धूप में एक बूँद कब तक....
धूप में इक बूँद कब तक, जंग करती द्रुत हवा से
द्रुत हवा में धूप कब तक, बंद रखती होंठ प्यासे
रात का गहरा अँधेरा
ओस बूँदें दे गया जो
पौ फटी तो सूर्य का बल
साथ अपने ले गया वो
शौर्य का बल दर्द देता, दर्द हो कम किस दवा से
नवसबल आखेट आतुर
इस धरा पर नृत्य करते
एक क्षण लगता नहीं, जब
वो थिरक कर प्राण हरते
माँस के भूखे वही हैं, रक्त के जो हैं पिपासे
गर्म साँसों की हवा से
मन-हृदय के खेत सूखे
शुष्क खेतों में उगे हैं
क्षुप जवासे रक्त भूखे
आँख में चुभते बहुत हैं, पैर में चुभते जवासे