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13:45, 13 अक्टूबर 2011 के समय का अवतरण

  • सामवेद से सम्बन्धित इस उपनिषद में कुल नौ मन्त्र हैं। इनमें सबसे पहले ब्राह्मणों की श्रेष्ठता और प्रधानता का उल्लेख किया गया है। फिर शरीर, जाति, ज्ञान व कर्म के बारे में प्रश्न है। उपनिषदकार का कहना है कि जो समस्त दोषों से रहित हो, अद्वितीय विद्वान हो, आत्मतत्त्व का ज्ञाता हो, वही ब्राह्मण है। ब्रह्म-भाव से सम्पन्न व्यक्ति ही सच्चा ब्राह्मण है। 'ब्राह्मण,' 'क्षत्रिय,' 'वैश्य' और 'शूद्र', इन चार वर्णों में ब्राह्मण ही श्रेष्ठ है।

क्या शरीर ब्राह्मण है?

  • 'शरीर' ब्राह्मण नहीं है। 'जाति' भी ब्राह्मण नहीं हो सकती। 'ज्ञान' भी ब्राह्मण नहीं है। 'धार्मिक व्यक्ति' भी ब्राह्मण नहीं है। तब ब्राह्मण कौन है?
  • उपनिषदकार कहता है कि जो 'आत्मा' के द्वैत-भाव (आत्मा और परमात्मा को अलग-अलग मानना) से युक्त न हो, जाति गुण, क्रिया से भी युक्त न हो, सभी दोषों से मुक्त हो, सत्य, ज्ञान, आनन्द-स्वरूप, निर्विकल्प, अशेष कल्पों का आधार, समस्त प्राणियों में निवास करने वाला, प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष आत्मा को जानने वाला, काम तथा रागादि दोषों से तटस्थ व कृपालु हो, शम-दम से सम्पन्न हो, तृष्णा, आशा, मोह से दूर हो, अहंकार तथा दम्भ से दूर हो, ऐसा व्यक्ति ही ब्राह्मण है। अत: ब्रह्म-भाव सम्पन्न व्यक्ति को ही ब्राह्मण मानना चाहिए।


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