जौनसारी जनजाति

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जौंनसारी जनजाति भारत में हिमाचल प्रदेश की सीमा से सटे उत्तरांचल राज्य में पश्चिमी गढ़वाल के निवासी हैं। 'भारत सरकार' ने इसे जनजाति का दर्जा प्रदान किया है। इस जनजाति में बहुपति प्रथा प्रचलित है। जौनसारी जनजाति की संस्कृति शेष गढ़वाल की संस्कृति से काफ़ी हद तक मिलती-जुलती है।

शारीरिक संरचना

जौनसारियों की शारीरिक विशेषताओं के आधार पर जाने-माने मानव विज्ञानी डी. एन. मजुमदार ने उन्हें खस जाति का वंशज माना है। उनके अनुसार "खस लोग सामान्यता लंबे, सुंदर, गोरे चिट्टे, गुलाबी और पीले होते हैं। उनका सिर लंबा, ललाट खड़ा, नाक तीखी या लंबी पतली, आँखें धुंधली नीले छीटों वाली, बाल घुँघराले तथा अन्य विशेषताओं वाले सुंदर ढंग से संवारे गये होते हैं। इस जनजाति की स्त्रियाँ तुलनात्मक दृष्टि से लंबी, छरहरी काया वाली, मनोहर और आकर्षक होती हैं।"

पुराण उल्लेख

हिन्दुओं के धार्मिक ग्रंथ मार्कण्डेय पुराण, भागवत पुराण, हरिवंश पुराण और वायु पुराण जैसे विभिन्न प्राचीन ग्रंथों के अनुसार खस गढ़वाल पहाड़ियों में रहते थे। महाभारत में उल्लेख है कि युधिष्ठिर के राज्याभिषेक समारोह के अवसर पर भारत तथा पड़ोसी देशों के राजाओं ने उन्हें बहुत से उपहार भेंट किए थे। यह कहा जाता है कि अन्य जातियों के साथ-साथ खस तथा तनगणों ने युधिष्ठिर को द्रोणों (पात्रों) में भर-भरकर सोना भेट किया था।

धार्मिक परम्परा

डी. पी. सकलानी के अनुसार कुरूक्षेत्र के मैदान में एकत्र विशाल पांडव सेना में खसों का कोई उल्लेख नहीं है, किंतु वे धृतराष्ट्र पुत्र दुर्योधन की सेना में थे और तलवारों और बल्लभों से लैस थे। उन्होंने सात्यकों के साथ पत्थरों से लड़ाई की थी। एक जौनसरी लोक कथा में ऐसे युद्ध की चर्चा है और गढ़वाली पहाड़ी के शिखरों पर पत्थरों के ढेर के रूप मे उन बीते दिनों की याद भी है। एक स्मृति चट्टान आज भी मौजूद है। इसलिए जौनसारी जनजाति के लोग अपनी धार्मिक परम्परा के अनुसार भगवान सोमेसु के रूप में दुर्योधन की पूजा आज भी करते हैं, जबकि गढ़वाल के शेष भाग में पांडवों की पूजा पांडवलीला और पांडववार्ता की प्रचलित परम्परा में की जाती है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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