खेलत नंद-आंगन गोविन्द। निरखि निरखि जसुमति सुख पावति बदन मनोहर चंद॥ कटि किंकिनी,[1] कंठमनि की द्युति, लट[2] मुकुता भरि[3] माल। परम सुदेस[4] कंठ के हरि नख,[5] बिच बिच बज्र[6] प्रवाल॥[7] करनि पहुंचियां, पग पैजनिया, रज-रंजित[8] पटपीत। घुटुरनि चलत अजिर[9] में बिहरत मुखमंडित नवनीत॥[10] सूर विचित्र कान्ह की बानिक,[11] कहति नहीं बनि आवै। बालदसा अवलोकि सकल मुनि जोग बिरति बिसरावै॥