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12:52, 25 अप्रैल 2018 के समय का अवतरण
निर्मला देशपांडे
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पूरा नाम | निर्मला देशपांडे |
जन्म | 19 अक्टूबर, 1929 |
जन्म भूमि | नागपुर, महाराष्ट्र |
अभिभावक | विमला देशपांडे और पुरुषोत्तम यशवंत देशपांडे |
कर्म-क्षेत्र | सामाजिक कार्यकर्ता |
पुरस्कार-उपाधि | पद्म विभूषण |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | निर्मला देशपांडे नेहरू-गाँधी परिवार के काफ़ी नजदीक रहीं और उनकी प्रबल समर्थक थीं। |
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निर्मला देशपांडे (अंग्रेज़ी: 'Nirmala Deshpande', जन्म: 19 अक्टूबर, 1929 - मृत्य: 1 मई, 2008) गांधीवादी विचारधारा से जुड़ी हुईं प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता थीं। उन्होंने अपना जीवन साम्प्रदायिक सौहार्द को बढ़ावा देने के साथ-साथ महिलाओं, आदिवासियों और अवसर से वंचित लोगों की सेवा में अर्पण कर दिया। निर्मला जी बहुआयामी प्रतिभा की धनी थीं। उन्होंने अनेक उपन्यास, नाटक, यात्रा तथा वृत्तान्त, विनोबा भावे की जीवनी भी लिखी। उन्हें पद्म विभूषण भी मिला था।
जीवन परिचय
निर्मला देशपांडे का जन्म नागपुर में विमला और पुरुषोत्तम यशवंत देशपांडे के घर 19 अक्टूबर,1929 को नागपुर में हुआ था। इनके पिता को मराठी साहित्य (अनामिकाची चिंतनिका) में उत्कृष्ट काम के लिए 1962 में साहित्य अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया था।
राष्ट्रपति पद के लिए चर्चा
2007 में राष्ट्रपति पद के लिए यूँ तो कई नामों पर चर्चा की गई, लेकिन अन्त में दो नाम रह गए थे, जो यू.पी.ए. और वाम मोर्चा द्वारा अन्तिम रूप से विचारित होने थे। दोनों नाम महिला उम्मीदवारों के थे-एक, गांधीवादी विचारधारा वाली निर्मला देशपांडे और दूसरी, राजस्थान की तत्कालीन राज्यपाल श्रीमती प्रतिभा पाटिल। 14 जून, 2007 को नाटकीय घटनाक्रम के बाद अन्तत: यू.पी.ए. और वामदलों ने राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार का नाम अन्तिम रूप से तय कर लिया। वह नाम था-राजस्थान की तत्कालीन राज्यपाल श्रीमती प्रतिभा पाटिल का।
महत्त्वपूर्व पड़ाव
- निर्मला देशपांडे जी जीवनपर्यन्त सर्वोदय आश्रम टडियांवा से जुड़ी रहीं।
- प्रतिभा पाटिल के समान निर्मला देशपांडे नेहरू-गाँधी परिवार के काफ़ी नजदीक रहीं और उनकी प्रबल समर्थक थीं।
- महिला कल्याणार्थ दिल्ली एवं मुम्बई में कार्यकारी महिलाओं के लिए आवासगृह स्थापित किया।
निधन
1 मई 2008 को अति प्रात: नई दिल्ली स्थित आवास में उनका निधन हो गया। श्रीमती देशपाण्डे "दीदी" के नाम से विख्यात थीं। दीदी लगभग 60 साल तक सार्वजनिक जीवन में रहीं। वह दो बार राज्यसभा के लिए मनोनीत हुर्इं। निर्मला जी अन्तिम समय तक महात्मा गांधी के सिद्धान्तों के आधार पर लोगों को अधिकार दिलाने के लिए संघर्ष करती रहीं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख
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