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बुरहानपुर

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बुरहानपुर मध्य प्रदेश में ताप्ती नदी के किनारे पर स्थित एक नगर है। यह ख़ानदेश की राजधानी था। इसको चौदहवीं शताब्दी में ख़ानदेश के फ़ारूक़ी वंश के सुल्तान मलिक अहमद के पुत्र नसीर द्वारा बसाया गया।

इतिहास

अकबर ने 1599 ई. में बुरहानपुर पर अधिकार कर लिया। अकबर ने 1601 ई. में ख़ानदेश को मुग़ल साम्राज्य में शामिल कर लिया। शाहजहाँ की प्रिय बेगम मुमताज की सन 1631 ई. में यहीं मृत्यु हुई। मराठों ने बुरहानपुर को अनेक बार लूटा और बाद में इस प्रांत से चौथ वसूल करने का अधिकार भी मुग़ल साम्राट से प्राप्त कर लिया। बुरहानपुर कई वर्षों तक मुग़लों और मराठों की झड़पों का गवाह रहा और इसे बाद में आर्थर वेलेजली ने सन 1803 ई. में जीता। सन 1805 ई. में इसे सिंधिया को वापस कर दिया और 1861 ई. में यह ब्रिटिश सत्ता को हस्तांतरित हो गया।

मुख्य केन्द्र

शेरशाह के समय बुरहानपुर की सड़क का मार्ग सीधा आगरा से जुड़ा हुआ था। दक्षिण जाने वाली सेनायें बुरहानपुर होकर जाती थी। अकबर के समय बुरहानपुर एक बड़ा, समृद्ध एवं जन-संकुल नगर था। बुरहानपुर सूती कपड़ा बनाने वाला एक मुख्य केन्द्र था। आगरा और सूरत के बीच सारा यातायात बुरहानपुर होकर जाता था। बुरहानपुर में ही मुग़ल युग की अब्दुल रहीम ख़ानख़ाना द्वारा बनवाई गई प्रसिद्ध 'अकबरी सराय' भी है।

स्थापत्य कला

बुरहानपुर में अनेकों स्थापत्य कला की इमारतें आज भी अपने सुन्दर वैभव के लिए जानी जाती हैं। इनमें से कुछ निम्नलिखित हैं-

अकबरी सराय

बुरहानपुर के मोहल्ला क़िला अंडा बाज़ार की ताना गुजरी मस्जिद के उत्तर में मुग़ल युग की प्रसिद्ध यादगार अकबरी सराय है। जिसे अब्दुल रहीम ख़ानख़ाना ने बनवाया था। उस समय ख़ानख़ाना सूबा ख़ानदेश के सूबेदार थे। बादशाह जहांगीर का शासन था और निर्माण उन्हीं के आदेश से हुआ था। बादशाह जहांगीर के शासन काल में इंग्लैंड के बादशाह जेम्स प्रथम का राजदूत सर टॉमस रॉ यहाँ आया था। वह इसी सराय मे ठहरा था। उस समय शहज़ादा परवेज़ और उसका पिता जहांगीर शाही क़िले में मौजूद थे।

महल गुलआरा

महल गुलआरा, बुरहानपुर

महल गुलहारा बुरहानपुर से लगभग 21 किमी. की दूरी पर, अमरावती रोड पर स्थित ग्राम सिंघखेड़ा से उत्तर की दिशा में है। फ़ारूक़ी बादशाहों ने पहाड़ी नदी बड़ी उतावली के रास्ते में लगभग 300 फुट लंबी एक सुदृढ दीवार बाँधकर पहाड़ी जल संग्रह कर सरोवर बनाया और जलप्रपात रूप में परिणित किया। जब शाहजहाँ अपने पिता जहाँगीर के कार्यकाल में शहर बुरहानपुर आया था, तब ही उसे 'गुलआरा' नाम की गायिका से प्रेम हो गया था। 'गुलआरा' अत्यंत सुंदर होने के साथ अच्छी गायिका भी थी। इस विशेषता से शाहजहाँ उस पर मुग्ध हुआ। वह उसे दिल-ओ-जान से चाहने लगा था। उसने विवाह कर उसे अपनी बेगम बनाया और उसे 'गुलआरा' की उपाधि प्रदान की थी। शाहजहाँ ने करारा गाँव में उतावली नदी के किनारे दो सुंदर महलों का निर्माण कराया और इस गांव के नाम को परिवर्तित कर बेगम के नाम से 'महल गुलआरा' कर दिया।

शाह नवाज़ ख़ाँ का मक़बरा

शाह नवाज़ ख़ाँ का मक़बरा, बुरहानपुर के उत्तर में 2 किमी. के फासले पर उतावली नदी के किनारे काले पत्थर से निर्मित मुग़ल शासन काल का एक दर्शनीय भव्य मक़बरा है। बुरहानपुर में मुग़ल काल में निर्मित अन्य इमारतों में से इस इमारत का अपना विशेष स्थान है। शाह नवाज़ ख़ाँ का असली नाम 'इरज' था। इसका जन्म अहमदाबाद (गुजरात) में हुआ था। यह बुरहानपुर के सूबेदार अब्दुल रहीम ख़ानख़ाना का ज्येष्ठ पुत्र था। यह मक़बरा इतने वर्ष बीत जाने के पश्चात भी अच्छी स्थिति में है। यह स्थान शहरवासियों के लिए सर्वोत्तम पर्यटन स्थल माना जाता है।

उद्योग व व्यवसाय

बिरहानपुर से आगरा को रूई भेजी जाती थी। अंग्रेज़ यात्री 'पीटर मुण्डी' ने इस नगर के बारे में लिखा है कि यहाँ सभी आवश्यक वस्तुओं का भण्डार था। यहाँ बड़े-बड़े 'काफ़िले' सामान लेकर पहुँचते रहते थे। बुरहानपुर में व्यापक पैमाने पर मलमल, सोने और चाँदी की जरी बनाने और लेस बुनने का व्यापार विकसित हुआ, जो 18वीं शताब्दी में मंदा पड़ गया, फिर भी लघु स्तर पर इन पर इन वस्तुओं का उत्पादन जारी रहा।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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