृष्ण शिंदे के जन्म की सही तारीख और साल कहीं दर्ज तो नहीं है, लेकिन उनके परिवार के अंदाज़े के मुताबिक़ उनका जन्म साल 1918 में 'रामनवमी' के दिन हुआ था और इसी वजह से उनका नाम रामकृष्ण रखा गया था। दो भाई और दो बहनों में रामकृष्ण सबसे बड़े थे। वे नौ-दस बरस के हुए कि उनके पिता का देहांत हो गया। ऐसे में उनके मामा और मौसी अपनी विधवा बहन और उनके चारों बच्चों को साथ लेकर मुम्बई चले आए, जहां नानाचौक के इलाक़े में रामकृष्ण का बचपन ग़ुज़रा।[1]

संगीत की शिक्षा

परिवार में संगीत की परंपरा न होते हुए भी रामकृष्ण शिंदे का झुकाव ख़ुद-ब-ख़ुद इस ओर होने लगा था। घर में बताए बिना उन्होंने पं. सीताराम पंत मोदी से गायन और पं. माधव कुलकर्णी से सितार सीखना तो शुरू किया ही, मेलों और नुमाईशों में होने वाले संगीत के कार्यक्रमों में भी वह हिस्सा लेने लगे। ऐसे ही कुछ कार्यक्रमों में उनके साथ लता मंगेशकर ने भी शिरक़त की थी, जिन पर अपने पिता मास्टर दीनानाथ के निधन के बाद बड़ी संतान होने के नाते परिवार की ज़िम्मेदारी आ पड़ी थी। उधर रामकृष्ण को विधवा मां और भाई-बहनों की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए उस जमाने के जानेमाने कपड़ा उद्योगपति रूईया परिवार की परेल स्थित डॉन मिल्स में नौकरी करनी पड़ी। साल 1944 में उनका विवाह मुम्बई के ऑपेरा हाऊस इलाक़े के रहने वाले मांजरेकर परिवार की बेटी नलिनी से हुआ। उसी दौरान रामकृष्ण मशहूर तबला वादक रमाकांत पार्सेकर और नृत्य-निर्देशक पार्वती कुमार कांबली के सम्पर्क में आए और फिर एक रोज़ संगीत को ही रोज़ी-रोटी का जरिया बनाने का फ़ैसला करके उन्होंने डॉन मिल्स की नौकरी से इस्तीफ़ा दे दिया।

फ़िल्मी कॅरियर

शुरूआत में रामकृष्ण शिंदे ने मराठी नाटकों में संगीत देना शुरू किया। उनकी बनायी बंदिशें बेहद मशहूर होने लगीं और बहुत जल्द वह मराठी नाटकों के दर्शकों के बीच एक जाना-पहचाना नाम बन गए। अपनी बनाई कर्णप्रिय धुनों की वजह से ही उन्हें फ़िल्म 'मैनेजर' मिली थी। 'तिवारी प्रोडक्शंस' के बैनर में 1947 में बनी इस फ़िल्म के निर्देशक थे आई.पी.तिवारी और मुख्य कलाकार थे- जयप्रकाश, पूर्णिमा, गोबिंद, सरला, अज़ीज़, अमीना और तिवारी। उसी दौरान उन्हें फ़िल्म 'बिहारी' का संगीत तैयार करने का भी मौक़ा मिला, जिसमें उनके अलावा एक अन्य संगीतकार नरेश भट्टाचार्य भी काम कर रहे थे। 'समाज चित्र, बम्बई' के बैनर में बनी इस फ़िल्म का निर्देशन के.डी. काटकर और ए.आर. ज़मींदार की जोड़ी ने किया था, कलाकार थे बी.नान्द्रेकर, सुरेखा, एच. प्रकाश, फ़ैयाजबाई, निम्बालकर, सैम्सन और शबनम, और मुंशी फरोग़ का लिखा और लता का गाया गीत 'सब्ज़े की दुर्फ़िशानी, फूलों का शामियाना' उस दौर में ख़ासा मशहूर हुआ था। बाक़ी नौ गीत अमीरबाई कर्नाटकी, एन.सी. भट्टाचार्य और ए.आर. ओझा के स्वरों में थे। फ़िल्म 'बिहारी' साल 1948 में प्रदर्शित हुई थी। 1948 में ही उनकी एक और फ़िल्म 'किसकी जीत' प्रदर्शित हुई थी। इस फ़िल्म का निर्माण भी तिवारी प्रोडक्शन के बैनर में ही हुआ था, निर्देशक थे सफदर मिर्ज़ा और मुख्य कलाकार सादिक़, इंदु कुलकर्णी, पुष्पा, मक़बूल, अमीना बाई, चन्द्रिका और तिवारी। गीतकार थे कुमार शर्मा। फ़िल्म 'मैनेजर' के सात में से छ: गीत फ़िल्म 'किसकी जीत' में इस्तेमाल किए गए थे।

बैले-नृत्य संगीत के पर्याय

मराठी नाटकों के अलावा 'इण्डियन नेशनल थिएटर' के बैले-नृत्यों के संगीत ने भी रामकृष्ण शिंदे को ख़ासी लोकप्रियता दी और फिर एक समय ऐसा आया, जब उनका नाम बैले-नृत्य संगीत का पर्याय बन गया। अपने जीवन काल में उन्होंने कुल 27 बैले-नृत्यों का संगीत संयोजन किया, जिनके देश-विदेश में हुए प्रदर्शनों को भरपूर सराहना मिली। ये उनके बैले-संगीत का ही कमाल था कि निर्देशक अमेय चक्रवर्ती ने उन्हें साल 1950 में बनी अपनी फ़िल्म 'गौना' के एक नृत्य के संगीत के संयोजन की ज़िम्मेदारी सौंपी थी। हालांकि इस फ़िल्म के संगीतकार हुस्नलाल-भगतराम थे, लेकिन उषाकिरण पर फ़िल्माए गए उस नृत्य-संगीत के लिए ख़ासतौर से रामकृष्ण शिंदे को बुलाया गया था।

नया नाम 'हेमंत केदार'

चालीस के दशक में आर.के. शिंदे और रामकृष्ण शिंदे के नाम से संगीत देते आए रामकृष्ण पचास के दशक में एक नए नाम के साथ सामने आए, और वह नाम था 'हेमंत केदार', जिसे लेकर आज भी कई लोग इस ग़लतफहमी के शिकार हैं कि ये कोई संगीतकार जोड़ी थी। एक मुलाक़ात के दौरान रामकृष्ण की पत्नी नलिनी ने बताया था कि 'हेमंत' और 'केदार', ये दोनों ही रामकृष्ण के पसंदीदा राग थे और इसी वजह से उन्होंने अपना नाम बदल कर 'हेमंत केदार' रखा था। इस नए नाम से उन्होंने 'ख़ौफ़नाक़ जंगल', 'पुलिस स्टेशन' और 'कैप्टन इण्डिया' फ़िल्मों में संगीत दिया था। साल 1955 में प्रदर्शित हुई फ़िल्म 'ख़ौफ़नाक़ जंगल' का निर्माण श्याम फ़िल्म सर्विस ने किया था और निर्देशक थे गोदरेज के.अप्पू। मुख्य भूमिकाओं में थे- बाबूराव, इंदिरा, निहाल, राजा सलीम और मंजु। गीत गिरीश माथुर ने लिखे थे। उधर फ़िल्म 'पुलिस स्टेशन' का निर्माण 1959 में 'सावित्री मूवीटोन' के बैनर में किया गया था। इस फ़िल्म के निर्माता-निर्देशक थे- के.कांत, मुख्य कलाकार थे- कामरान, कृष्णाकुमारी, अनवरी बाई, शीला काश्मीरी, इंदिरा और मिरजकर। गीतकार प्रभातकिरण, इंदीवर और हैरत सीतापुरी के लिखे गीतों को आवाज़ दी थी, मन्ना डे, मुबारक बेगम, उषा खन्ना, सबिता बनर्जी, शोभा शर्मा और अब्दुल रब क़व्वाल ने। फ़िल्म 'पुलिस स्टेशन' में हेमंत केदार के अलावा रॉबिन नाम के एक संगीतकार और थे। 1960 में बनी फ़िल्म 'कैप्टन इण्डिया' का निर्माण मधुशाला प्रोडक्शन के बैनर में राजाराम साक़ी ने और निर्देशन सी.कांत ने किया था। कलाकार थे- कामरान, कृष्णाकुमारी, राजन कपूर, मोनी चटर्जी और मधुमति। राजाराम साक़ी के लिखे गीत आशा भोंसले, तलत महमूद और सुधा मल्होत्रा ने गाए थे।

रामकृष्ण शिंदे की बड़ी बेटी रागिनी के अनुसार उनकी कुछ फ़िल्में ऐसी थीं, जिनके लिए शिंदे ने गीत रेकॉर्ड किए लेकिन वह फ़िल्में अधूरी रह गयीं। इनमें राज थिएटर के बैनर की चालीस के दशक की 'हमारी कहानी' और पचास के दशक की चित्र शिखर की 'अविनाश', शंकर प्रोडक्शन की 'सती महानन्दा', ए.करीम प्रोडक्शंस की 'जन्नत की हूर' के अलावा एक फ़िल्म 'पीली कोठी' भी शामिल है, जिसके लिए शिंदे ने दो गीत रेकॉर्ड किए थे। ऐसी ही एक अन्य फ़िल्म थी 'पाताल-देवता' जिसमें अभिनेत्री मुमताज़ ने पहली बार कैमरे का सामना किया था। ये फ़िल्म अगर बनकर प्रदर्शित हो जाती तो मुमताज़ की पहली फ़िल्म कहलाती।

मराठी फ़िल्मों में योगदान

रामकृष्ण शिंदे ने दो मराठी फ़िल्मों में भी संगीत दिया था। ये फ़िल्में थीं साल 1966 में बनी 'तोची साधु ओळाखावा' और 1970 में बनी 'आई आहे शेतात', जिसका निर्माण भी शिंदे ने ही किया था। इसके अलावा उन्होंने ऑल इण्डिया रेडियो के भी कुछ कार्यक्रमों में संगीत दिया था, जिनमें 'होनाजी बाला', 'बिल्ली मौसी की फजीहत', 'सोना और सात बौने', 'मानसी' और 'उषा मुस्काई' को बेहद सराहा गया।

मृत्यु

हिन्दी सिनेमा ने भले ही रामकृष्ण शिंदे यानि कि हेमंत केदार को उनका पूरा हक़ न दिया, लेकिन बैले-संगीत ने उन्हें ज़बर्दस्त पहचान दी। 14 सितम्बर, 1985 को जब हार्ट अटैक से उनका निधन हुआ तो उस वक़्त भी वे राजा ढाले के बैले 'चाण्डालिका' और दूरदर्शन के लिए अजित सिन्हा के बैले 'ऋतुचक्र' के संगीत पर काम कर रहे थे। रामकृष्ण शिंदे का निधन हुए कई वर्ष गुज़र चुके हैं। उनकी पत्नी और दोनों बेटियां आज भी मुम्बई में ही रहती हैं। फ़िल्मी दुनिया से इस परिवार का नाता न तो कभी पूरी तरह से जुड़ा था और न ही कभी इन्होंने उसे जोड़ने की कोशिश की। जो थोड़ा बहुत नाता ख़ुद-ब-ख़ुद जुड़ा भी था, वह भी रामकृष्ण शिंदे के निधन के बाद पूरी तरह से टूट गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. रामकृष्ण शिंदे (हिन्दी) beetehuedin.blogspot.in। अभिगमन तिथि: 11 जून, 2017।

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