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'''बयाना''', ज़िला [[भरतपुर]], [[राजस्थान]] का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस स्थान का प्राचीन नाम '''बाणपुर''' कहा जाता है। इसके अतिरिक्त '''वाराणसी''', '''श्रीप्रस्थ''' या '''श्रीपुर''' नाम भी उपलब्ध है।
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ऊखा मन्दिर से प्राप्त 956 ई. के एक अभिलेख से ज्ञात होता है कि यहाँ का राजा उस समय [[लक्ष्मण सेन]] था।  
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'''बयाना''' [[राजस्थान]] राज्य के [[भरतपुर ज़िला|भरतपुर ज़िले]] में स्थित एक महत्त्वपूर्ण स्थान है। इस स्थान का प्राचीन नाम 'बाणपुर' कहा जाता है। इसके अतिरिक्त, इसके अन्य नाम 'वाराणसी', 'श्रीप्रस्थ' या 'श्रीपुर' भी उपलब्ध हैं। 'ऊखा मन्दिर' से प्राप्त 956 ई. के एक [[अभिलेख]] से ज्ञात होता है कि यहाँ का राजा उस समय [[लक्ष्मण सेन]] था। बयाना [[आगरा]] के निकट स्थित होने के कारण [[इतिहास]] में बहुत प्रसिद्ध रहा है। यहाँ से [[गुप्त काल|गुप्तकालीन]] सिक्के भी प्राप्त हुए हैं, जो यह साबित करते हैं कि यहाँ [[गुप्त]] शासकों का शासन भी रहा था। बयाना अपनी बेहतरीन क़िस्म की नील की पैदावार के लिए प्रसिद्ध था।
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एक किंवदन्ती के अनुसार वाणपुर का सम्बन्ध [[बाणासुर]] तथा उसकी कन्या [[ऊषा]] से बताया जाता है। ऊखा मन्दिर ऊषा का ही स्मारक कहा जाता है। 956 ई. के एक अभिलेख में, जो ऊखा मन्दिर से प्राप्त हुआ था, यहाँ के राजा लक्ष्मण सेन का उल्लेख है। एक अन्य अभिलेख [[बाबर]] के समय का (934 [[हिजरी संवत|हिजरी]] या 1527 ई.), जिससे इस [[वर्ष]] में बाबर का बयाना पर अधिकार सूचित होता है। अवश्य ही बाबर के हाथ में यह प्रदेश [[राणा साँगा|राणा संग्राम सिंह]] के कनवाहा के युद्ध (1527 ई.) में पराजित होने पर आया होगा। बाबर के सेनापति महमूद अली का महल भीतरवाड़ी में अब भग्नावस्था में है।
'''किंवदन्ती में वाणपुर का सम्बन्ध''' [[वाणासुर]] तथा उसकी कन्या [[ऊषा]] से बताया जाता है। ऊखा मन्दिर ऊषा का ही स्मारक कहा जाता है। 956 ई. के एक अभिलेख में, जो ऊखा मन्दिर से प्राप्त हुआ था, यहाँ के राजा [[लक्ष्मण सेन]] का उल्लेख है। एक अन्य अभिलेख [[बाबर]] के समय का (934 हिज़री या 1527 ई.), जिससे इस वर्ष में बाबर का बयाना पर अधिकार सूचित होता है। अवश्य ही बाबर के हाथ में यह प्रदेश राणा [[संग्राम सिंह]] के कनवाहा के युद्ध (1527 ई.) में पराजित होने पर आया होगा। बाबर के सेनापति [[महमूद अली]] का महल [[भीतरवाड़ी]] में अब भग्नावस्था में है।
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महमूद अली के प्रधानमंत्री अजब सिंह भांवरा थे, जो जाति के [[ब्राह्मण]] बताए जाते हैं। इनके नाम से बयाना में भांवरा गली प्रसिद्ध है। इस गली में अजब सिंह के बनवाए हुए चौका महल, गिदोरिया कूप तथा अनासागर बाबड़ी आज भी वर्तमान में हैं। बयाना बहुत समय तक [[जाट]] रियासत [[भरतपुर]] की रिज़ामत (ज़िला) था। हाल ही में 1137 ई. (1194 वि. सं.) का एक अभिलेख [[पाल वंश|पाल]] नरेशों के समय का मागरौल नामक ग्राम से प्राप्त हुआ है, जो इस प्रकार है—<br />
'''महमूद अली के प्रधान मंत्री''' [[अजब सिंह भांवरा]] थे, जो जाति के [[ब्राह्मण]] बताए जाते हैं। इनके नाम से बयाना में भांवरा गली प्रसिद्ध है। इस गली में अजब सिंह के बनवाए हुए चौका महल, गिदोरिया कूप तथा अनासागर बाबड़ी आज भी वर्तमान में हैं। बयाना बहुत समय तक [[जाट]] रियासत भरतपुर की रिज़ामत (ज़िला) था। हाल ही में 1194 वि. सं.=1137 ई. का एक अभिलेख [[पाल वंश|पाल]] नरेशों के समय का [[मागरौल]] नामक ग्राम से प्राप्त हुआ है, जो इस प्रकार है—<br />
 
  
 
'''संवत् 1194 अगहन स्वस्ति श्री ठाकुर साहू राम कील माहड़ ग्राम भाँगसरुवास हर्डखे श्री देवहज श्री पाल लिखी मिति 3'।'''
 
'''संवत् 1194 अगहन स्वस्ति श्री ठाकुर साहू राम कील माहड़ ग्राम भाँगसरुवास हर्डखे श्री देवहज श्री पाल लिखी मिति 3'।'''
====पाल नरेश====
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[[चित्र:Bayana-1.jpg|thumb|250px|left|क़िला, बयाना]]
'''यहाँ के पाल नरेशों में''' [[विजयपाल]] प्रसिद्ध है। एक 'ख्यात' लेखक सूचित करता है कि, वर्तमान बयाना के स्थान पर करावली राजवंश का पहला शासक विजयपाल, जो [[मथुरा]] से यहाँ आया था, ने विजयमंदिर नाम से गढ़ बनाया। इस दुर्ग का नाम बाद में बयाना पड़ गया। 'ख्यात' लेखक से यह जानकारी भी मिलती है कि, विजयपाल के साथ [[महमूद ग़ज़नवी]] का संघर्ष हुआ था। इसी वंश का एक अन्य प्रतिभाशाली शासक [[तिहिनपाल]] या तवनपाल था, जिसने आस-पास का काफ़ी क्षेत्र अपने अधिकार में कर लिया था और '''परमभट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर''' की उपाधि धारण की थी। तिहिनपाल के तीन पुत्र थे, जो पाल भाई नाम से प्रसिद्ध हुए। 1243 विक्रम संवत=1186 ई. का एक अन्य [[हिन्दी]] अभिलेख भी यहाँ पर मिला है। 1196 ई. में [[मुहम्मद ग़ोरी]] का इस क़िले पर अधिकार हो गया।  
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==पाल नरेश==
====दार्शनिक विचार====
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यहाँ के पाल नरेशों में विजयपाल प्रसिद्ध है। एक 'ख्यात' लेखक सूचित करता है कि, वर्तमान बयाना के स्थान पर 'करावली राजवंश' का पहला शासक विजयपाल, जो [[मथुरा]] से यहाँ आया था, ने विजयमंदिर नाम से गढ़ बनाया। इस दुर्ग का नाम बाद में बयाना पड़ गया। 'ख्यात' लेखक से यह जानकारी भी मिलती है कि, विजयपाल के साथ [[महमूद ग़ज़नवी]] का संघर्ष हुआ था। इसी वंश का एक अन्य प्रतिभाशाली शासक तिहिनपाल या तवनपाल था, जिसने आस-पास का काफ़ी क्षेत्र अपने अधिकार में कर लिया था और 'परमभट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर' की उपाधि धारण की थी। तिहिनपाल के तीन पुत्र थे, जो पाल भाई नाम से प्रसिद्ध हुए। 1243 [[विक्रम संवत]]=1186 ई. का एक अन्य [[हिन्दी]] [[अभिलेख]] भी यहाँ पर मिला है। 1196 ई. में [[मुहम्मद ग़ोरी]] का इस क़िले पर अधिकार हो गया।  
'''इब्नबतूता ने अपने वृत्तांत में''' जिन भारतीय शहरों का उल्लेख किया है, उनमें बयाना भी शामिल है, जो उसके महत्त्व को दर्शाता है। बरनी अपने ग्रंथ में [[अलाउद्दीन ख़िलजी]] एवं बयाना के काज़ी मुगीसुद्दीन के बीच लम्बी बातचीत का वर्णन करता है। [[बाबर]] के आक्रमण के समय [[अफ़ग़ान|अफ़गानों]] का इस पर अधिकार था। [[राणा साँगा]] और बाबर में बयाना के निकट ही [[खानवा]] के मैदान में संघर्ष हुआ था। बाद में यह [[शेरशाह सूरी]] के अधिकार में चला गया। यहाँ से बाबर का अभिलेख भी मिला है। [[मुग़ल|मुग़लकाल]] और बाद में यह [[भरतपुर]] के [[जाट]] राजाओं की एक रियासत बन गया।  
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==दार्शनिक विचार==
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[[इब्नबतूता]] ने अपने वृत्तांत में जिन भारतीय शहरों का उल्लेख किया है, उनमें बयाना भी शामिल है, जो उसके महत्त्व को दर्शाता है। [[जियाउद्दीन बरनी]] अपने [[ग्रंथ]] में [[अलाउद्दीन ख़िलजी]] एवं बयाना के क़ाज़ी मुगीसुद्दीन के बीच लम्बी बातचीत का वर्णन करता है। [[चित्र:Bayana.jpg|thumb|250px|क़िले की दीवारें, बयाना]] [[बाबर]] के आक्रमण के समय [[अफ़ग़ान|अफ़गानों]] का इस पर अधिकार था। [[राणा साँगा]] और बाबर में बयाना के निकट ही [[खानवा]] के मैदान में संघर्ष हुआ था। बाद में यह [[शेरशाह सूरी]] के अधिकार में चला गया। यहाँ से बाबर का अभिलेख भी मिला है। [[मुग़ल काल]] और बाद में यह [[भरतपुर]] के [[जाट]] राजाओं की एक रियासत बन गया।
[[आगरा]] के निकट होने के कारण बयाना का दुर्ग सामरिक महत्त्व रखता था। बयाना मध्यकाल में नील की खेती के लिए प्रसिद्ध था। बयाना में सर्वश्रेष्ठ किस्म की नील का उत्पादन होता था, जबकि घटिया किस्म की नील का उत्पादन [[दोआब]], [[खुर्जा]] एवं कोइल ([[अलीगढ़]]) में होता था। सर जदुनाथ सरकार लिखते हैं कि बयाना की नील [[भारत]] के अन्य क्षेत्रों की नील से 50 प्रतिशत अधिक मूल्य पर बिकती थी। यहाँ से नील इराक होते हुए इटली तक भेजी जाती थी।
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==सामरिक महत्त्व==
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[[आगरा]] के निकट होने के कारण बयाना का दुर्ग सामरिक महत्त्व रखता था। बयाना [[मध्यकाल]] में नील की खेती के लिए प्रसिद्ध था। बयाना में सर्वश्रेष्ठ किस्म की नील का उत्पादन होता था, जबकि घटिया किस्म की नील का उत्पादन [[दोआब]], [[खुर्जा]] एवं कोइल ([[अलीगढ़]]) में होता था। [[यदुनाथ सरकार|सर जदुनाथ सरकार]] लिखते हैं कि बयाना की नील [[भारत]] के अन्य क्षेत्रों की नील से 50 प्रतिशत अधिक मूल्य पर बिकती थी। यहाँ से नील इराक होते हुए इटली तक भेजी जाती थी।
'''बयाना से 1821 ई.सोने के''' सिक्कों का भारी ढेर प्राप्त हुआ है, जो [[गुप्तकालीन प्रशासन|गुप्तकालीन]] हैं। इससे गुप्त शासकों की आर्थिक समृद्धि का प्रमाण मिलता है। इनमें अधिक सिक्के [[चन्द्रगुप्त द्वितीय]] के हैं। इन सिक्कों में कई नये प्रकार के सिक्के हैं, जो गुप्त शासकों की विविधता प्रमाणित करते हैं। इन सिक्कों से गुप्तवंशीय [[कुमारगुप्त द्वितीय]] के इतिहास पर नया प्रकाश पड़ता है। यह अनुमान लगाया जाता है कि लगभग 540 ई. के आस-पास [[हूण|हूणों]] के आक्रमण के समय इस खज़ाने को जमीन में गाड़ दिया गया था। यहाँ से [[स्कन्दगुप्त]] का एक ही सिक्का मिला है।
 
  
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बयाना से 1821 ई.सोने के सिक्कों का भारी ढेर प्राप्त हुआ है, जो [[गुप्तकाल|गुप्तकालीन]] हैं। इससे [[गुप्त]] शासकों की आर्थिक समृद्धि का प्रमाण मिलता है। इनमें अधिक सिक्के [[चन्द्रगुप्त द्वितीय]] के हैं। इन सिक्कों में कई नये प्रकार के सिक्के हैं, जो गुप्त शासकों की विविधता प्रमाणित करते हैं। इन सिक्कों से गुप्तवंशीय [[कुमारगुप्त द्वितीय]] के इतिहास पर नया प्रकाश पड़ता है। यह अनुमान लगाया जाता है कि लगभग 540 ई. के आस-पास [[हूण|हूणों]] के आक्रमण के समय इस खज़ाने को ज़मीन में गाड़ दिया गया था। यहाँ से [[स्कन्दगुप्त]] का एक ही सिक्का मिला है।
  
 
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11:04, 3 मार्च 2013 के समय का अवतरण

मुख्य द्वार, बयाना

बयाना राजस्थान राज्य के भरतपुर ज़िले में स्थित एक महत्त्वपूर्ण स्थान है। इस स्थान का प्राचीन नाम 'बाणपुर' कहा जाता है। इसके अतिरिक्त, इसके अन्य नाम 'वाराणसी', 'श्रीप्रस्थ' या 'श्रीपुर' भी उपलब्ध हैं। 'ऊखा मन्दिर' से प्राप्त 956 ई. के एक अभिलेख से ज्ञात होता है कि यहाँ का राजा उस समय लक्ष्मण सेन था। बयाना आगरा के निकट स्थित होने के कारण इतिहास में बहुत प्रसिद्ध रहा है। यहाँ से गुप्तकालीन सिक्के भी प्राप्त हुए हैं, जो यह साबित करते हैं कि यहाँ गुप्त शासकों का शासन भी रहा था। बयाना अपनी बेहतरीन क़िस्म की नील की पैदावार के लिए प्रसिद्ध था।

किंवदन्ती

एक किंवदन्ती के अनुसार वाणपुर का सम्बन्ध बाणासुर तथा उसकी कन्या ऊषा से बताया जाता है। ऊखा मन्दिर ऊषा का ही स्मारक कहा जाता है। 956 ई. के एक अभिलेख में, जो ऊखा मन्दिर से प्राप्त हुआ था, यहाँ के राजा लक्ष्मण सेन का उल्लेख है। एक अन्य अभिलेख बाबर के समय का (934 हिजरी या 1527 ई.), जिससे इस वर्ष में बाबर का बयाना पर अधिकार सूचित होता है। अवश्य ही बाबर के हाथ में यह प्रदेश राणा संग्राम सिंह के कनवाहा के युद्ध (1527 ई.) में पराजित होने पर आया होगा। बाबर के सेनापति महमूद अली का महल भीतरवाड़ी में अब भग्नावस्था में है।

रियासत

महमूद अली के प्रधानमंत्री अजब सिंह भांवरा थे, जो जाति के ब्राह्मण बताए जाते हैं। इनके नाम से बयाना में भांवरा गली प्रसिद्ध है। इस गली में अजब सिंह के बनवाए हुए चौका महल, गिदोरिया कूप तथा अनासागर बाबड़ी आज भी वर्तमान में हैं। बयाना बहुत समय तक जाट रियासत भरतपुर की रिज़ामत (ज़िला) था। हाल ही में 1137 ई. (1194 वि. सं.) का एक अभिलेख पाल नरेशों के समय का मागरौल नामक ग्राम से प्राप्त हुआ है, जो इस प्रकार है—

संवत् 1194 अगहन स्वस्ति श्री ठाकुर साहू राम कील माहड़ ग्राम भाँगसरुवास हर्डखे श्री देवहज श्री पाल लिखी मिति 3'।

क़िला, बयाना

पाल नरेश

यहाँ के पाल नरेशों में विजयपाल प्रसिद्ध है। एक 'ख्यात' लेखक सूचित करता है कि, वर्तमान बयाना के स्थान पर 'करावली राजवंश' का पहला शासक विजयपाल, जो मथुरा से यहाँ आया था, ने विजयमंदिर नाम से गढ़ बनाया। इस दुर्ग का नाम बाद में बयाना पड़ गया। 'ख्यात' लेखक से यह जानकारी भी मिलती है कि, विजयपाल के साथ महमूद ग़ज़नवी का संघर्ष हुआ था। इसी वंश का एक अन्य प्रतिभाशाली शासक तिहिनपाल या तवनपाल था, जिसने आस-पास का काफ़ी क्षेत्र अपने अधिकार में कर लिया था और 'परमभट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर' की उपाधि धारण की थी। तिहिनपाल के तीन पुत्र थे, जो पाल भाई नाम से प्रसिद्ध हुए। 1243 विक्रम संवत=1186 ई. का एक अन्य हिन्दी अभिलेख भी यहाँ पर मिला है। 1196 ई. में मुहम्मद ग़ोरी का इस क़िले पर अधिकार हो गया।

दार्शनिक विचार

इब्नबतूता ने अपने वृत्तांत में जिन भारतीय शहरों का उल्लेख किया है, उनमें बयाना भी शामिल है, जो उसके महत्त्व को दर्शाता है। जियाउद्दीन बरनी अपने ग्रंथ में अलाउद्दीन ख़िलजी एवं बयाना के क़ाज़ी मुगीसुद्दीन के बीच लम्बी बातचीत का वर्णन करता है।

क़िले की दीवारें, बयाना

बाबर के आक्रमण के समय अफ़गानों का इस पर अधिकार था। राणा साँगा और बाबर में बयाना के निकट ही खानवा के मैदान में संघर्ष हुआ था। बाद में यह शेरशाह सूरी के अधिकार में चला गया। यहाँ से बाबर का अभिलेख भी मिला है। मुग़ल काल और बाद में यह भरतपुर के जाट राजाओं की एक रियासत बन गया।

सामरिक महत्त्व

आगरा के निकट होने के कारण बयाना का दुर्ग सामरिक महत्त्व रखता था। बयाना मध्यकाल में नील की खेती के लिए प्रसिद्ध था। बयाना में सर्वश्रेष्ठ किस्म की नील का उत्पादन होता था, जबकि घटिया किस्म की नील का उत्पादन दोआब, खुर्जा एवं कोइल (अलीगढ़) में होता था। सर जदुनाथ सरकार लिखते हैं कि बयाना की नील भारत के अन्य क्षेत्रों की नील से 50 प्रतिशत अधिक मूल्य पर बिकती थी। यहाँ से नील इराक होते हुए इटली तक भेजी जाती थी।

पुरामहत्त्व

बयाना से 1821 ई.सोने के सिक्कों का भारी ढेर प्राप्त हुआ है, जो गुप्तकालीन हैं। इससे गुप्त शासकों की आर्थिक समृद्धि का प्रमाण मिलता है। इनमें अधिक सिक्के चन्द्रगुप्त द्वितीय के हैं। इन सिक्कों में कई नये प्रकार के सिक्के हैं, जो गुप्त शासकों की विविधता प्रमाणित करते हैं। इन सिक्कों से गुप्तवंशीय कुमारगुप्त द्वितीय के इतिहास पर नया प्रकाश पड़ता है। यह अनुमान लगाया जाता है कि लगभग 540 ई. के आस-पास हूणों के आक्रमण के समय इस खज़ाने को ज़मीन में गाड़ दिया गया था। यहाँ से स्कन्दगुप्त का एक ही सिक्का मिला है।


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