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#समाधि का विस्तृत उल्लेख किया गया है। इसके बाद योग-सिद्धि के लिए आवश्यक देह तत्त्व का ज्ञान व मूलाधार चक्र से 'कुण्डिलिनी' जागरण आदि की विधि बतायी गयी है। उसके बाद 'नाड़ीचक्र' और 'प्राणवायु' की गति का उल्लेख है। तदुपरान्त प्रणव (ओंकार) जप की प्रक्रिया, प्रणव और ब्रह्म की एकरूपता, प्रणव-साधना, आत्मज्ञान, प्राणायाम अभ्यास, इन्द्रियों का प्रत्याहार आदि पर प्रकाश डाला गया है। योगपरक उपनिषदों में इस 'योगचूड़ामणि' उपनिषद का बड़ा महत्त्व है।  
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#समाधि का विस्तृत उल्लेख किया गया है। इसके बाद योग-सिद्धि के लिए आवश्यक देह तत्त्व का ज्ञान व मूलाधार चक्र से 'कुण्डिलिनी' जागरण आदि की विधि बतायी गयी है। उसके बाद 'नाड़ीचक्र' और 'प्राणवायु' की गति का उल्लेख है। तदुपरान्त [[प्रणव]] (ओंकार) जप की प्रक्रिया, प्रणव और ब्रह्म की एकरूपता, प्रणव-साधना, आत्मज्ञान, प्राणायाम अभ्यास, इन्द्रियों का प्रत्याहार आदि पर प्रकाश डाला गया है। योगपरक उपनिषदों में इस 'योगचूड़ामणि' उपनिषद का बड़ा महत्त्व है।  
  
 
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==संबंधित लेख==
 
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12:34, 4 फ़रवरी 2011 का अवतरण

सामवेदीय परम्परा के इस उपनिषद में 'योग-साधना' द्वारा आत्मशक्ति जागरण की प्रक्रिया का समग्र मार्गदर्शन कराया गया है।

योग द्वारा आत्मशक्ति

सर्वप्रथम योग के छह अंगों-

  1. आसन,
  2. प्राणायाम,
  3. प्रत्याहार,
  4. धारणा,
  5. ध्यान और
  6. समाधि का विस्तृत उल्लेख किया गया है। इसके बाद योग-सिद्धि के लिए आवश्यक देह तत्त्व का ज्ञान व मूलाधार चक्र से 'कुण्डिलिनी' जागरण आदि की विधि बतायी गयी है। उसके बाद 'नाड़ीचक्र' और 'प्राणवायु' की गति का उल्लेख है। तदुपरान्त प्रणव (ओंकार) जप की प्रक्रिया, प्रणव और ब्रह्म की एकरूपता, प्रणव-साधना, आत्मज्ञान, प्राणायाम अभ्यास, इन्द्रियों का प्रत्याहार आदि पर प्रकाश डाला गया है। योगपरक उपनिषदों में इस 'योगचूड़ामणि' उपनिषद का बड़ा महत्त्व है।


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