भुगतान और निपटान प्रणाली, भारत
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
भारत में भुगतान और निपटान प्रणालियाँ (अंग्रेज़ी: Payment and settlement systems in India) भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा भुगतान और निपटान प्रणाली अधिनियम, 2007 के अंतर्गत संचालित एवं नियंत्रित की जाती हैं। हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक ने भारत में 'भुगतान और निपटान प्रणाली: विज़न 2019 - 2021' दस्तावेज़ जारी किया है।
प्रमुख बिंदु
- 'विशेष (ई) भुगतान अनुभव को सशक्त बनाने' के केंद्रीय विषय वाले इस विज़न डॉक्यूमेंट का उद्देश्य प्रत्येक भारतीय की ई-भुगतान विकल्पों के सुरक्षित, सुविधाजनक, त्वरित एवं सरल समूह तक पहुँच सुनिश्चित करना है।[1]
- अपने 36 विशिष्ट कार्य बिंदुओं और 12 विशिष्ट परिणामों के साथ इसका लक्ष्य प्रतिस्पर्द्धा, लागत-प्रभावशीलता, सुविधा और आत्मविश्वास के माध्यम से एक 'अत्यधिक डिजिटल' और 'कैश-लाइट' (अर्थात् एक ऐसी अर्थव्यवस्था जिसमें नकद पूंजी का प्रवाह कम-से-कम हो) प्रणाली को प्राप्त करना है।
- विज़न दस्तावेज़ के अनुसार, दो वर्षों में डिजिटल लेन-देन में चार गुना की वृद्धि की परिकल्पना की गई है।
- भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा विशिष्ट खुदरा इलेक्ट्रॉनिक भुगतान प्रणालियों में वृद्धि की उम्मीद की गई है, यह अनुमान लेन-देन की संख्या और उपलब्धता में वृद्धि के संदर्भ में व्यक्त किया गया है।
- विज़न दस्तावेज़ की अवधि के अंतर्गत यूपीआई और आईएमपीएस जैसी भुगतान प्रणालियों द्वारा औसतन 100प्रतिशत एनईएफटी में 40प्रतिशत से अधिक की वार्षिक वृद्धि दर्ज करने की उम्मीद है।
- इस अवधि के दौरान प्वाइंट-ऑफ-सेल[2] टर्मिनलों पर डेबिट कार्ड लेन-देन में वृद्धि के माध्यम से वस्तुओं और सेवाओं की खरीद हेतु भुगतान के डिजिटल तरीकों के उपयोग में 35प्रतिशत की वृद्धि का लक्ष्य तय किया गया है।
- नकदी के चलन में कमी करने हेतु कोई विशिष्ट लक्ष्य निर्धारित नहीं किये गए हैं। प्वाइंट-ऑफ-सेल अवसंरचना की वर्द्धित उपलब्धता से नकदी की मांग में कमी आने की उम्मीद है, इस प्रकार समय के साथ जीडीपी के प्रतिशत के रूप में नकदी के परिचलन में कमी के लक्ष्य को भी प्राप्त किया जा सकता है।
- इसके अतिरिक्त दस्तावेज़ में ग्राहक जागरूकता में वृद्धि करने, 24×7 हेल्पलाइन की व्यवस्था करने, सिस्टम ऑपरेटरों और सेवा प्रदाताओं के लिये स्व-नियामक संगठन स्थापित करने की बात भी कही गई है।
- RBI के अनुसार, भुगतान प्रणाली के परिदृश्य में नवाचार और अन्य पक्षों के प्रवेश से परिवर्तन की संभावना हमेशा बनी रहेगी, जिससे ग्राहकों के लिये अधिक-से-अधिक लाभ, श्रेष्ठ लागत और कई भुगतान व्यवस्थाओं तक मुफ्त पहुँच सुनिश्चित किये जाने की भी उम्मीद है।
- भुगतान और निपटान प्रणाली अधिनियम, 2007 के तहत भारतीय रिज़र्व बैंक भारत में भुगतान और निपटान प्रणाली को विनियमित करने के लिये अधिकृत है।[1]
भुगतान और निपटान प्रणाली की निगरानी
- भुगतान और निपटान प्रणाली की निगरानी केंद्रीय बैंक का कार्य है जिसके द्वारा मौजूदा और नियोजित प्रणालियों की निगरानी के माध्यम से सुरक्षा और दक्षता के उद्देश्यों को बढ़ावा दिया जाता है। साथ ही इन उद्देश्यों के संबंध में इनका आकलन किया जाता है और जहाँ कहीं आवश्यक होता है वहाँ परिवर्तन किया जाता है।
- भुगतान और निपटान प्रणाली की देखरेख के माध्यम से केंद्रीय बैंक प्रणालीगत स्थिरता बनाए रखने और प्रणालीगत जोखिम को कम करने, भुगतान एवं निपटान प्रणाली में जनता के विश्वास को बनाए रखने में मदद करता है।
- भुगतान और निपटान प्रणाली अधिनियम, 2007 और उसके अंतर्गत बनाई गई भुगतान और निपटान प्रणाली विनियमावली, 2008 भारतीय रिज़र्व बैंक को आवश्यक सांविधिक समर्थन प्रदान करती है ताकि यह देश में भुगतान और निपटान प्रणाली के निरीक्षण का कार्य कर सके।
भारत में डिजिटल भुगतान का विकास
- भारत की डिजिटल भुगतान प्रणाली पिछले कई वर्षों से मज़बूती के साथ विकसित हो रही है, जो सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी के विकास से प्रेरित है तथा भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा प्रस्तावित कार्यप्रणाली के अनुरूप है।[1]
- नेशनल पेमेंट्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया[3] की स्थापना वर्ष 2008 में की गई थी, जो खुदरा भुगतान प्रणाली के विकास को गति प्रदान कर रहा है। भुगतान प्रणाली के विकास की प्रक्रिया में प्राप्त महत्त्वपूर्ण मील के पत्थरों में शामिल हैं।
- 1980 के दशक के आरंभ में एमआईसीआर समाशोधन की शुरुआत हुई। यह ऑनलाइन इमेज-आधारित चेक समाशोधन प्रणाली है जहाँ चेक-इमेज एवं मैग्नेटिक इंक कैरेक्टर रिकग्निशन डेटा को एकत्र कर बैंक शाखा में अभिलिखित किया जाता है तथा इलेक्ट्रॉनिक रूप से प्रसारित किया जाता है।
- 1990 में इलेक्ट्रॉनिक समाशोधन सेवा तथा इलेक्ट्रॉनिक निधि हस्तांतरण।
- 1990 के दशक में बैंकों द्वारा क्रेडिट एवं डेबिट कार्ड जारी करना।
- 2003 में नेशनल फाइनेंशियल स्विच की शुरुआत जिसने पूरे देश में एटीएम को आपस में जोड़ने की शुरुआत की।
- वर्ष 2004 में आरटीजीएस एवं नेफ्ट सेवा की शुरुआत।
- 2008 में चेक ट्रंकेशन सिस्टम की शुरुआत। चेक ट्रंकेशन सिस्टम या इमेज-आधारित क्लियरिंग सिस्टम चेकों के तेज़ी से समाशोधन के लिये प्रणाली है। चेक ट्रंकेशन का अर्थ है अदाकर्त्ता शाखा को आदेशक बैंक शाखा द्वारा जारी किये गए चेकों के भौतिक प्रवाह को रोकना।
- 2009 में 'बिना कार्ड पेश किये' लेनदेन। इसका उपयोग आमतौर पर इंटरनेट पर किये गए भुगतानों के लिये किया जाता है, लेकिन ई-मेल या फैक्स द्वारा या टेलीफोन पर मेल-ऑर्डर लेनदेन में भी किया जा सकता है।
- 2013 में नई सुविधाओं के साथ नए आरटीजीएस की शुरुआत की गई जिसमें बैंकों को आईएसओ 20022 मानक संदेश प्रारूप अपनाने की आवश्यकता थी। *भुगतान प्रणाली के लिये आईएसओ 20022 मानक संदेश प्रारूप शुरू करने का उद्देश्य देश में विभिन्न भुगतान प्रणालियों के मानकीकरण तथा उनका अंतर्राष्ट्रीय मानक के अनुरूप किया जाना है।[1]
- गैर-बैंक संस्थाओं द्वारा प्री-पेड इंस्ट्रूमेंट जारी करने की शुरुआत की गई, जिसमें मोबाइल और डिजिटल वॉलेट शामिल हैं। भीम[4] यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस पर आधारित भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम द्वारा विकसित एक मोबाइल भुगतान एप है।
- ये प्रगतियाँ देश में डिजिटल भुगतान पारिस्थितिकी तंत्र के विकास का मूल्यांकन करती हैं। इसके परिणामस्वरूप वर्ष 2016 में रतन पी. वाटल, प्रमुख सलाहकार, एनआईटीआई आयोग की अध्यक्षता में डिजिटल भुगतान पर समिति की स्थापना की गई।
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