नकदी रहित अर्थव्यवस्था
नकदी रहित अर्थव्यवस्था, 'नकदी रहित भारत' या 'कैशलेस भारत' एक मिशन है, जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत सरकार ने शुरू किया है। इस मिशन का उद्देश्य भारतीय अर्थव्यवस्था की नकदी पर निर्भरता को कम करना है ताकि देश में बड़ी मात्रा में छुपे काले धन को बैंकिंग प्रणाली में वापिस लाया जाए। इस मिशन की शुरूआत 8 नवंबर, 2016 को हुई जब सरकार ने एक क्रांतिकारी पहल करते हुए 500 रुपये एवं 1000 रुपये के पुराने नोटों का अचानक अवमूल्यन कर दिया।
संदर्भ
- नीति आयोग ने हाल ही में कहा कि ‘आने वाले 3-4 वर्षों में डेबिट, क्रेडिट कार्ड्स और एटीएम आदि का झंझट खत्म हो जाएगा और ऑनलाइन पेमेंट और रिसीप्ट में उल्लेखनीय वृद्धि देखने को मिलेगी’। विदित हो कि विमुद्रीकरण के बाद से ही कैशलेस यानी नकदी-रहित अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिये सरकार प्रतिबद्ध नज़र आ रही है।[1]
- दरअसल, यह आवश्यक भी है क्योंकि भारत में सबसे ज़्यादा नकदी संचालन में है, 2014 में यह जीडीपी की 12.42% थी, जबकि चीन और ब्राज़ील के लिये ये आँकड़े क्रमशः 9.47% तथा 4% थे। नकद संचालन में भारतीय रिज़र्व बैंक और वाणिज्यिक बैंकों का सालाना खर्च 21,000 करोड़ रुपए आता है।
क्या है कैशलेस अर्थव्यवस्था
जब किसी अर्थव्यवस्था में नकदी का प्रवाह ना के बराबर हो जाए तथा सभी लेन-देन डेबिट एवं क्रेडिट कार्ड, तत्काल भुगतान सेवा[2], राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक फंड्स ट्रांसफर[3] और रीयल टाइम ग्रॉस सेटलमेंट[4] जैसे इलेक्ट्रॉनिक चैनलों एवं एकीकृत भुगतान इंटरफ़ेस[5] जैसे भुगतान माध्यमों से होने लगे तो यह स्थिति कैशलेस अर्थव्यवस्था के रूप में परिभाषित की जाती है।
कैशलेस लेन-देन के प्रकार
- मोबाइल वॉलेट-
- मोबाइल वॉलेट स्मार्टफोन में मौजूद एक वर्चुअल वॉलेट (आभासी वॉलेट) है, जिसमें पैसे डिजिटल मनी के रूप में रखे जाते हैं।
- दूसरे शब्दों में कहें तो यह एक डिजिटल पर्स है जिसमें से पैसे को निकालकर लेन-देन और भुगतान किया जा सकता है।
- प्लास्टिक मनी-
- प्लास्टिक मनी का तात्पर्य प्लास्टिक से बने उन कार्ड्स जैसे डेबिट कार्ड, क्रेडिट कार्ड, एटीएम कार्ड आदि से है जिनका इस्तेमाल भुगतान आदि के लिये किया जा सकता है।
- प्लास्टिक मनी के प्रयोग से कैशलेस अर्थव्यवस्था को बल तो मिलता ही है साथ में नकदी लेकर चलने की झंझटों से भी मुक्ति मिल जाती है।
- नेट बैंकिंग-
- किसी भी बैंक द्वारा प्रदान की जा रही सेवाओं का कंप्यूटर, मोबाइल या किसी अन्य यंत्र के माध्यम से इंटरनेट के ज़रिये प्रयोग करना नेट बैंकिंग कहलाता है।
- इसके लिये बैंक वेबसाइट और मोबाइल एप बनाकर उसे अपने ग्राहकों को इंटरनेट के माध्यम से उपलब्ध करवाते हैं।
- तत्काल भुगतान सेवा[6], राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक फंड्स ट्रांसफर[7] और रीयल टाइम ग्रॉस सेटलमेंट[8] नेट बैंकिंग के तहत आने वाली भुगतान प्रणालियाँ हैं।
- यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस-
- एकीकृत भुगतान इंटरफेस[9], राष्ट्रीय भुगतान निगम (National Payment Corporation of India) द्वारा आरंभ की गई लेन-देन की एक नई प्रणाली है जो वर्चुअल पेमेंट एड्रेस[10] का उपयोग कर धन का त्वरित हस्तांतरण सुनिश्चित करती है।
- यह भुगतान का एक ऐसा माध्यम है जो सातों दिन चौबीसों घंटे कार्य करता है। इस सेवा का लाभ बिना किसी इंटरनेट कनेक्टिविटी के भी उठाया जा सकता है।
- इससे धन के लेन-देन में नकदी का चलन कम हो जाएगा तथा व्यापारिक भुगतान सरल सुरक्षित एवं पारदर्शी हो जाएगा।
- पेमेंट बैंक-
- भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा दो प्रकार के लाइसेंस जारी किये जाते हैं- सार्वभौमिक बैंक लाइसेंस[11] और विभेदित बैंक लाइसेंस[12]।
- एक पेमेंट बैंक, विभेदित बैंक लाइसेंस प्राप्त बैंकों की श्रेणी में आता है। पेमेंट बैंक एक विशेष प्रकार के बैंक हैं, जिन्हें कुछ सीमित बैंकिंग क्रियाकलापों की अनुमति है।
- इन बैंकों का उद्देश्य प्रवासी श्रमिक वर्ग, निम्न आय अर्जित करने वाले परिवारों, लघु कारोबारों, असंगठित क्षेत्र की अन्य संस्थाओं को सेवा प्रदान कर अर्थव्यवस्था के डिजिटलीकरण और वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देना है।[1]
लाभ
- टैक्स चोरी पर रोक-
- यदि अर्थव्यवस्था कैशलेस होती है तो टैक्स चोरी की घटनाओं में उल्लेखनीय रूप से कमी आएगी।
- ऐसा इसलिये क्योंकि प्रत्येक कैशलेस लेन-देन के प्रमाण डेटाबेस में अंकित हो जाते हैं, जिससे किसी भी व्यक्ति की वास्तविक आय से संबंधित आँकड़े जुटाने में आसानी होती है।
- काले धन पर रोक-
- कैशलेस समाज का एक मुख्य लाभ यह है कि इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों के ज़रिये किये गए आर्थिक लेन-देन ब्लैक मनी के बाज़ार को खत्म कर सकता है।
- नकदी आधारित अर्थव्यवस्था में ब्लैक मनी इकट्टा करना, नशीली दवाओं की तस्करी, मानव तस्करी, आतंकवाद, जबरन वसूली आदि जैसे आपराधिक गतिविधियों को अंजाम देना आसान बन जाता है। कैशलेस अर्थव्यवस्था इन से मुक्ति दिलाने में सहायक सिद्ध होगी।
- बैंकिंग सेवाओं तक व्यापक पहुँच-
- यह प्रयास सभी को बैंकिंग सेवाओं की सार्वभौमिक उपलब्धता सुनिश्चित करने में अत्यंत ही सहायक होगा।
- ऐसा इसलिये क्योंकि इस व्यवस्था में बैंकिंग सेवाओं के विस्तार हेतु बुनियादी ढाँचा खड़ा करने के बजाय बस एक डिजिटल स्ट्रक्चर की ज़रूरत होगी।
- लागत में कमी-
- बैंकिंग सेवा प्रदान करने हेतु किसी स्थान विशेष पर पहुँचने की शर्त खत्म हो जाएगी, इससे ट्रांजेक्शनल (लेन-देन संबंधी) मूल्य के साथ-साथ ट्रांसपोर्ट खर्च में भी कमी आएगी।
- कैशलेस लेन-देन बढ़ेगा तो रिज़र्व बैंक को कम नोट छापने होंगे जिससे नोटों की छपाई पर आने वाली भारी लागत को कम किया जा सकता है।
- साथ ही एटीएम को सुचारू रूप से चालू रखने में बैंकों का होने वाला खर्च भी कम होगा।
- जनहितकारी योजनाओं की दक्षता में वृद्धि-
- जनता के कल्याण हेतु चलाए जा रहे कई कार्यक्रमों की दक्षता बढ़ेगी, क्योंकि पैसे बिचौलियों के हाथ में जाने के बजाय इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से सीधे लोगों के बैंक अकाउंट में पहुँचेगा।[1]
चुनौतियाँ
- अधिकांश जनसंख्या ‘बैंकिंग नेट’ के बाहर-
- वर्ष 2015-2016 की आर्थिक समीक्षा के अनुसार बचत कार्यों के संबंध में पुरे देश में बैंकिंग गतिविधियों तक मात्र 46 प्रतिशत लोगों की पहुँच है।
- जन-धन योजना लागू होने के पश्चात् बड़ी संख्या में बैंक अकाउंट तो खुल गए लेकिन अधिकांश खातों से कोई लेन-देन नहीं हो रहा।
- कैशलेस अर्थव्यवस्था के निर्माण हेतु यह आवश्यक है कि इन खातों को क्रियाशील बनाए जाए अर्थात् इनसे कुछ लेन-देन हो।
- असंगठित क्षेत्र का प्रभाव-
- यदि जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा बैंकिंग नेट के दायरे में आ भी जाए तो कैशलेस होने की मुहिम शायद ही सफल हो, क्योंकि देश की एक बड़ी आबादी असंगठित क्षेत्र में कार्य करने को अभिशप्त है।
- यहाँ होने वाला अधिकांश लेन-देन नकदी में ही किया जाता है। ऐसे में किसी से यह उम्मीद करना कि वह नकदी में प्राप्त वेतन को अपने बैंक अकाउंट में जमा कर फिर कार्ड या मोबाइल वॉलेट का प्रयोग करेगा तो यह बेईमानी होगी।
- साइबर सुरक्षा का मुद्दा-
- विदित हो कि अक्टूबर 2016 में 30 लाख से अधिक डेबिट कार्डों का विवरण चोरी हो गया था और यह हमारी कमज़ोर साइबर सुरक्षा का एक उदाहरण है।
- आज देशों के बीच साइबर युद्ध चल रहा है और भारत में साइबर सुरक्षा सुनिश्चित करने के बुनियादी सुविधाओं तक का अभाव है।
- ऐसे में यदि भारत की सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था कैशलेस हो जाती है तो हमें अपनी साइबर सुरक्षा को भी मज़बूत बनाना होगा।
- नेटवर्क कनेक्टिविटी और इंटरनेट की लागत-
- ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट कनेक्शन की अनुपलब्धता या विफलता भारत में आम बात है। इसके अलावा भारत में इंटरनेट की लागत अब भी काफी अधिक है।
- कार्ड पर शुल्क, ऑनलाइन लेन-देन वे अतिरिक्त शुल्क है जो विक्रेताओं द्वारा लगाए जाते हैं। डेबिट कार्ड पर मर्चेंट डिस्काउंट रेट (एमडीआर) भारत में बहुत अधिक है।
- लोगों में कंप्यूटर साक्षरता अभी भी कम है। इसके अलावा लोग लेन-देन के लिये इलेक्ट्रॉनिक पद्धति का उपयोग करने के लिये आशंकित हैं।[1]
वर्तमान तस्वीर
- नीति आयोग का यह अनुमान कि आने वाले कुछ वर्षों में एटीएम और कैश आदि की झंझटें खत्म हो जाएंगी अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं है।
- आज जहाँ डेबिट और क्रेडिट कार्ड, खुदरा डिजिटल भुगतान के प्रमुख स्रोत बने हुए हैं वहीं यूपीआई और ‘प्रीपेड भुगतान इंस्ट्रूमेंट (पीपीआई) के ज़रिये लेन-देन भी अब ज़ोर पकड़ रहा है।
- आँकड़े तस्दीक करते हैं कि वर्ष 2014-2015 में कार्ड के ज़रिये पीपीआई के माध्यम से होने वाला लेन-देन 18% था जो वर्ष 2016-2017 में बढ़कर 36% हो गया। आगे बढ़ने से पहले पीपीआई और युपीई में क्या अंतर है यह जान लेते हैं:
- क्रेडिट या डेबिट कार्ड के ज़रिये मोबाइल वॉलेट में पैसे रखना और उन्हें फिर अपनी आवश्यकता अनुसार खर्च करना तथा अन्य तरह के प्रीपेड भुगतान पीपीआई के अंतर्गत आते हैं।
- वहीं युपीआई यानी यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस एक ‘रियल टाइम’ भुगतान प्रणाली है, जिसके आधार पर ही भीम एप काम करता है।
- आसान शब्दों में कहें तो यदि किसी व्यक्ति द्वारा पेटीएम वॉलेट से पेमेंट किया गया है तो वह पीपीआई, जबकि भीम एप से किया गया भुगतान युपीआई भुगतान का उदाहरण है।
- यूपीआई के ज़रिये होने वाला लेन-देन जनवरी में 4.2 मिलियन से बढ़कर सितंबर 2017 में 30 मिलियन हो चुका है, जबकि पीपीआई के ज़रिये होने वाला लेन-देन 87 मिलियन है। सार यह है कि अर्थव्यवस्था के डिजिटलीकरण की गति संतोषजनक कही जा सकती है।
रतन पी. वाटल समिति की सिफारिशें
- नकद रहित अर्थव्यवस्था में बाधाओं से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर विचार करने के लिये रतन पी. वाटल की अध्यक्षता में एक समिति बनाई गई थी। इसके कुछ सुझाव निम्नलिखित हैं[1]-
- एक अलग, स्वतंत्र भुगतान नियामक की स्थापना।
- उपभोक्ता संरक्षण, डेटा सुरक्षा और गोपनीयता पर प्रावधानों को शामिल करने के लिये भुगतान और निपटान अधिनियम पर पुनर्विचार।
- आरटीजीएस और एनईएफटी 24X7 आधार पर काम करना चाहिये ।
- डिजिटल लेन-देन को बढ़ावा देने के लिये एक फंड बनाया जाना चाहिये।
- सभी सरकारी भुगतानों और लेन-देन को डिजिटल रूप में किया जाना चाहिये।
- शुल्कों में छूट दी जानी चाहिये, जैसे रेलवे टिकट बुकिंग पर सेवा शुल्क में छूट।
- सुझावों का समुचित क्रियान्वयन किया जाना चाहिये, हालाँकि इनमें से कुछ सुझावों पर सरकार काम कर रही है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 1.3 1.4 कैशलेस अर्थव्यवस्था (हिंदी) drishtiias.com। अभिगमन तिथि: 10 नवंबर, 2020।
- ↑ Immediate Payment Service-IMPS
- ↑ National Electronic Funds Transfer-NEFT
- ↑ Real Time Gross Settlement-RTGS
- ↑ Unified Payments Interface
- ↑ Immediate Payment Service-IMPS
- ↑ National Electronic Funds Transfer-NEFT
- ↑ Real Time Gross Settlement-RTGS
- ↑ Unified Payment Interface-UPI
- ↑ Virtual Payment Address-VPA
- ↑ universal bank licence
- ↑ differentiated bank licence