नारायणोपनिषद

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
व्यवस्थापन (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:44, 13 अक्टूबर 2011 का अवतरण (Text replace - "Category:उपनिषद" to "Category:उपनिषदCategory:संस्कृत साहित्य")
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
  • कृष्ण यजुर्वेदीय इस लघु उपनिषद में चारों वेदों का उपदेश सार मस्तक के रूप में वर्णित है। प्रारम्भ में 'नारायण' से ही समस्त चेतन-अचेतन जीवों और पदार्थों का प्रादुर्भाव बताया गया है। बाद में नारायण की सर्वव्यापकता और सभी प्राणियों में नारायण को ही आत्मा का रूप बताया है। नारायण और प्रणव (ॐकार) को एक ही माना है।
  • आदिकाल में नारायण ने ही संकल्प किया कि वह प्रजा या जीवों की रचना करे। तब उन्हीं से समस्त जीवों का उदय हुआ। नारायण ही समष्टिगत प्राण का स्वरूप है। उन्हीं के द्वारा 'मन' और 'इन्द्रियों' की रचना हुई। आकाश, वायु, जल, तेज और पृथ्वी उत्पन्न हुए। फिर अन्य देवता उदित हुए।
  • भगवान नारायण ही 'नित्य' हैं। ब्रह्मा, शिव, इन्द्र, काल, दिशाएं आदि सभी नारायण हैं। 'ओंकार' के उच्चारण से ही 'नारायण' की सिद्धि होती है। जो साधक 'नारायण' का स्मरण करता है, उसके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। योगी साधक जन्म-मृत्यु के बन्धनों से छूटकर 'मोक्ष' प्राप्त कर लेता है।

संबंधित लेख

श्रुतियाँ