अनुनाद
अनुनाद किसी वस्तु में ध्वनि के कारण अनुकूल कंपन उत्पन्न होना तथा उसके स्वर आदि में वृद्धि होने को अनुनाद (रेजोनैंस) कहते हैं। भौतिक जगत की क्रियाओं में हम यांत्रिक अनुनाद और वैद्युत अनुनाद पाते हैं। द्रव्य और ऊर्जा के बीच भी अनुनाद होता है, जिसके द्वारा हमें द्रव्य के अनुनादी विकिरण का पता लगता है।
यांत्रिक अनुनाद-प्रत्येक वस्तु की एक कंपनसंख्या होती है जो उसकी बनावट, प्रत्यास्थता और भार पर निर्भर रहती है। तनिक ठुनका देने पर घंटे, घंटियाँ, थाली तथा अन्य बर्तन प्रत्येक सेकंड में इसी संख्या के बराबर कंपन करने लगते है और तब उनके संपर्क से वायु में ध्वनि नहीं सुनाई पडती, जैसे पेंडूलम आदि के दोलन में। यदि कंपन संख्या 30 से कम होती है, तो ध्वनि नहीं सुनाई पड़ती, जैसी पेंडुलम आदि के दोलन में। यदि कंपन संख्या 30 से अधिक और 30,000 से कम होती है तो स्वर सुनाई पडता है, जैसे सितार के तार, धातु के छड़ अथवा घड़े की हवा आदि के कंपन से निकले स्वर। कंपन के 30,000 प्रति सेकंड से अधिक होने पर स्वर नहीं सुनाई पड़ता।
चित्र : 1-यदि दोनों स्वरित्रों की कंपनसंख्याएँ बराबर हैं तो उनके बीच अनुनाद होता है।
किसी दोलक (पेंडुलम) की कंपनसंख्या उसकी लंबाई पर निर्भर रहती है। यदि एक ही लंबाई के दो दोलक क और ख किसी तनी हुई रस्सी से लटकाए गए हों तो क को दोलित करने से थोड़ी देर बाद ख भी रस्सी द्वारा शक्ति पाकर दोलित हो जाता है। दोनो में शक्ति का आदान प्रदान होता है। यह तभी संभव है जब दोनों की कंपनसंख्याएँ बराबर हों।
चित्र : 2 क और ख में अनुनाद होता है, ग में नहीं।
यदि दो स्वरित्र (ट्यूनिंग फोर्क) लड्ढड़ी के तख्ते पर जड़े हुए हों और प्रत्येक की कंपनसंख्या 256 हो, तोे उनमें से एक को ठुनका देने पर दूसरा स्वत: कंपित हो जाता है। इसी प्रकार किन्हीं दो तारों में अनुनाद होता है। यदि क कंपनसंख्या प्रति सेकंड है, तार की लंबाई ल सेटीमीटर है, त ग्रामभार में तार का तनाव है और भ तार का भार प्रति सेंटीमीटर है तो यदि दोनों तार ताने गए हों तो अनुनाद के लिए
(त)/2ल,भ, और(त)/2ल,भ
को बराबर होना चाहिए, जहाँ एक प्रास (डैश) लगे अक्षर एक तार से संबंघ रखते है, और दो प्रास लगे अक्षर दूसरे तार से।
वैद्युतिक अनुनाद-दो कंपनशील विद्यूत-परिपथों में भी अनुनाद होता है। विद्यूत-परिपथ का कंपन उसकी विद्यूद्धारिता (कपैसिटी) धा और उपादन उ पर निर्भर रहता है और दोलन संख्या क=1/2pउ धा होती है। यदि दो परिपथों की कंपनसंख्याएँ बराबर हों, अर्थात क=क, तों दोनों में अनुनाद होता है।
वैद्युतिक अनुनाद की ओर सर्वप्रथम सर ऑलिवर लॉज का ध्यान आकृष्ट हुआ। उन्होंने एक ही विद्युद्धारिता के दो लाइडन जारों को समान विद्युत विभव का बनाया। एक परिपथ के लाइडन जारों को प्रेरणा कुंडली (इंडक्शन कॉएल) अथवा विम्जहर्ट मशीन से आविष्ट किया। देखा कि ज्योंही उस कुंडली की झिरी में विद्युत स्फुलिंग विसर्जित होता है त्योंही दूसरी कुंडली की झिरी में भी स्फुलिंग उत्पन्न होता है। इस भाँति वैद्युतिक अनुनाद का प्रदर्शन कर सर ऑलिवर लॉज ने विद्यूत-शक्ति-प्रेषणा का सिद्वांत स्थापति किया। दोनों कंपनशील परिपथों में पहले को प्रेषी (ट्रैंसमिटर) और दूसरे को संग्राही (रिसीवर) कहते हैं। स्पष्ट है कि वैद्युतिक अनुनाद के लिए 2p (उधा¢)=2p (उ,धा), अर्थात, उ,धा.=उ,ध।
एक परिपथ के कंपन को निश्चित कर दूसरी में उ अथवा धा को अदल बदलकार इसकी कंपनसंख्या को पहली की कंपनसंख्या से मिलाया जाता है। इस क्रिया को समस्वरण (ट्यूनिंग) कहते है। दोनों के मेल खाने पर अनुनाद उत्पन्न होता है।
रेडियो तरंगों का प्रेषणा और ग्रहण इसी सिद्धांत पर संभव हुआ। हाइनरिक रूडोल्फ हर्टज, गुग्लिमो मारकोनी, ब्रैनली, जगदीशचंद्र बोस आदि वैज्ञानिकों ने इसी सिद्धांत पर परिपथ की शक्ति बढ़ाकर तथा अन्य अपयोगी साधनों का प्रयोग कर विभिन्न दोलनसंख्याओं के प्रेषक और ग्राहक यंत्र बनाए थे।
टामस आर्थर एडिसन और ओ.डब्ल्यू. रिचार्डसन ने तापायनिक वाल्व का आविष्कार किया। उसी सिद्धांत पर द्वध्रुिवी, फिर चर्त्ध्रुाुवी और पंचध्रुवी वाल्वों का निर्माण हुआ। इनके द्वारा निश्चित कंपनसंख्या और प्रबल शक्ति के वैद्युत परिपथ बनाए गए और विशाल प्रेषकों से रेडियो की तरंगों द्वारा समाचार, गाने और खबरें प्रेषित होने लगीं। इन सबकी क्रियाविधि वैद्युत अनुनाद पर आधारित है।
द्रव्य और ऊर्जा संबंधी अनुनाद-आधुनिक वैज्ञानिक साधनों से हमें पदार्थरचना और तत्संबंधी विकीर्ण शक्तियों की जानकारी सुलभ है। अणु तथा परमाणु के विशिष्ट वर्णक्रम होते है। नील्स बोर के अनुसार अणु एवं परमाणु में शक्ति की कई स्थितियाँ होती है। बाहरी शक्ति की प्रेरणा से उत्तेजित होकर अणु तथा परमाणु साधारण स्थिति से अन्य उत्तेजित स्थितियों में जाते है और वहाँ से लौटती बार विभिन्न तरंगदैर्ध्यो की रश्मियाँ विकीर्ण करते हैं। प्रथम उत्तेजित स्थिति से निकलती है। साधारण स्थिति में लौटती बार उनकी मुख्य रश्मियाँ निकलती है। यदि कोई परमाणु साधारण स्थिति में हो और उसकी मुख्य रेखा की ऊर्जा उसपर लगाई जाए, तो परमाणु और ऊर्जा में अनुनाद होता है और परमाणु की अनूनादी रश्मि उत्सर्जित होती है। यदि आपतित रश्मिसमूह में सभी रश्मियाँ हों तों परमाणु अपनी अनुनादी रश्मियों को ग्रहण कर लेता है और अविच्छिन्न वर्णक्रम में काली रेखा उसी स्थान पर पाई जाती है। इस अनुनादी सिद्धांत की खोज किर्शाफ ने की थी और उसी के आधार पर सौर स्पेक्ट्रम की काली रेखाओं की व्याख्या दी थी। इस रेखओं का पता फाउन-हाफर ने लगाया था: अत: इन रेखाओं को फ्राउन-होफर रेखाएँ भी कहते है। अनुनादी रश्मियों पर आर.डब्ल्यू. वुड ने बडी खोज की है।
परमाणु विस्फोट में न्यूट्रान की ऊर्जा का अनुनाद यूरेनियम 235 के नाभिक (न्यूक्लिअस) से होता है। इसी कारण बिघटन श्रृंखला स्थापित होती है और द्रव्य का पर्रिवर्तन ऊर्जा में होता है जिससे अपार ऊर्जा निकलती है।
चित्र : 3 सर आलिवर लॉज का प्रयोग जब बाईं ओर के यंत्र की झिरी क ख मे स्फुलिंग विसर्जित की जाती है तब दाहिनी ओर के यंत्र मे भी झिरी क ख मे स्फुलिंग अपने आप विसर्जित होती है।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 121 |