अंतरिक्ष किरणें
अंतरिक्ष किरणें पृथ्वी के वायुमंडल के बाहर (अंतरिक्ष) से आती हैं। इन किरणों के अधिकांश भागों में अत्यधिक ऊर्जा वाले प्रोटॉन होते हैं। इसके अतिरिक्त कुछ अल्फा कण होते हैं। उक्त किरणें अंतरिक्ष में उत्पन्न होती हैं, इसलिए इनका नाम अंतरिक्ष किरण रख दिया गया।[1]
विभाजन
अंतरिक्ष किरणें पृथ्वी के वायुमंडल में विभिन्न गैसों के नाभिकों (न्यूक्लियस) से टकराती हैं, जिससे अन्य आवेशित कणिकाएँ[2] तथा बहुत अधिक ऊर्जा वाली गामा किरणें उत्पन्न होती हैं। इस प्रकार अंतरिक्ष किरणें दो भागों में बाँटी जा सकती हैं-
- प्राथमिक अंतरिक्ष किरणें
- द्वितीयक अंतरिक्ष किरणें
प्राथमिक अंतरिक्ष किरणें
प्राथमिक अंतरिक्ष किरणें बाहर से पृथ्वी के वायुमंडल तक आती हैं। जैसा पहले बताया गया है, ये किरणें प्रोटॉन और अल्फा कण होती हैं।
द्वितीयक अंतरिक्ष किरणें
द्वितीयक अंतरिक्ष किरणें प्राथमिक अंतरिक्ष किरणें पृथ्वी के वायुमंडल में गैसों के नाभिकों से टकराती हैं तो उक्त नाभिकों का विघटन हो जाता है। इनके विघटन से बहुत से प्रोटॉन, न्यूट्रॉन तथा गामा किरणें निकलती हैं। इसके अतिरिक्त कुछ कणिकाएँ भी उत्पन्न होती हैं जिन्हें मेसान कहा जाता है।
उत्पत्ति
अंतरिक्ष की किरणों की उत्पत्ति के संबंध में अभी कोई निश्चित सिद्धांत नहीं दिया जा सका है। वैज्ञानिकों का विचार है कि ये आवेशित कण आकाश गंगा में ही उत्पन्न होते हैं। इनकी ऊर्जा इतनी अधिक कैसे हो जाती है। कुछ वैज्ञानिकों की राय है कि सूर्य के चारों ओर चुंबकीय क्षेत्र है जिसमें परिवर्तन होता रहता है। इस पारवर्ती चुंबकीय क्षेत्र में आवेशित कण बीटा ट्रॉन के सिद्धांत के अनुसार त्वरित हो जाते हैं। अन्य वैज्ञानिक मानते हैं कि परिवर्ती चुंबकीय क्षेत्र पूरी आकाश गंगा में व्याप्त है जहाँ कणों का त्वरण होता है। मिलिकन के अनुसार अंतरिक्ष किरणों की उत्पत्ति का कारण अंतस्तारकीय आकाश में द्रव्य का नष्ट होना है। मिलिकन की इस कल्पना ने अंतरिक्ष किरणों के अध्ययन की और अधिक प्रोत्साहन दिया।[1]
छेदन शक्ति
प्रारंभ में ऐसी धारणा थी कि अंतरिक्ष किरणें बहुत छोटी तरंग दैर्ध्य वाली केवल गामा किरणें ही हैं, जिनकी छेदन शक्ति अत्यधिक है। छेदन शक्ति में इन नई किरणों की तुलना दूसरी ज्ञात विकिरणों से निम्नांकित प्रकार से की जा सकती है-
साधारण प्रकाश की छेदन शक्ति
साधारण प्रकाश अपारदर्शी पदार्थों की केवल महीन चादर का, जैसे कागज के वर्क का अथवा उससे कहीं अधिक महीन धातु के आवरण का छेदन कर सकता है। इसकी अपेक्षा एक्स रश्मियों की छेदन शक्ति इतनी अधिक होती है कि वे हमारे हाथ अथवा सारे शरीर से भी होकर निकल सकती हैं, जिसके फलस्वरूप शल्य चिकित्सक हमारी हड्डियों का फोटो ले सकता है। किंतु कुछ ही मिली मीटर मोटी धातु इन एक्स रश्मियों को पूर्णतया रोक सकता है। गामा किरणें कुछ सेंटी मीटर मोटी धातु का छेदन कर सकती हैं। यह नया विकिरण कई मीटर मोटे सीसे (धातु) का छेदन कर सकता है और पानी की एक हजार मीटर गहराई तक घुस सकता है।
प्रकृति व अक्षांश प्रभाव
अंतरिक्ष किरणों की प्रकृति के बारे में जानकारी अक्षांश प्रभाव से प्राप्त हुई। इसका आविष्कार क्ले ने 1927 ई. में और उसके बाद और अधिक गहनता से कांपटन ने किया था। अक्षांश प्रभाव की व्याख्या हम इस तरह कर सकते हैं कि अंतरिक्ष किरणों के प्राथमिक कण आवेश युक्त कण हैं जो कई हजार मील तक आकाश में फैले हुए पृथ्वी के चुंबकत्व क्षेत्र से प्रभावित हुए हैं। जितनी कम इन कणों की ऊर्जा होती है उतना ही अधिक उनके पथ चाप के रूप में झुक जाते हैं। अंतरिक्ष किरणों की तीव्रता भूमध्यरेखा पर सबसे कम है और ध्रुवों की ओर बढ़ती जाती है। समुद्र तल की अपेक्षा अक्षांश प्रभाव ऊँचाई पर बहुत अधिक होता है। जैसे ही अंतरिक्ष किरणों के कण पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करते हैं, वैसे ही हवा के नाभिकों के साथ उनकी पारस्परिक क्रिया होती है, जिसके फलस्वरूप अनेक प्रकार के मूल कण पैदा हो जाते हैं। इनमें से कुछ कण ऐसे होते हैं जो अन्य किसी रीति से प्रकृति में उत्पन्न नहीं होते। ये कण रेडियमधर्मी होते हैं, जिनमें से कुछ 10-6 सेकेंड में समाप्त हो जाते हैं और कुछ 10-1 अथवा 10-14 सेकेंड में।
आवेश युक्त कण
अंतरिक्ष किरणों के बारे में और भी अधिक जानकारी 1927 ई. में स्कोबेल्टज़ाइन ने की, जब उसने एक मेघकक्ष में उच्च ऊर्जा वाले आवेश कणों के उर्ध्वाधर पथ चिह्न देखे। 1928 में बोटे और कोल होयर्स्टर ने अंतरिक्ष किरणों के अनुसंधान की एक नई रीति अपनाई, जिसमें कई गाइगर-म्युलर-गणक एक साथ संबद्ध रहते थे। इस प्रयोग द्वारा उन्होंने सिद्ध किया कि अंतरिक्ष किरणें आवेश युक्त कण हैं।
वायुमंडल में प्रवेश करने पर क्रियाएँ
वायुमंडल में अंतरिक्ष किरणों के प्रवेश करने पर जो क्रियाएँ होती हैं, उनका सामान्य रूप स्पष्ट है। वायुमंडल की ऊपरी तहों में प्राथमिक अंतरिक्ष किरणों के प्रोटॉन और अधिक भारी नाभिकों का अवशोषण हो जाता है, जिसके फलस्वरूप द्वितीयक प्रोटॉन और न्यूट्रॉन, पाई-मेसान और अधिक भारी मेसान बनते हैं। आवेश रहित पाई-मेसान के विघटन (डिसोसिएशन) से प्रकाश के दो क्वांटम बनते हैं, जिनसे घनात्मक और ऋणात्मक इलेक्ट्रॉन पैदा होते हैं। जैसे ही ये इलेक्ट्रान नाभिकों के पास पहुँचते हैं, ये फोटान बन जाते हैं और इस प्रकार यह क्रिया बढ़ती जाती है। इलेक्ट्रानों और फोटानो के कोमल घटक[3] की तीव्रता पहले वायुमंडल में गहराई के साथ तेज़ीसे बढ़ती है और फिर, जैसे-जैसे इन बौछार पैदा करने वाले कणों का अवशोषण होता है, घटती है। समुद्र तल के पास कोमल घटक के इस अंश की तीव्रता बहुत कम हो जाती है।
आवेशयुक्त पाई-मेसानों के विघटन से म्यू-मेसान बनते हैं। म्यूमेसान की नाभिकों के साथ अधिक क्रिया प्रतिक्रिया नहीं होती। नाभिकों के साथ अत्यंत दुर्बल क्रिया प्रतिक्रिया के परिणाम स्वरूप उनमें बहुत अधिक भेदन शक्ति दिखाई पड़ती है। वे पृथ्वी में बड़ी गहराई तक प्रवेश कर सकते हैं। अत: वे अंतरिक्ष किरणों के तीव्र घटक होते हैं। म्यू-मेसान नष्ट होने पर इलेक्ट्रॉन उत्पन्न करते हैं। टकराने से भी इलेक्ट्रॉन पैदा होते हैं। समुद्र तल के पास ये इलेक्ट्रान तथा इनके द्वारा उत्पन्न हुई इलेक्ट्रॉन-फोटॉन की बौछारों से कोमल घटक का मुख्य अंश बनता है।
तारक
पाई-मेसान के कारण नाभिक विघटित होते हैं, जिन्हें तारक (स्टार) कहते हैं। लघु-ऊर्जा-प्रदेश में तारक न्यूट्रान के कारण उत्पन्न होते हैं। अत्यधिक ऊर्जा वाले कण बड़ी वायु बौछारें पैदा करते हैं। एक-एक वायु बौछार में दस करोड़ से भी अधिक कण मिले हैं। कणों के बीच की दूरी एक ही वायु बौछार में हजार मीटर से भी अधिक पाई गई है।
किरणों की तीव्रता
अंतरिक्ष किरणों की तीव्रता में प्रेक्षण स्थल पर की परिस्थितियों से परिवर्तन होता है। उनकी तीव्रता वायु की दाब, ताप एवं पृथ्वी के चुंबकत्व क्षेत्र के साथ बदलती है। प्रेक्षण स्थल के ऊपर हवा की मोटाई और उसकी अवशोषण शक्ति में परिवर्तन को इसका कारण बताया जा सकता है। अंतरिक्ष किरणों में सामयिक परिवर्तन भी होते हैं। जैसे, लंबे समय वाले परिवर्तन, 27 दिन वाले परिवर्तन, सौर समय के अनुसार होने वाले परिवर्तन, और बहुत कम मात्रा में नाक्षत्र समय के अनुसार होने वाले परिवर्तन। ये सामयिक परिवर्तन बहुत कम मात्रा में होते हैं, प्रतिशत के केवल दो-चार-दसवें भाग तक। पृथ्वी के वायुमंडल के बाहर अंतरिक्ष किरणों की तीव्रता और सामयिक परिवर्तनों के बीच संबंध जोड़ने के लिए प्रेक्षणों को ताप और दाव के लिए सही करना पड़ता है। सौर समय के अनुसार तीव्रता में दैनिक परिवर्तन होने की खोज बहुतेरे अनुसंधानकर्ताओं ने की है। उनके विश्व विस्तृत स्वरूप को फोरबुश ने सिद्ध किया।
परिवर्तन की मात्रा, पश्चात् मध्याह्न दो बजे के आसपास, जो अधिकतम तीव्रता का समय है, लगभग 0.2 प्रतिशत होती है। तीव्रता में सामयिक परिवर्तनों के अतिरिक्त असामयिक प्रभाव भी होते हैं। सबसे अधिक महत्व वाला प्रभाव चुंबकीय तूफानों से संबंधित हैं, जिसके विश्व विस्तृत रूप को फोरबुश ने अंतरिक्ष किरणों की तीव्रता का अध्ययन करके दिखाया है। ये विश्व विस्तृत परिवर्तन इस मत का एक और प्रमाण हैं कि अंतरिक्ष किरणों का उत्पत्ति स्थान पृथ्वी के बाहर है। समुद्र की सतह पर अंतरिक्ष किरणों की तीव्रता के पृथ्वी के चुंबकत्व पर निर्भर होने का अर्थ यह है कि पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र में परिवर्तनों के साथ अंतरिक्ष किरणों की तीव्रता में परिवर्तन होते हैं। अंतरिक्ष किरणों और पृथ्वी के साधारण चुंबकीय विचरण (घट-बढ़) में कोई घनिष्ठ संबंध नहीं मिलता; अर्थात् शांत दिनों में पृथ्वी के साधारण चुंबकीय प्रभाव का अंतरिक्ष किरणों से कोई सार्थक संबंध नहीं है।
यह देखा गया है कि विश्व विस्तृत अंतरिक्ष किरणों की तीव्रता का पृथ्वी के चुंबकत्व क्षेत्र के क्षैतिज घटक के परिवर्तनों से घनिष्ठ संबंध है। चुंबकीय तूफानों के समय अंतरिक्ष किरणों की तीव्रता में बहुत स्पष्ट परिवर्तन होता है। कुछ चुंबकीय तूफानों का प्रभाव अंतरिक्ष किरणों की तीव्रता पर नहीं देखा जाता, किंतु जब क्षैतिज चुंबक बल एक प्रतिशत कम होता है तो अंतरिक्ष किरणों की तीव्रता में साधारणत पाँच प्रतिशत से अधिक कमी हो जाती है। अंतरिक्ष किरणों के अध्ययन से कई मौलिक कणों (द्र., कण मौलिक) का पता चला है। इन्हीं किरणों के अध्ययन से नाभिकीय बलों के विषय में भी जानकारी मिली है।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 अंतरिक्ष किरणें (हिन्दी) भारतखोज। अभिगमन तिथि: 19 जुलाई, 2015।
- ↑ चार्ज्ड पार्टिकल्स
- ↑ component