मुझे भर नैन रोने दो
नहीं कहता हूँ मैं तुमसे सुकूँ की नींद सोने दो
रहो बस दूर तुम मुझसे मुझे भर नैन रोने दो
बसूँ मैं भी न आँखों में
न तुम दिल में उतर पाओ
व्यथा गर अश्रु बन निकले
उसे चुपचाप पी जाओ
अगर कुछ-कुछ हुआ भी हो तो अब कुछ भी न होने
रहो बस दूर तुम मुझसे मुझे भर नैन रोने दो
करोगे क्या मुझे पाकर
रहोगे क्यों मेरे होकर
चढ़ें जो फूल मस्तक पर
वही हों पैर की ठोकर
मुझे तन्हा ही रहने दो मुझे पलकें भिगोने दो
रहो बस दूर मुझसे मुझे भर नैन रोने दो
कोई कुछ ले के पाता है
कोई कुछ दे के पाता है
जगत में तो हमेशा गुल
मगर खुशबू लुटाता है
जिसे जिसमें क़रार आए उसे उसमें ही खोने दो
रहो बस दूर मुझसे मुझे भर नैन रोने दो