लुंबिनी

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:33, 7 नवम्बर 2017 का अवतरण (Text replacement - "पश्चात " to "पश्चात् ")
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
अभिलिखित अभय मुद्रा में बुद्ध

शाक्य गणराज्य की राजधानी कपिलवस्तु के निकट उत्तर प्रदेश के 'ककराहा' नामक ग्राम से 14 मील और नेपाल-भारत सीमा से कुछ दूर पर नेपाल के अन्दर रुमिनोदेई नामक ग्राम ही लुम्बनीग्राम है, जो गौतम बुद्ध के जन्म स्थान के रूप में जगत प्रसिद्ध है। नौतनवां स्टेशन से यह स्थान दस मील दूर है। बुद्ध की माता मायादेवी कपिलवस्तु से कोलियगणराज्य की राजधानी देवदह जाते समय लुम्बनीग्राम में एक शालवृक्ष के नीचे ठहरी थीं[1], उसी समय बुद्ध का जन्म हुआ था।

इतिहास

बुद्ध का जन्म 563 ई. पू. के आस-पास कपिलवस्तु के शाक्य क्षत्रिय कुल में हुआ था। रुम्मिनदेई कपिलवस्तु से लगभग 15 किलोमीटर पूर्व में है। रुम्मिनदेई से प्राप्त अभिलेख से ज्ञात होता है कि सम्राट अशोक अपने राज्याभिषेक के बीस वर्ष बाद यहाँ आया था। उसने यहाँ अर्चना की क्योंकि यह शाक्यमुनि की पावन जन्म स्थली है। उसने रुम्मिनदेई में एक बड़ी दीवार बनवायी और एक प्रस्तर स्तम्भ स्थापित कराया। इस अभिलेख में यह भी उल्लेख है कि उसने लुम्बिनी गाँव के धार्मिक कर माफ कर दिये और मालगुजारी के रूप में आठवाँ हिस्सा तय कर दिया।

लुम्बिनी का वर्णन चीनी यात्री फाहियान और युवानच्वांग ने भी किया है। फाहियान के अनुसार कपिलवस्तु से 50 ली [2] पूर्व में लुम्बिनी वन युवानच्वांग ने इस स्थान पर उस स्तूप को देखा था, जिसे अशोक ने बनवाया था। सम्भवतः हूणों के आक्रमणों के पश्चात् यह स्थान गुमनामी के अँधेरे गर्त में समा गया। डॉ. फूहरर ने 1866 ई. में इस स्थान को खोज निकाला। तब से इस स्थान को बौद्ध जगत में पूजनीय स्थल के रूप में मान्यता मिली।

ग्रंथों में उल्लेख

पालि ग्रन्थों में बुद्ध के जन्मस्थान के तौर पर लुम्बनी के दो उल्लेख मिलते हैं, पहला नलक सुत्त में समाहित एक वर्णनात्मक कविता में और दूसरा कथावस्तु में। लेकिन जन्म के आरम्भिक विवरण संस्कृत ग्रन्थों, महावस्तु और ललितविस्तर[3] में हैं, दोनों को ही पहली या दसरी शताब्दी से पहले का नहीं माना जा सकता। एक अभिलेख की खोज से इस बात का पता चलता है कि इस स्थान पर तीसरी शताब्दी ई. पू. में भारत के मौर्य सम्राट अशोक आए थे और उन्होंने इसे बुद्ध का जन्मस्थान माना, लेकिन इससे यह सम्भावना बनती है कि यह दन्तकथा तीसरी शताब्दी ई. पू. से ही प्रचलित थी। जिस स्थान पर बुद्ध का जन्म हुआ था, वहाँ पर बाद में मौर्य सम्राट अशोक ने एक प्रस्तरस्तम्भ का निर्माण करवाया। स्तम्भ के पास ही एक सरोवर है जिसमें बौद्ध कथाओं के अनुसार नवजात शिशु को देवताओं ने स्नान करवाया था। यह स्थान अनेक शतियों तक वन्यपशुओं से भरे हुए घने जंगलों के बीच छिपा पड़ा रहा। 19वीं शती में इस स्थान का पता चला और यहाँ स्थित अशोक स्‍तम्‍भ के निम्न अभिलेख से ही इसका लुम्बनी से अभिज्ञान निश्चित हो सका-

'देवानं पियेन पियदशिना लाजिना वीसतिवसाभिसितेन अतन आगाच महीयते हिदबुधेजाते साक्यमुनीति सिलाविगड़भी चाकालापित सिलाथ-भेच उसपापिते-हिद भगवं जातेति लुम्मनिगामे उबलिके कटे अठभागिए च'

अर्थात् देवानांमप्रिय प्रियदर्शी राजा (अशोक) ने राज्यभिषेक के बीसवें वर्ष यहाँ पर आकर बुद्ध की पूजा की।

बुद्ध का जन्म स्थान, लुंबिनी

यहाँ शाक्यमुनि का जन्म हुआ था, अतः उसने यहाँ शिलाभित्त बनवाई और शिला स्तम्भ स्थापित किया। क्योंकि भगवान बुद्ध का लुम्बनी ग्राम में जन्म हुआ था, इसलिए इस ग्राम को बलि-कर से रहित कर दिया गया और उस पर भूमिकर का केवल अष्टम भाग (षष्ठांश के बजाए) नियत किया गया। इस स्तम्भ क शीर्ष पर पहले एक अश्व-मूर्ति प्रतिष्ठित थी जो अब नष्ट हो गई है। स्तम्भ पर अनेक वर्ष पूर्व बिजली के गिरने से नीचे से ऊपर की ओर एक दरार पड़ गई है।

युवानच्वांग की यात्रा

चीनी पर्यटक युवानच्वांग ने भारत भ्रमण के दौरान[4] में लुम्बनी की यात्री की थी। उसने यहाँ का वर्णन इस प्रकार किया है-

'इस उद्यान में सुन्दर तड़ांग है, जहाँ पर शाक्य स्नान करते थे। इसमें 400 पग की दूरी पर एक प्राचीन साल का पेड़ है। जिसके नीचे भगवान बुद्ध अवत्तीर्ण हुए थे। पूर्व की ओर अशोक का स्तूप था। इस स्थान पर दो नागों ने कुमार सिद्धार्थ को गर्म और ठंडे पानी से स्नान करवाया था। इसके दक्षिण में एक स्तूप है, जहाँ पर इन्द्र ने नवजात शिशु को स्नान करवाया था। इसके पास ही स्वर्ग के उन चार राजाओं के स्तूप हैं जिन्होंने शिशु की देखभाल की थी। इस स्तूपों के पास एक शिला-स्तूप था, जिसे अशोक ने बनवाया था। इसके शीर्ष पर एक अश्व की मूर्ति निर्मित थी।'

स्तूपों के अब कोई चिह्न नहीं मिलते। अश्वघोष ने [5]लुम्बनी वन में बुद्ध के जन्म का उल्लेख किया है।[6]) बुद्धचरित 1,8 में इस वन का पुनः उल्लेख किया गया है-[7]यह स्थान, जो नेपाल की राष्ट्रीय सीमा के भीतर है, एक बार फिर से बौद्ध तीर्थस्थल के रूप में विकसित किया जा रहा है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

वीथिका

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  • ऐतिहासिक स्थानावली से पेज संख्या 819-820 | विजयेन्द्र कुमार माथुर | वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग | मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार
  • भारत ज्ञानकोश से पेज संख्या 163 | इंदु रामचंदानी | ब्रिटेनिका
  1. देवदह में माया का पितृगृह था
  2. लगभग 14 किलोमीटर
  3. अध्याय सात
  4. 630-645 ई.
  5. बुद्धचरित 1,6
  6. यह मूलश्लोक विलुप्त हो गया
  7. 'तस्मिन् वने श्रीमतिराजपत्नी प्रसूतिकालं समवेक्षमाणा, शय्यां वितानोपहितां प्रपदे नारी सहस्रै रभिनंद्यमाना।

संबंधित लेख