अंशशोधन
अंशशोधन (अंग्रेज़ी: Calibration) दो मापनों की तुलना को कहा जाता है। यदि थर्मामीटर की नली का भीतरी व्यास सर्वत्र समान न हो तो बराबर दूरी पर डिग्री का चिन्ह लगाने से त्रुटियाँ उत्पन्न होंगी। फलत: ताप की सच्ची नाप के लिए यह जानना आवश्यक होता है कि प्रत्येक चिन्ह पर कितनी त्रुटि है। इसी प्रकार प्रत्येक मापक यंत्र के लिए यह जानना आवश्यक हो जाता है कि प्रत्येक चिन्ह (अंश) पर कितनी त्रुटि है। इसी को 'अंशशोधन' कहते हैं।
मापक यंत्र का अंशशोधन
यंत्र कितनी भी सावधानी से क्यों न बनाएँ, फिर भी कहीं न कहीं कुछ त्रुटि हो ही जाती है। फिर समय बचाने के लिए यंत्र निर्माता बहुधा पूर्ण शुद्धता लाने की चेष्टा भी नहीं करते। इसलिए सूक्ष्म नापों में अंशशोधन महत्वपूर्ण होता है। 'अंतर्राष्ट्रीय विज्ञान संघ' ने मौलिक तथा उद्भूत राशियों की परिभाषाएँ दे रखी हैं और उनकी इकाइयाँ भी निश्चित कर दी हैं। इनके मापने के लिए प्रामाणिक उपकरण भी बनाए गए हैं। यदि कोई नया मापक यंत्र बनाया जाता है तो उसका अंशशोधन उन्हीं प्रामाणिक यंत्रों के अंशों की तुलना से किया जाता है। उदाहरण-
सेंटीग्रेड ताप मापक का अधोबिंदु शुद्ध जल का हिमांक माना गया है और ऊर्ध्वबिंदु क्वथनांक। हिमांक और क्वथनांक जल की अशुद्धियों और न्यूनाधिक वायुदाब के कारण बदल जाते हैं। अत: निम्नलिखित भौतिक परिस्थितियाँ भी निर्धारित कर दी गई हैं, जल शुद्ध होना चाहिए और वायुदाब 76 सेमी. पारदस्तंभ के बराबर होना चाहिए। नया ताप मापक बनाते समय नली की घुंडी (बल्ब) में पारा भरकर इन दो बिंदुओं का स्थान नली में पहले अंकित किया जाता है। फिर इनके बीच स्थान को 100 बराबर भागों में बाँट दिया जाता है।[1]
ताप ज्ञात करना
किसी वस्तु का ताप ज्ञात करते समय, माना पारे की सतह 40 अंश पर पहुँची, तो 40° तभी शुद्ध पाठ होगा। जब नली का प्रस्थछेद [2]सर्वत्र एक समान हो और 0° से 100° के चिन्ह बराबर दूरी पर लगाए गए हो। किंतु नली का प्रस्थछेद आदर्श रूप में सर्वत्र समान नहीं होता और अंशांकन में भी त्रुटियाँ हो सकती हैं। इन्हीं कारणों से अंशशोधन की आवश्यकता पड़ती है। इसके लिए नए ताप मापक यंत्रों के पाठों की तुलना एक प्रामाणिक ताप मापक से की जाती है जो उसी के साथ समान परिस्थिति में रखा रहता है।
प्रस्थछेद की समानता की जाँच
प्रस्थछेद की समानता की जाँच नली में पारे का लगभग एक इंच लंबा स्तंभ रखकर और उसे विविध स्थानों पर खिसकाकर की जा सकती है। यदि प्रस्थछेद सर्वत्र समान होगा तो पारे के स्तंभ की लंबाई सर्वत्र समान होगी। इसी प्रकार दो स्थिर दूर सूक्ष्मदर्शीयों के बीच पड़ने वाले अंश चिन्हों को कई स्थानों में देखकर स्थिर किया जा सकता है कि नली पर सब चिन्ह बराबर दूरियों पर लगे हैं या नहीं। यदि प्रस्थछेद एक समान है और चिन्ह बराबर दूरियों पर हैं तो दूसरा शोधन हमें अधोबिंदु और ऊर्ध्वबिंदु के लिए करना पड़ता है। इनका निशान अप्रामाणिक परिस्थितियों में लगाया गया है। जल में अशुद्धि हो सकती है और वायुदाब भी ठीक 76 सेमी. नहीं रहता। इन कारणों से जल का हिमांक और क्वथनांक बदल जाता है। अत: भिन्न-2 परिस्थितियों में ताप मापक के अधोबिंदु तथा ऊर्ध्वबिंदु के पाठ लिए जाते हैं और प्रामाणिक ताप मापक के पाठों से तुलना कर दोनों बिंदुओं के संशोधन का मान निकाला जाता है। फिर ताप मापक के अंश रेखा पर तथा संशोधन रेखा पर अंकित कर लेखाचित्र[3] बना लिया जाता है। इस लेखाचित्र द्वारा भिन्न-2 परिस्थितियों में ताप मापक के किसी पाठ का संशोधित मान ज्ञात होता है।[1]
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