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'''अदूर गोपालकृष्णन''' (जन्म- [[3 जुलाई]], [[1941]], अदूर गाँव, [[केरल]]) प्रसिद्ध भारतीय फ़िल्म निर्देशक, पटकथा लेखक और निर्माता हैं। वे [[मलयालम भाषा|मलयालम]] सिनेमा और [[भारत]] के चोटी के फ़िल्म निर्माताओं में से एक माने जाते हैं। अदूर गोपालकृष्णन की फ़िल्में न केवल भारत में, बल्कि विदेशों में भी सराही जाती रही हैं। सत्तर के दशक में उनकी पहली ही फ़िल्म 'स्वयंवरम्' को सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म, निर्देशक और कैमरा मैन पुरस्कार मिला था। हाल ही में उनकी फ़िल्म 'मतिलुकल' को पेरिस में युवाओं के बारहवें अंतरराष्ट्रीय फ़िल्म समारोह में सर्वेश्रेष्ठ फ़िल्म और सर्वेश्रेष्ठ निर्देशक का पुरस्कार मिला। उन्हें वर्ष [[1984]] में '[[पद्म श्री]]', [[2004]] में '[[दादा साहब फाल्के पुरस्कार]]' और [[2006]] में '[[पद्म विभूषण]]' दिया गया था।   
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'''अदूर गोपालकृष्णन''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Adoor Gopalakrishnan'', जन्म- [[3 जुलाई]], [[1941]], अदूर गाँव, [[केरल]]) प्रसिद्ध भारतीय फ़िल्म निर्देशक, पटकथा लेखक और निर्माता हैं। वे [[मलयालम भाषा|मलयालम]] सिनेमा और [[भारत]] के चोटी के फ़िल्म निर्माताओं में से एक माने जाते हैं। अदूर गोपालकृष्णन की फ़िल्में न केवल भारत में, बल्कि विदेशों में भी सराही जाती रही हैं। सत्तर के दशक में उनकी पहली ही फ़िल्म 'स्वयंवरम्' को सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म, निर्देशक और कैमरा मैन पुरस्कार मिला था। हाल ही में उनकी फ़िल्म 'मतिलुकल' को पेरिस में युवाओं के बारहवें अंतरराष्ट्रीय फ़िल्म समारोह में सर्वेश्रेष्ठ फ़िल्म और सर्वेश्रेष्ठ निर्देशक का पुरस्कार मिला। उन्हें वर्ष [[1984]] में '[[पद्म श्री]]', [[2004]] में '[[दादा साहब फाल्के पुरस्कार]]' और [[2006]] में '[[पद्म विभूषण]]' दिया गया था।   
 
==जन्म तथा प्रारम्भिक जीवन==
 
==जन्म तथा प्रारम्भिक जीवन==
अदूर गोपालकृष्णन का जन्म 3 जुलाई, 1941 को [[केरल]] के अदूर गाँव में हुआ था। इनके [[पिता]] का नाम माधवन उन्नीथन और [[माता]] मोत्ताथु गौरी कुंजम्मा थीं। गोपालकृष्णन जब मात्र आठ वर्ष के थे, तभी उन्होंने शौकिया तौर पर नाटकों में एक अभिनेता के रूप में अपना कलात्मक जीवन शुरू कर दिया था।  
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अदूर गोपालकृष्णन का जन्म 3 जुलाई, 1941 को [[केरल]] के अदूर नामक [[गाँव]] में हुआ था। इनके [[पिता]] का नाम माधवन उन्नीथन और [[माता]] मोत्ताथु गौरी कुंजम्मा थीं। गोपालकृष्णन जब मात्र आठ वर्ष के थे, तभी उन्होंने शौकिया तौर पर नाटकों में एक अभिनेता के रूप में अपना कलात्मक जीवन शुरू कर दिया था।  
 
====प्रशिक्षण====
 
====प्रशिक्षण====
 
अदूर गोपालकृष्णन ने [[पुणे]] में स्थित 'भारतीय फ़िल्म और टेलीविज़न प्रशिक्षण संस्थान' से प्रशिक्षण हासिल किया। इसके बाद उन्होंने फ़िल्म निर्माण का कार्य प्रारम्भ किया।<ref>{{cite web |url=http://www.bbc.co.uk/hindi/specials/1131_culture_review/page3.shtml |title=दादा साहब फाल्के पुरस्कार|accessmonthday= 16 फ़रवरी|accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
 
अदूर गोपालकृष्णन ने [[पुणे]] में स्थित 'भारतीय फ़िल्म और टेलीविज़न प्रशिक्षण संस्थान' से प्रशिक्षण हासिल किया। इसके बाद उन्होंने फ़िल्म निर्माण का कार्य प्रारम्भ किया।<ref>{{cite web |url=http://www.bbc.co.uk/hindi/specials/1131_culture_review/page3.shtml |title=दादा साहब फाल्के पुरस्कार|accessmonthday= 16 फ़रवरी|accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
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वर्ष [[1972]] में अदूर गोपाकृष्णन ने अपनी पहली फ़िल्म 'स्वयंवरम' बनाई। इस फ़िल्म से उन्होंने एक गंभीर फ़िल्मकार के रूप में अपनी पहचान बनाई। उन्होंने बहुत अधिक फ़िल्में तो नहीं बनाई हैं, किंतु जो भी फ़िल्में बनाई, वे विविध विषयों पर आधारित रहीं। इन फ़िल्मों की पटकथा भी उन्होंने स्वयं लिखी। उनकी पहली फ़िल्म 'स्वयंवरम' जहाँ विचार धाराओं के टकराव की कहानी है, वहीं दूसरी फ़िल्म 'इलियापथम' में केरल के सामंती समाज के पतन को दिखाया गया है। तीन साल पहले आई उनकी अंतिम फ़िल्म 'निग़लकत्थू' एक जल्लाद के जीवन पर आधारित है, जिसका बेटा क्रांतिकारी होता है।  
 
वर्ष [[1972]] में अदूर गोपाकृष्णन ने अपनी पहली फ़िल्म 'स्वयंवरम' बनाई। इस फ़िल्म से उन्होंने एक गंभीर फ़िल्मकार के रूप में अपनी पहचान बनाई। उन्होंने बहुत अधिक फ़िल्में तो नहीं बनाई हैं, किंतु जो भी फ़िल्में बनाई, वे विविध विषयों पर आधारित रहीं। इन फ़िल्मों की पटकथा भी उन्होंने स्वयं लिखी। उनकी पहली फ़िल्म 'स्वयंवरम' जहाँ विचार धाराओं के टकराव की कहानी है, वहीं दूसरी फ़िल्म 'इलियापथम' में केरल के सामंती समाज के पतन को दिखाया गया है। तीन साल पहले आई उनकी अंतिम फ़िल्म 'निग़लकत्थू' एक जल्लाद के जीवन पर आधारित है, जिसका बेटा क्रांतिकारी होता है।  
 
==पुरस्कार व सम्मान==
 
==पुरस्कार व सम्मान==
भारतीय सिनेमा में अदूर गोपालकृष्णन के अभूतपूर्व योगदान को देखते हुए उन्हें चार बार सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का 'राष्ट्रीय पुरस्कार' और तीन बार सर्वश्रेष्ठ पटकथा लेखक का 'राष्ट्रीय पुरस्कार' मिल चुका है। यही नहीं उन्हें वर्ष [[1984]] में '[[पद्म श्री]]', [[2004]] में '[[दादा साहब फाल्के पुरस्कार]]' और [[2006]] में '[[पद्म विभूषण]]' से भी सम्मानित किया जा चुका है।
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[[भारतीय सिनेमा]] में अदूर गोपालकृष्णन के अभूतपूर्व योगदान को देखते हुए उन्हें चार बार सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का 'राष्ट्रीय पुरस्कार' और तीन बार सर्वश्रेष्ठ पटकथा लेखक का 'राष्ट्रीय पुरस्कार' मिल चुका है। यही नहीं उन्हें वर्ष [[1984]] में '[[पद्म श्री]]', [[2004]] में '[[दादा साहब फाल्के पुरस्कार]]' और [[2006]] में '[[पद्म विभूषण]]' से भी सम्मानित किया जा चुका है।
  
 
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अदूर गोपालकृष्णन
अदूर गोपालकृष्णन
पूरा नाम अदूर गोपालकृष्णन
जन्म 3 जुलाई, 1941 ई.
जन्म भूमि अदूर गाँव, केरल
अभिभावक माधवन उन्नीथन और मोत्ताथु गौरी कुंजम्मा
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र फ़िल्म निर्देशक, पटकथा लेखक और निर्माता
पुरस्कार-उपाधि 'पद्म श्री' (1984), 'दादा साहब फाल्के पुरस्कार' (2004), 'पद्म विभूषण' (2006)
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी आपको चार बार सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का 'राष्ट्रीय पुरस्कार' और तीन बार सर्वश्रेष्ठ पटकथा लेखक का 'राष्ट्रीय पुरस्कार' मिल चुका है।
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अदूर गोपालकृष्णन (अंग्रेज़ी: Adoor Gopalakrishnan, जन्म- 3 जुलाई, 1941, अदूर गाँव, केरल) प्रसिद्ध भारतीय फ़िल्म निर्देशक, पटकथा लेखक और निर्माता हैं। वे मलयालम सिनेमा और भारत के चोटी के फ़िल्म निर्माताओं में से एक माने जाते हैं। अदूर गोपालकृष्णन की फ़िल्में न केवल भारत में, बल्कि विदेशों में भी सराही जाती रही हैं। सत्तर के दशक में उनकी पहली ही फ़िल्म 'स्वयंवरम्' को सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म, निर्देशक और कैमरा मैन पुरस्कार मिला था। हाल ही में उनकी फ़िल्म 'मतिलुकल' को पेरिस में युवाओं के बारहवें अंतरराष्ट्रीय फ़िल्म समारोह में सर्वेश्रेष्ठ फ़िल्म और सर्वेश्रेष्ठ निर्देशक का पुरस्कार मिला। उन्हें वर्ष 1984 में 'पद्म श्री', 2004 में 'दादा साहब फाल्के पुरस्कार' और 2006 में 'पद्म विभूषण' दिया गया था।

जन्म तथा प्रारम्भिक जीवन

अदूर गोपालकृष्णन का जन्म 3 जुलाई, 1941 को केरल के अदूर नामक गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम माधवन उन्नीथन और माता मोत्ताथु गौरी कुंजम्मा थीं। गोपालकृष्णन जब मात्र आठ वर्ष के थे, तभी उन्होंने शौकिया तौर पर नाटकों में एक अभिनेता के रूप में अपना कलात्मक जीवन शुरू कर दिया था।

प्रशिक्षण

अदूर गोपालकृष्णन ने पुणे में स्थित 'भारतीय फ़िल्म और टेलीविज़न प्रशिक्षण संस्थान' से प्रशिक्षण हासिल किया। इसके बाद उन्होंने फ़िल्म निर्माण का कार्य प्रारम्भ किया।[1]

फ़िल्म निर्माण

वर्ष 1972 में अदूर गोपाकृष्णन ने अपनी पहली फ़िल्म 'स्वयंवरम' बनाई। इस फ़िल्म से उन्होंने एक गंभीर फ़िल्मकार के रूप में अपनी पहचान बनाई। उन्होंने बहुत अधिक फ़िल्में तो नहीं बनाई हैं, किंतु जो भी फ़िल्में बनाई, वे विविध विषयों पर आधारित रहीं। इन फ़िल्मों की पटकथा भी उन्होंने स्वयं लिखी। उनकी पहली फ़िल्म 'स्वयंवरम' जहाँ विचार धाराओं के टकराव की कहानी है, वहीं दूसरी फ़िल्म 'इलियापथम' में केरल के सामंती समाज के पतन को दिखाया गया है। तीन साल पहले आई उनकी अंतिम फ़िल्म 'निग़लकत्थू' एक जल्लाद के जीवन पर आधारित है, जिसका बेटा क्रांतिकारी होता है।

पुरस्कार व सम्मान

भारतीय सिनेमा में अदूर गोपालकृष्णन के अभूतपूर्व योगदान को देखते हुए उन्हें चार बार सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का 'राष्ट्रीय पुरस्कार' और तीन बार सर्वश्रेष्ठ पटकथा लेखक का 'राष्ट्रीय पुरस्कार' मिल चुका है। यही नहीं उन्हें वर्ष 1984 में 'पद्म श्री', 2004 में 'दादा साहब फाल्के पुरस्कार' और 2006 में 'पद्म विभूषण' से भी सम्मानित किया जा चुका है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. दादा साहब फाल्के पुरस्कार (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 16 फ़रवरी, 2013।

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