"सावित्र्युपनिषद" के अवतरणों में अंतर
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*बला और अतिबला नामक विद्याओं के ऋषि विराट पुरुष हैं। छन्द गायत्री है। देवता भी [[गायत्री]] है। साधक उपासना करते हुए कहता है-'जिनके हाथ अमृत से गीले हैं, जो सभी प्रकार की संजीवनी शक्तियों से ओत-प्रोत हैं, जो पापों को पूर्ण करने में सक्षम हैं और जो [[वेद|वेदों]] के सार-स्वरूप, प्रकाश की किरणों के समान हैं, उन ओंकार-स्वरूप भगवान [[सूर्य देवता|सूर्य]]नारायण के समान दीप्तिमय शरीर वाले, बला-अतिबला विद्याओं के अधिष्ठाता देवों की मैं सदैव अनुभूति करता हूँ।' | *बला और अतिबला नामक विद्याओं के ऋषि विराट पुरुष हैं। छन्द गायत्री है। देवता भी [[गायत्री]] है। साधक उपासना करते हुए कहता है-'जिनके हाथ अमृत से गीले हैं, जो सभी प्रकार की संजीवनी शक्तियों से ओत-प्रोत हैं, जो पापों को पूर्ण करने में सक्षम हैं और जो [[वेद|वेदों]] के सार-स्वरूप, प्रकाश की किरणों के समान हैं, उन ओंकार-स्वरूप भगवान [[सूर्य देवता|सूर्य]]नारायण के समान दीप्तिमय शरीर वाले, बला-अतिबला विद्याओं के अधिष्ठाता देवों की मैं सदैव अनुभूति करता हूँ।' | ||
*इस प्रकार सावित्री महाविद्या को समझने वाले साधक सावित्री की कृपा से गदगद हो जाते हैं और वे सावित्री लोक को प्राप्त कर लेते हैं। उन्हें मृत्यु का भय कभी नहीं सताता। | *इस प्रकार सावित्री महाविद्या को समझने वाले साधक सावित्री की कृपा से गदगद हो जाते हैं और वे सावित्री लोक को प्राप्त कर लेते हैं। उन्हें मृत्यु का भय कभी नहीं सताता। | ||
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12:37, 20 जून 2011 का अवतरण
- सामवेदीय परम्परा का यह अन्यत्न लघु उपनिषद है। इसमें सविता-सावित्री के विविध रूपों की परिकल्पना करके उनमें एकत्व भाव का प्रतिपादन किया गया है।
- सर्वप्रथम सविता-सावित्री के युग्म (जोड़ा) और उनके कार्य-कारण को समझाया गया है। उसके बाद सावित्री के तीन चरणों, सावित्री-ज्ञान का प्रतिफल, मृत्यु पर उसकी विजय, बला-अतिबला मन्त्रों का निरूपण और उपनिषद की महिमा का बखान किया गया है।
- सविता और सावित्री क्या है? यम विजय क्या है?
- सविता 'अग्नि' है और सावित्री 'पृथ्वी' है। अग्निदेव पृथ्वी पर ही प्रतिष्ठित होते हैं। जहां पृथ्वी है, वहां अग्नि है। ये दोनों योनियां विश्व को जन्म देने वाली हैं। इन दोनों का एक ही युग्म है। 'वरुण' देव सविता है, तो 'आप:' (जल) सावित्री है। 'वायु' देवता सविता है, तो 'आकाश' सावित्री है। 'यक्ष देव' सविता है, तो 'छन्द' सावित्री है। गर्जन करने वाले 'मेघ' सविता हैं, तो 'विद्युत' सावित्री है।' आदित्य' सविता है, तो 'द्युलोक' सावित्री है। 'चन्द्रमा' सविता है, तो 'नक्षत्र' सावित्री है।'मन' सविता है, तो 'वाणी' सावित्री है। 'पुरुष' सविता है, तो 'स्त्री' सावित्री है।
- इस प्रकार दोनों युग्म का अटूट सम्बन्ध है।
- सावित्री-रूपी महाशक्ति का प्रथम चरण 'भू तत्सवितुर्वरेण्यं है। भूमि पर अग्नि, जल, चन्द्रमा, मेघ वरण के योग्य हैं।
- दूसरा चरण- 'भुव: भर्गो देवस्य धीमहि' है। अग्नि, आदित्य (तेज-स्वरूप, प्रकाश-स्वरूप) देवताओं का तेज़ है।
- तीसरा चरण- 'स्व: धियो यो न: प्रचोदयात्' है। इस सावित्री को जो गृहस्थ जानते हैं, वे पुन: मृत्यु को प्राप्त नहीं होते, अर्थात वे मृत्यु को भी अपने वश में कर लेते हैं।
- पुराणों में 'सावित्री सत्यवान' की कथा में सावित्री यम को वश में कर लेती है और यम को सत्यवान के प्राण लौटाने पड़ते हैं। यह दुष्टान्त इसका श्रेष्ठ उदाहरण है।
- बला और अतिबला नामक विद्याओं के ऋषि विराट पुरुष हैं। छन्द गायत्री है। देवता भी गायत्री है। साधक उपासना करते हुए कहता है-'जिनके हाथ अमृत से गीले हैं, जो सभी प्रकार की संजीवनी शक्तियों से ओत-प्रोत हैं, जो पापों को पूर्ण करने में सक्षम हैं और जो वेदों के सार-स्वरूप, प्रकाश की किरणों के समान हैं, उन ओंकार-स्वरूप भगवान सूर्यनारायण के समान दीप्तिमय शरीर वाले, बला-अतिबला विद्याओं के अधिष्ठाता देवों की मैं सदैव अनुभूति करता हूँ।'
- इस प्रकार सावित्री महाविद्या को समझने वाले साधक सावित्री की कृपा से गदगद हो जाते हैं और वे सावित्री लोक को प्राप्त कर लेते हैं। उन्हें मृत्यु का भय कभी नहीं सताता।
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