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*लौद्रवा को भट्टी राजवंश की राजधानी होने का गौरव प्राप्त हैं।
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==स्थिति तथा इतिहास==
*यहाँ के [[भग्नावशेष|भग्नावशेषों]] में [[जैन]] धर्मावलम्बियों ने कुछ धार्मिक स्थलों का जीर्णोद्धार किया।
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[[जैसलमेर]] से 15 कि.मी. दूर काक नदी के किनारे बसा लोद्रवा [[ग्राम]] व यहां के कलात्मक जैन मंदिर तो देखते ही बनते हैं। ऐसा माना जाता है कि लोद्रवा ग्राम को 'लोद्रवा' व 'रोद्रवा' नामक [[राजपूत]] जातियों ने बसाया था। प्राचीन काल में लोद्रवा अत्यन्त ही हरा-भरा [[कृषि]] क्षेत्र था। लोद्रवा एक सुन्दर स्थान तो था ही, इसके साथ-साथ यहां के लोग भी समृद्ध थे।<ref name="aa">{{cite web |url= http://dainiktribuneonline.com/2011/03/%E0%A4%A6%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B6%E0%A4%A8%E0%A5%80%E0%A4%AF-%E0%A4%B9%E0%A5%88%E0%A4%82-%E0%A4%B2%E0%A5%8B%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%B5%E0%A4%BE-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%95%E0%A4%B2/|title= दर्शनीय हैं लोद्रवा के कलात्मक जैन मंदिर|accessmonthday= 13 अक्टूबर|accessyear=2014 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=दैनिक ट्रिब्यून|language= हिन्दी}}</ref>
*इसके फलस्वरूप लौद्रवा जैन सम्प्रदाय का प्रमुख तीर्थ स्थल बन गया हैं।  
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==मंदिरों का पुनर्निर्माण==
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09:04, 13 अक्टूबर 2014 का अवतरण

लौद्रवा जैन मंदिर, जैसलमेर

लौद्रवा राजस्थान के जैसलमेर शहर से 15 कि.मी. दूर स्थित एक ऐतिहासिक स्थान है। मध्यकालीन मंदिरों के लिए यह स्थान प्रसिद्ध है। लौद्रवा को 'भट्टी राजवंश की राजधानी' होने का गौरव प्राप्त है। यहाँ के भग्नावशेषों में जैन धर्मावलम्बियों ने कुछ धार्मिक स्थलों का जीर्णोद्धार करवाया था। इसके फलस्वरूप लौद्रवा जैन सम्प्रदाय का प्रमुख तीर्थ स्थल बन गया।

स्थिति तथा इतिहास

जैसलमेर से 15 कि.मी. दूर काक नदी के किनारे बसा लोद्रवा ग्राम व यहां के कलात्मक जैन मंदिर तो देखते ही बनते हैं। ऐसा माना जाता है कि लोद्रवा ग्राम को 'लोद्रवा' व 'रोद्रवा' नामक राजपूत जातियों ने बसाया था। प्राचीन काल में लोद्रवा अत्यन्त ही हरा-भरा कृषि क्षेत्र था। लोद्रवा एक सुन्दर स्थान तो था ही, इसके साथ-साथ यहां के लोग भी समृद्ध थे।[1]

ग़ोरी द्वारा आक्रमण

बारहवीं शताब्दी में जब मुहम्मद ग़ोरी ने भारत के मंदिरों को लूटना व नष्ट करना शुरू किया तो यह शहर भी उसकी नजरों से बच न सका। उस समय इस नगर के शासक भुजदेव थे। मुहम्मद ग़ोरी के भयानक आक्रमण के दौरान भुजदेव भी युद्ध में मारे गए थे व यहां के जैन मंदिर भी आक्रमणकारियों ने नष्ट कर दिए थे।

मंदिरों का पुनर्निर्माण

बाद में कुछ वर्षों के पश्चात् यहां के पांचों जैन मंदिरों का पुनर्निर्माण घी का व्यापार करने वाले थारुशाह ने विक्रम संवत 1675 में करवाया। इन मंदिरों के निर्माण में प्रयुक्त पत्थरों को सोना देकर खरीदा गया था। लोद्रवा स्थित जैन मंदिरों में भगवान पार्श्वनाथ की मूर्ति सफ़ेद संगमरमर से निर्मित है। मूर्ति के ऊपर सिर पर हीरे जड़े हुए हैं, जिससे मूर्ति अत्यन्त आकर्षक लगती है। मंदिरों को कलात्मक रूप देने के लिए पत्थर के शिल्पियों ने मंदिरों के स्तंभों व दीवारों पर देवी-देवताओं की मूर्तियां उत्कीर्ण कर इसके सौंदर्य को बढ़ाया है। मंदिर को अधिक गरिमा प्रदान करने के लिए नौवीं-दसवीं शताब्दी में मंदिर के सम्मुख तोरण द्वार बनाने की भी परंपरा थी। मंदिर के समस्त स्तंभों में मुखमंडप के स्तंभों का घट-पल्लव अलंकरण सर्वाधिक कुशलता एवं सौंदर्य का परिचय देता है। हालांकि मंदिर की मौलिकता तथा वास्तु योजना को ज्यों का त्यों रखा गया है। लोद्रवा का जैन मंदिर वास्तुकला एवं मूर्तिकला की शैली की शताब्दियों लंबी विकास यात्रा का भी साक्ष्य प्रस्तुत करता है।

दर्शनीय स्थल

पार्श्वनाथ मंदिर के समीप एक कलात्मक बनावटी कल्प वृक्ष है, जिसमें चीते, बकरी, गाय, पक्षी व अनेक जानवरों को भी एक साथ दर्शाया गया है। कल्प वृक्ष जैन धर्मावलंबियों के लिए समृद्धि व शांति का द्योतक है। लोद्रवा स्थित काक नदी के किनारे रेत में दबी भगवान शिव की अनोखी मूर्ति है, जिसके चार सिर हैं। यह मूर्ति केवल अर्द्धभाग तक ही दृष्टिगत है। इसके साथ ही नदी के किनारे पर 'महेंद्र-भूमल' की प्रेम कहानी को विस्मृत न होने देने के लिए उनकी याद में एक मेढ़ी बनी हुई है, जो 'भूमल की मेढ़ी' के नाम से विख्यात है। लोद्रवा में प्राचीन काल में बने घर, कुएं, तालाब व कलात्मक स्नान घर के अवशेष देखने को मिलते हैं, जो अतीत के वैभव को दर्शाते हैं।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 दर्शनीय हैं लोद्रवा के कलात्मक जैन मंदिर (हिन्दी) दैनिक ट्रिब्यून। अभिगमन तिथि: 13 अक्टूबर, 2014।

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