अमर सिंह
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अमर सिंह राजा विक्रमादित्य की राजसभा के नौ रत्नों में से एक थे। उनका बनाया 'अमरकोष' संस्कृत भाषा का सबसे प्रसिद्ध कोष ग्रन्थ है। उन्होंने इसकी रचना तीसरी शताब्दी ई. पू. में की थी।
- संस्कृत भाषा के प्रायः 10,000 शब्दों के संग्रह ग्रंथ ‘अमरकोष’ के रचयिता अमर सिंह के जीवन के संबंध में नाम मात्र की जानकारी उपलब्ध है और वह भी परिस्थितिजन्य प्रमाणों के आधार पर।
- अमरकोष के आरंभ में अप्रत्यक्ष रूप से केवल बुद्ध की स्तुति की गई है। इसी प्रकार ब्रह्मा, विष्णु आदि से पहले बुद्ध का नाम दिया गया है। इससे यह निष्कर्ष निकाला जाता है कि अमर सिंह बौद्ध धर्मानुयायी थे। उनकी गणना वराहमिहिर के साथ विक्रमादित्य के नवरत्नों में की जाती है। वराहमिहिर 550 ईस्वी में थे। अतः यही समय अमर सिंह का भी माना जाता है।
- अमर सिंह ने अपने कोश का नाम ‘ नामलिंगानुशासन’ रखा था। कदाचित रचयिता के नाम पर बाद में यह ‘अमरकोष’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। यह एक पद्यबद्ध रचना है। कंठस्थ करने में सुविधा के कारण उन दिनों की रचनाएं श्लोकों में ही अधिक मिलती हैं।[1]
- एक शिलालेख के अनुसार अमर सिंह ने बोधगया में एक बुद्ध मंदिर का निर्माण कराया था।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 40 |
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