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महन्त अवैद्यनाथ (मूल नाम- 'कृपाल सिंह बिष्ट', अंग्रेज़ी: Mahant Avaidyanath, जन्म- 28 मई, 1921; मृत्यु- 12 सितम्बर, 2014) भारतीय राजनीतिज्ञ तथा गोरखनाथ मठ के भूतपूर्व पीठाधीश्वर थे। वे गोरखपुर लोकसभा से चौथी लोकसभा के लिये निर्वाचित हुए थे। इसके बाद नौवीं, दसवीं तथा ग्यारहवीं लोकसभा के लिये भी निर्वाचित हुए।

परिचय

महन्त अवेद्यनाथ का जन्म 28 मई, 1921 को ग्राम काण्डी, जिला पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखण्ड में राय सिंह बिष्ट के घर हुआ था। उनके बचपन का नाम कृपाल सिंह बिष्ट था। कालांतर में वह भारत के राजनेता तथा गुरु गोरखनाथ मन्दिर के पीठाधीश्वर के रूप में प्रसिद्ध हुए। महन्त अवैद्यनाथ ने हिन्दू धर्म की आध्यात्मिक साधना के साथ सामाजिक हिन्दू साधना को भी आगे बढ़ाया और सामाजिक जनजागरण को अधिक महत्वपूर्ण मानकर हिन्दू धर्म के सोशल इंजीनियरिग पर बल दिया। योगी आदित्यनाथ के 'हिन्दू युवा वाहिनी' जैसे युवा संगठन की प्रेरणा भी कहीं न कहीं इसी सोशल इंजीनियरिग की प्रेरणा थी।

महन्त

हिमालय और कैलाश मानसरोवर की यात्रा और साधना से शैव धर्म से गहरे प्रभावित महन्त अवैद्यनाथ पहली बार 1940 में अपनी बंगाल यात्रा के दौरान मेंमन सिंह के माध्यम से दिग्विजय नाथ से मिले। 8 फ़रवरी, 1942 को वह गोरक्षनाथ पीठ के उत्तराधिकारी बन गए और इस तरह मात्र 23 साल की अवस्था में कृपाल सिंह बिष्ट से महन्त अवैद्यनाथ बनकर सदैव के लिए अमर हो गये। आजन्म विवादों से दूर रहने वाले, विरक्त सन्यासी, सज्जन, सरल और सुमधुर और मितभाषी व्यक्तित्व के धनी महन्त अवैद्यनाथ ने रामजन्म भूमि आन्दोलन को मात्र गति ही नहीं दी अपितु एक संरक्षक की भाँती हर तरह से रक्षित और पोषित किया।

राजनीतिक जीवन

दक्षिण भारत के रामनाथपुरम और मीनाक्षीपुरम में अनुसूचित जाति के लोगों के सामूहिक धर्मान्तरण की घटना से खासे आहत होते हुए महन्त अवैद्यनाथ ने राजनीति में पदार्पण किया। इस घटना का विस्तार उत्तर भारत में न हो, इसके लिए महत्वपूर्ण कदम उठाये गए और राजनीति में रहकर मतान्तरण का ध्रुवीकरण करने के कुटिल प्रयासों को असफल किया।

महन्त अवेद्यनाथ ने 1962, 1967, 19741977 में उत्तर प्रदेश विधानसभा में मानीराम सीट का प्रतिनिधित्व किया और 1970, 1989, 1991 और 1996 में गोरखपुर से लोकसभा सदस्य रहे। 34 वर्षों तक 'हिन्दू महासभा' और 'भारतीय जनता पार्टी' से जुड़े रहकर हिंदुत्व को भारतीय राजनीति में गति देने वाले और सामाजिक हितों की रक्षा करने वाले महन्त अवेद्यनाथ ने स्वयं को अवसरवाद और पदभार से स्वयं को दूर रखा और इस तरह उन्होंने राजयोग में भी हठयोग का प्रयोग बखूबी किया। कितने पद स्वयं महाराज जी के चरणों में आकर स्वयं सुशोभित होते थे और आशीष लेते थे।

मृत्यु

महन्त अवेद्यनाथ का निधन 12 सितम्बर, 2014 को हुआ। उन्हें नाथ परंपरा के अनुसार समाधि दी गयी। वे काफी समय से बीमार थे। एक माह से गुड़गांव के मेदांता अस्पताल में वह भर्ती थे। हालत अधिक बिगड़ने पर उन्हें विशेष विमान से गोरखपुर लाया गया था, जहां उन्होंने शरीर छोड़ा।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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