मेवाड़

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कुंभलगढ़ दुर्ग, उदयपुर

मेवाड़ राजस्थान के दक्षिण मध्य में स्थित एक प्रसिद्ध रियासत थी। इसे उदयपुर राज्य के नाम से भी जाना जाता था। इसमें आधुनिक भारत के उदयपुर, भीलवाड़ा, राजसमंद तथा चित्तौड़गढ़ ज़िले सम्मिलित थे। सैकड़ों सालों तक यहाँ राजपूतों का शासन रहा। गहलौत तथा सिसोदिया वंश के राजाओं ने 1200 साल तक मेवाड़ पर राज किया था।

इतिहास

राजस्थान का मेवाड़ राज्य पराक्रमी गहलौतों की भूमि रहा है, जिनका अपना एक इतिहास है। इनके रीति-रिवाज तथा इतिहास का यह स्वर्णिम खजाना अपनी मातृभूमि, धर्म तथा संस्कृति व रक्षा के लिए किये गये गहलौतों के पराक्रम की याद दिलाता है। स्वाभाविक रूप से यह इस धरती की ख़ास विशेषताओं, लोगों की जीवन पद्धति तथा उनके आर्थिक तथा सामाजिक दशा से प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होता रहा है। शक्ति व समृद्धि के प्रारंभिक दिनों में मेवाड़ सीमाएँ उत्तर-पूर्व के तरफ़ बयाना, दक्षिण में रेवाकंठ तथा मणिकंठ, पश्चिम में पालनपुर तथा दक्षिण-पश्चिम में मालवा को छूती थी। ख़िलजी वंश के अलाउद्दीन ख़िलजी ने 1303 ई. में मेवाड़ के गहलौत शासक रतन सिंह को पराजित करके इसे दिल्ली सल्तनत में मिला लिया था। गहलौत वंश की एक अन्य शाखा 'सिसोदिया वंश' के हम्मीरदेव ने मुहम्मद तुग़लक के समय में चित्तौड़ को जीत कर पूरे मेवाड़ को स्वतंत्र करा लिया। 1378 ई. में हम्मीरदेव की मृत्यु के बाद उसका पुत्र क्षेत्रसिंह (1378-1405 ई.) मेवाड़ की गद्दी पर बैठा। क्षेत्रसिंह के बाद उसका पुत्र लक्खासिंह 1405 ई. में सिंहासन पर बैठा। लक्खासिंह की मृत्यु के बाद 1418 ई. में इसका पुत्र मोकल राजा हुआ। मोकल ने कविराज बानी विलास और योगेश्वर नामक विद्वानों को आश्रय अपने राज्य में आश्रय प्रदान किया था। उसके शासन काल में माना, फन्ना और विशाल नामक प्रसिद्ध शिल्पकार आश्रय पाये हुये थे। मोकल ने अनेक मंदिरों का जीर्णोद्धार कराया तथा एकलिंग मंदिर के चारों तरफ़ परकोटे का भी निर्माण कराया। गुजरात शासक के विरुद्ध किये गये एक अभियान के समय उसकी हत्या कर दी गयी। 1431 ई. में मोकल की मृत्यु के बाद राणा कुम्भा मेवाड़ के राज सिंहासन पर बैठा। राणा कुम्भा तथा राणा सांगा के समय राज्य की शक्ति उत्कर्ष पर थी, लेकिन लगातार होते रहे बाहरी आक्रमणों के कारण राज्य विस्तार में क्षेत्र की सीमा बदलती रही। अम्बाजी नाम के एक मराठा सरदार ने अकेले ही मेवाड़ से क़रीब दो करोड़ रुपये वसूले थे।

भौगोलिक संरचना

मेवाड़ राज्य आकार में आयताकार है। क़रीब-क़रीब अधिकांश क्षेत्र अरावली पर्वत श्रृंखलाओं से आच्छादित है, जिसके पर्वत पृष्ठ तीव्र तथा पठार उथले हैं। बैरत, दुधेश्वर, कमलीघाट आदि इस क्षेत्र की प्रमुख श्रृंखलाएँ हैं तथा जागरा, रणकपुर, गोगुंडा, बोमट, गिरवा तथा मागरा आदि पठारों के उदाहरण हैं। मेवाड़ की सीमा रेखा का कार्य खाड़ी नदी करती रही, जिसका प्रादुर्भाव पश्चिमी पर्वत श्रृंखलाओं से हुआ है। मेवाड़ अजमेर-मारवाड़ के बीच एक प्राकृतिक सीमा रेखा का कार्य करता है। विभिन्न बाँध तथा पोखरियाँ अपनी प्राकृतिक बनावट के कारण इसे सुरक्षा प्रदान करती हैं। मेवाड़ के देशभक्त व समर्पित योद्धा अपनी धरती के लिए लड़ने तथा अपना अधिकार प्राप्त करने के सतत् प्रयास के लिए एक आदर्श उदाहरण के रूप में सदियों तक याद किये जाते रहेंगे।

चित्रकला

17वीं और 18वीं शताब्दी में भारतीय लघु चित्रकला (मिनिएचर) की महत्त्वपूर्ण शैलियों में से एक है। यह एक राजस्थानी शैली है, जो हिन्दू रियासत मेवाड़ (राजस्थान) में विकसित हुई। सादे चटकीले रंग और सीधा भावनात्मक आकर्षण इस शैली की विशेषता है। इस शैली की मूल स्थानों और तिथियों सहित बहुत सी कलाकृतियाँ मिली हैं। जिनसे अन्य राजस्थानी शैलियों के मुक़ाबले मेवाड़ में चित्रकला के विकास के बारे में सटीक जानकारी मिलती है। इसके प्राचीनतम उदाहरण रंगमाला (राग-रागिनियों के भाव) श्रृंखला के हैं, जिन्हें राज्य की प्राचीन राजधानी चांवड़ में 1605 में चित्रित किया गया था। 1680 तक कुछ भिन्नताओं के साथ यह शैली अभिव्यक्तिपूर्ण और सशक्त बनी रही, जिसके बाद इस पर मुग़ल प्रभाव हावी होने लगा। साहिबदीन आरंभिक काल के कुछ प्रमुख चित्रकारों में से एक थे।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

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