साहित्य कोश
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उपश्रेणियाँ
इस श्रेणी की कुल 7 में से 7 उपश्रेणियाँ निम्नलिखित हैं।
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- उड़िया साहित्य (1 पृ)
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- ऐतिहासिक कृतियाँ (7 पृ)
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- कन्नड़ साहित्य (1 पृ)
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- जॉर्ज ग्रियर्सन पुरस्कार (1 पृ)
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- नज़्म (18 पृ)
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- राष्ट्रीय शरद जोशी सम्मान (15 पृ)
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- स्वतंत्र लेखन (220 पृ)
"साहित्य कोश" श्रेणी में पृष्ठ
इस श्रेणी की कुल 13,935 में से 200 पृष्ठ निम्नलिखित हैं।
(पिछला पृष्ठ) (अगला पृष्ठ)ख
- खरा उतरना
- खरा होना
- खरी दुपहरी भरी -देव
- खरी-खोटी सुनाना
- खरीद लेना
- खरोष्ठी
- खर्च चलाना
- खर्राटे लेना
- खल अघ अगुन साधु गुन गाहा
- खल खंडन मंडन रम्य छमा
- खल परिहास होइ हित मोरा
- खल बधि तुरत फिरे रघुबीरा
- खल मंडली बसहु दिनु राती
- खल मनुजाद द्विजामिष भोगी
- खलना
- खलन्ह हृदयँ अति ताप बिसेषी
- खलबली मचना
- खवे से खवा छिलना
- खसिक भाषाएँ
- ख़ज़ाइन-उल-फ़ुतूह
- ख़तम करना
- ख़तरनाक मोड़
- ख़तरे की घंटी
- ख़तरे से खाली न होना
- ख़त्म हुई बारिशे संग -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
- ख़बर उड़ना
- ख़बर तक न करना
- ख़बर देना
- ख़बर रखना
- ख़बर है दोनों को -अना क़ासमी
- ख़बरों में रहना
- ख़म खाना
- ख़मियाज़ा उठाना
- ख़याली पुलाव पकाना
- ख़राब होना
- ख़लीफ़ा की खोपड़ी -अशोक चक्रधर
- ख़लील जिब्रान
- ख़लील जिब्रान के अनमोल वचन
- ख़ाक उड़ाना
- ख़ाक में मिलना
- ख़ाक होना
- ख़ाका उतारना
- ख़ाका झाड़ना
- ख़ातिर से या लिहाज़ से मैं मान तो गया -दाग़ देहलवी
- ख़ार निकालना
- ख़ुद अपने ही ख़िलाफ़ -अजेय
- ख़ुदा लगती कहना
- ख़ुदा वो वक़्त न लाये -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
- ख़ुद्दारियों के ख़ून को -साहिर लुधियानवी
- ख़ुमार बाराबंकवी
- ख़ुशामदी टट्टू
- ख़ुशी के मारे
- ख़ूँटे से बाँध देना
- ख़ून उबलना
- ख़ून करना
- ख़ून कराना
- ख़ून का घूँट पीकर रह जाना
- ख़ून का प्यासा होना
- ख़ून का रिश्ता
- ख़ून की नदी बहाना
- ख़ून की होली जो खेली -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
- ख़ून के आँसू रोना
- ख़ून के हाथ रँगना
- ख़ून ख़ुश्क होना
- ख़ून गर्म होने लगना
- ख़ून चूसना
- ख़ून पसीना एक कर देना
- ख़ून पसीने की कमाई
- ख़ून पानी हो जाना
- ख़ून पी जाना
- ख़ून फिर ख़ून है -साहिर लुधियानवी
- ख़ून बहाना
- ख़ून बिगड़ना
- ख़ून सर्द होना
- ख़ून सिर पर चढ़ना या सवार होना
- ख़ून सूखना
- ख़ून-ख़राबा होना
- ख़ूब हँसे मस्तान मियाँ -शिवकुमार बिलगरामी
- ख़ेमा गाड़ना
- ख़ैर मनाना
- ख़्याल से उतर जाना
- ख़्वाजा अहमद अब्बास
- ख़्वाब बसेरा -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
- खा जाना
- खा-पका जाना
- खा-पीकर बराबर करना
- खांलिक सकिसता मैं तेरा -रैदास
- खाई और चौड़ी हो जाना
- खाईं सिंधु गभीर अति
- खाए जाना
- खाक करना
- खाक छानना
- खाट पर पड़ना
- खाट से उतारना
- खाता खोलना
- खाता-पीता
- खाते में डालना
- खादी के प्रति अनुराग -लाल बहादुर शास्त्री
- खाना न पचना
- खाना हज़म न होना
- खाना- कमाना
- खाना-पिया अंग न लगना
- खायउँ फल प्रभु लागी भूँखा
- खाया-पिया निकाल देना
- खालिकबारी
- खाली कर देना
- खाली पेट
- खास लगना
- खासी भाषा
- खिंचा खिंचा-सा
- खिचड़ी बाल
- खिड़कियाँ -अशोक चक्रधर
- खिल-खिल खिल-खिल हो रही -काका हाथरसी
- खिलखिलाहट -काका हाथरसी
- खिलना
- खिलवाड़ समझना
- खिलाना-पिलाना
- खिलौनेवाला -सुभद्रा कुमारी चौहान
- खिल्ली उड़ाना
- खिसक जाना
- खिसयानी बिल्ली खंभा नोचे
- खिसिया जाना
- खीझ निकालना
- खीर चटाना
- खीरा को सिर काटिकै -रहीम
- खीरा सिर ते काटिये -रहीम
- खीरा-ककड़ी समझना
- खीस काढ़ना
- खुचड़ -प्रेमचंद
- खुदा खुदा करके
- खुदाई फौजदार -प्रेमचंद
- खुद्दकनिकाय
- खुमान
- खुरी करना
- खुर्शीदे-महशर की लौ -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
- खुल पड़ना
- खुलना
- खुला आसमान -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
- खुली तबीयत का
- खुले आम
- खुले दिल से
- खुले बंदों
- खुले मैदान
- खुले हाथ
- खुशबू सी आ रही है इधर ज़ाफ़रान की -गोपालदास नीरज
- खुशवंत सिंह
- खून अपना हो या पराया हो -साहिर लुधियानवी
- खून सफेद -प्रेमचंद
- खूबचंद बघेल
- खेत आना
- खेत कमाना
- खेत करना
- खेत काटना
- खेत रहना
- खेद खिन्न छुद्धित
- खेल खिलाना
- खेल खेल में
- खेल बिगाड़ना
- खेलत नंद-आंगन गोविन्द -सूरदास
- खेलत फाग दुहूँ तिय कौ -बिहारी लाल
- खेलत फाग सुहाग भरी -रसखान
- खेलत रहे तहाँ सुधि पाई
- खेलना-खाना
- खेलूँगी कभी न होली -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
- खैंचि धनुष सर सत संधाने
- खैंचि सरासन श्रवन
- खैंची लबों ने आह -अना क़ासमी
- खैचहिं गीध आँत तट भए
- खैर खुन खाँसी खुशी -रहीम
- खैर, खून, खाँसी, खुसी -रहीम
- खैरुल्बयान
- खो बैठना
- खोज मिटाना
- खोज-ख़बर न मिलना
- खोज-ख़बर न लेना
- खोटी करना
- खोद खाद धरती सहै -कबीर
- खोद खोदकर पूछना
- खोदा पहाड़ निकली चुहिया
- खोनचा लगाना
- खोपड़ी खुजलाना
- खोपड़ी खुलना
- खोपड़ी गंजी करना
- खोपड़ी चटकना
- खोपड़ी चाटना
- खोपड़ी पर नाचना
- खोया हुआ मोती -रविन्द्र नाथ टैगोर
- खोलकर कहना