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'''हाजी अली की दरगाह''' [[महाराष्ट्र]] राज्य के [[मुंबई]] शहर में स्थित एक मशहूर मस्जिद एवं दरगाह है।
 
*यह स्थान [[अरबियन समुद्र]] के समुद्र तट पर बने [[महालक्ष्मी मंदिर मुंबई|महालक्ष्मी मंदिर]] के समीप स्थित है।
 
*हाजी अली की दरगाह मुंबई के वरली तट के निकट स्थित एक छोटे से टापू पर स्थित है।
 
*इसे 'सैय्यद पीर हाजी अली शाह बुखारी' की स्मृति में सन् 1431 में बनाया गया था।
 
*कहा जाता है कि एक महान संत हाजी अली शाह बुखारी इस जगह डूब गये थे और इसलिए अब इस जगह मस्जिद एवं दरगाह बनवा दी गई थी।
 
*हाजी अली मस्जिद 4500 मीटर के एक क्षेत्र में बनी हुई है।
 
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'''हाजी अली दरगाह''' [[महाराष्ट्र]] राज्य के [[मुंबई]] शहर में स्थित एक मशहूर मस्जिद एवं दरगाह है। यह प्रसिद्ध दरगाह [[अरब सागर]] के तट पर बने '[[महालक्ष्मी मंदिर मुंबई|महालक्ष्मी मंदिर]]' के समीप स्थित है। अरब सागर के बीच 19वीं सदी के पूर्वाद्ध में बनी मुंबई की यह प्रसिद्ध दरगाह जमीन से 500 गज दूर समुद्र में स्थित है। यह दरगाह [[मुस्लिम]] और [[हिन्दू]] ही नहीं, बल्कि अन्य धर्मों के लोगों के लिए भी समान रूप से आस्था और विश्वास का केंद्र है। दरगाह तक पहुँचने के लिए एक छोटा-सा पगडंडीनुमा रास्ता है, जिसके माध्यम से दरगाह तक तभी पहुँचा जा सकता है, जब समुद्र में ज्वार न हो, अन्यथा रास्ता पानी में डूब जाता है। रात्रि में दूर से देखने पर हाजी अली दरगाह का नज़ारा इतना दिलकश होता है, जैसे दरगाह और मस्जिद का गुम्बद समुद्र की लहरों पर तैर रहे हों।
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हाजी अली की दरगाह मुंबई के वर्ली तट के निकट स्थित एक छोटे-से टापू पर स्थित है। मुख्य भूमि से यह टापू एक कंक्रीट के जलमार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है। दरगाह के अंदर मुस्लिम संत सैयद पीर हाजी अली शाह बुखारी की कब्र है। दरगाह को हाजी अली शाह बुखारी की स्मृति में सन 1431 में बनाया गया था। यह दरगाह इस्लामी स्थापत्य कला का एक नायाब नमूना है। सैयद पीर हाजी अली तत्कालीन [[फ़ारस]] साम्राज्य बुखारा नामक स्थान के निवासी थे। वे 15वीं शताब्दी में दुनिया घूमने के बाद [[मुम्बई]] आकर बस गये थे। कहा जाता है कि हाजी अली शाह बुखारी [[मक्का (अरब)|मक्का]] जाते समय यहाँ डूब गये थे। इसीलिए इस जगह पर मस्जिद एवं दरगाह बनवा दी गई थी। हाजी अली शाह मस्जिद 4500 मीटर के क्षेत्र में बनी हुई है। शायद दुनिया में यह अपनी तरह का एकमात्र धर्म स्थल है, जहाँ एक दरगाह और एक मस्जिद [[समुद्र]] के बीच में टापू पर स्थित है और जहाँ एक ही समय पर हज़ारों श्रद्धालु एक साथ धर्मलाभ ले सकते हैं। प्रत्येक [[शुक्रवार]] को यहाँ सूफ़ी संगीत व कव्वाली की महफिल सजती है। [[बृहस्पतिवार]] और शुक्रवार को यहाँ सभी धर्मों के लगभग पचास हज़ार से ज़्यादा लोग दुआ माँगने पहुँचते हैं।
  
  
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08:44, 8 अगस्त 2013 का अवतरण

हाजी अली दरगाह
हाजी अली दरगाह
विवरण यह स्थान अरबियन समुद्र के समुद्र तट पर बने महालक्ष्मी मंदिर के समीप स्थित है।
स्थान मुंबई, महाराष्ट्र
भौगोलिक स्थिति उत्तर- 18° 59′ 6″, पूर्व- 72° 48′ 36″
निर्माण काल सन् 1431
Map-icon.gif गूगल मानचित्र
अन्य जानकारी कहा जाता है कि एक महान संत हाजी अली शाह बुखारी इस जगह डूब गये थे और इसलिए अब इस जगह मस्जिद एवं दरगाह बनवा दी गई थी।

हाजी अली दरगाह महाराष्ट्र राज्य के मुंबई शहर में स्थित एक मशहूर मस्जिद एवं दरगाह है। यह प्रसिद्ध दरगाह अरब सागर के तट पर बने 'महालक्ष्मी मंदिर' के समीप स्थित है। अरब सागर के बीच 19वीं सदी के पूर्वाद्ध में बनी मुंबई की यह प्रसिद्ध दरगाह जमीन से 500 गज दूर समुद्र में स्थित है। यह दरगाह मुस्लिम और हिन्दू ही नहीं, बल्कि अन्य धर्मों के लोगों के लिए भी समान रूप से आस्था और विश्वास का केंद्र है। दरगाह तक पहुँचने के लिए एक छोटा-सा पगडंडीनुमा रास्ता है, जिसके माध्यम से दरगाह तक तभी पहुँचा जा सकता है, जब समुद्र में ज्वार न हो, अन्यथा रास्ता पानी में डूब जाता है। रात्रि में दूर से देखने पर हाजी अली दरगाह का नज़ारा इतना दिलकश होता है, जैसे दरगाह और मस्जिद का गुम्बद समुद्र की लहरों पर तैर रहे हों।

इतिहास

हाजी अली की दरगाह मुंबई के वर्ली तट के निकट स्थित एक छोटे-से टापू पर स्थित है। मुख्य भूमि से यह टापू एक कंक्रीट के जलमार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है। दरगाह के अंदर मुस्लिम संत सैयद पीर हाजी अली शाह बुखारी की कब्र है। दरगाह को हाजी अली शाह बुखारी की स्मृति में सन 1431 में बनाया गया था। यह दरगाह इस्लामी स्थापत्य कला का एक नायाब नमूना है। सैयद पीर हाजी अली तत्कालीन फ़ारस साम्राज्य बुखारा नामक स्थान के निवासी थे। वे 15वीं शताब्दी में दुनिया घूमने के बाद मुम्बई आकर बस गये थे। कहा जाता है कि हाजी अली शाह बुखारी मक्का जाते समय यहाँ डूब गये थे। इसीलिए इस जगह पर मस्जिद एवं दरगाह बनवा दी गई थी। हाजी अली शाह मस्जिद 4500 मीटर के क्षेत्र में बनी हुई है। शायद दुनिया में यह अपनी तरह का एकमात्र धर्म स्थल है, जहाँ एक दरगाह और एक मस्जिद समुद्र के बीच में टापू पर स्थित है और जहाँ एक ही समय पर हज़ारों श्रद्धालु एक साथ धर्मलाभ ले सकते हैं। प्रत्येक शुक्रवार को यहाँ सूफ़ी संगीत व कव्वाली की महफिल सजती है। बृहस्पतिवार और शुक्रवार को यहाँ सभी धर्मों के लगभग पचास हज़ार से ज़्यादा लोग दुआ माँगने पहुँचते हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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