जैसे हम-बज़्म हैं फिर यारे-तरहदार से हम रात मिलते रहे अपने दर-ओ-दीवार से हम हम से बेबहरा हुई अब जरसे-गुल की सदा आश्ना थे, कभी हर रंग की झंकार से हम अब वहाँ कितनी मुरस्सा है वो सूरज की किरन कल जहाँ क़त्ल हुए थे, उसी तलवार से हम