रेवा प्रसाद द्विवेदी
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पूरा नाम | पंडित रेवा प्रसाद द्विवेदी |
जन्म | 22 अगस्त, 1935 |
जन्म भूमि | नादनेर, ज़िला सिहोर, मध्य प्रदेश |
मृत्यु | 22 मई, 2021 |
मृत्यु स्थान | काशी (वर्तमान बनारस) उत्तर प्रदेश |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | संस्कृत साहित्य |
मुख्य रचनाएँ | संस्कृत भाषा में तीन महाकाव्य, 20 खंडकाव्य और दो नाटकों से ज्यादा कृतियों की रचना की। |
पुरस्कार-उपाधि | राष्ट्रपति पुरस्कार, वाचस्पति पुरस्कार, वाल्मीकि पुरस्कार, श्रीवाणी अलंकरण आदि। |
प्रसिद्धि | संस्कृत साहित्यकार |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | नवीन साहित्यशास्त्रनवीन की स्थापना में पंडित रेवा प्रसाद द्विवेदी का महत्वपूर्ण योगदान रहा। उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान की ओर से 'विश्व भारती सम्मान' से भी सम्मानित हो चुके थे। |
इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
रेवा प्रसाद द्विवेदी (अंग्रेज़ी: Rewa Prasad Dwivedi, जन्म- 22 अगस्त, 1935; मृत्यु- 22 मई, 2021) काशी के प्रकांड विद्वान थे। उन्होंने साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में कई प्रतिमान गढ़े। रेवा प्रसाद द्विवेदी साहित्यशास्त्र के मूर्धन्य विद्वान थे। वह काशी हिंदू विश्वविद्यालय के संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय के पूर्व संकाय प्रमुख रहे। साहित्यशास्त्र के साहित्य विभाग में विभागाध्यक्ष रहे। उन्होंने अनेकों ग्रंथों की रचना की थी। इसमें तीन महाकाव्य अद्भुत हैं। शताब्दी का सबसे बड़ा महाकाव्य 'स्वातंत्र्यसंभव' जो 103 सर्ग का है। पंडित रेवा प्रसाद द्विवेदी ने दो नाटक और 20 महाकाव्य लिखे थे।
परिचय
मध्य प्रदेश के सिहोर जिले के नादनेर गांव में 22 अगस्त, 1935 को जन्मे पंडित रेवा प्रसाद द्विवेदी संस्कृत साहित्य के महाकवि, नाटककार और समीक्षक थे। पंडित द्विवेदी ने संस्कृत भाषा में तीन महाकाव्य, 20 खंडकाव्य और दो नाटकों से ज्यादा कृतियों की रचना की थी। काशी हिंदू विश्वविद्यालय में वह 1971 से 1990 तक संस्कृत के प्रोफेसर, विभागाध्यक्ष और संकाय प्रमुख रहे। उनके महाकाव्य 'स्वातंत्र्यसम्भवम' के लिए उन्हें 1991 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
नवीन साहित्यशास्त्रनवीन की स्थापना में पंडित रेवा प्रसाद द्विवेदी का महत्वपूर्ण योगदान रहा। उन्हें राष्ट्रपति पुरस्कार, 1979 में मिल गया था। उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान की ओर से 'विश्व भारती सम्मान' से भी सम्मानित हो चुके थे। राष्ट्र की तमाम संस्थाओं ने उन्हें अनेक पुरस्कारों से पुरस्कृत किया। साहित्यशास्त्र के जो भी छात्र आज पूरी दुनिया में दिखाई दे रहे हैं, वह कहीं न कहीं से प्रोफेसर रेवा प्रसाद द्विवेदी की परंपरा से जुड़े हुए हैं। प्रो. द्विवेदी को आधुनिक महाकवि कालिदास की उपाधि से अलंकृत किया गया था। वे काशी की धरोहर थे। काशी की अत्यंत प्रसिद्ध पंडित परंपरा काशी विद्वत्परिषद के संगठन मंत्री के रूप में उन्होने विद्वत्परिषद् को बौद्धिक ऊंचाई दी। उन्होंने सैकड़ों शोध पत्रों, ग्रंथो व पुस्तकों का संपादन किया।
रचना कर्म
पंडित रेवा प्रसाद द्विवेदी ने लगभग 6 मौलिक साहित्यशास्त्र के ग्रंथों की रचना की। वह 1950 में मध्य प्रदेश से काशी आए थे। पंडित द्विवेदी का जन्म स्थान मध्य प्रदेश का नांदेनेर था। नवीन साहित्यशास्त्र की स्थापना में भी उनका महत्वपूर्ण योगदान है। पंडित रेवा प्रसाद द्विवेदी स्वामी करपात्री के अनन्य शिष्यों में से थे। 70 के दशक में काशी में पं. रेवा प्रसाद द्विवेदी, महंत वीर भद्र मिश्र, विद्यानिवास मिश्र, हरिहर नाथ त्रिपाठी, शिवदत्त शर्मा चतुर्वेदी, पं. गोपाल त्रिपाठी, कमलेश दत्त त्रिपाठी, गिरजा शंकर सिंह, बटुक शास्त्री जैसे लोग काशी के आध्यात्मिक, सांस्कृतिक, अकादमिक क्षेत्र में बडे नाम थे।
सम्मान व पुरस्कार
- बीएचयू के इमेरिटस प्रोफेसर रहे पंडित रेवा प्रसाद द्विवेदी को 2017 में मध्य प्रदेश सरकार के संस्कृति विभाग की ओर से 'राष्ट्रीय कबीर सम्मान' से सम्मानित किया था।
- संत कबीर दास की स्मृति में भोपाल में आयोजित सदगुरु कबीर महोत्सव में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उन्हें इस सम्मान से नवाजा था।
- 1978 में राष्ट्रपति पुरस्कार
- 1993 में कल्पवल्ली पुरस्कार
- 1997 में वाचस्पति पुरस्कार
- 1999 में श्रीवाणी अलंकरण
- उत्तर प्रदेश सरकार का 'वाल्मीकि पुरस्कार'
पंडित रेवा प्रसाद द्विवेदी को आधुनिक महाकवि कालिदास की उपाधि से अलंकृत किया गया था।
मृत्यु
पंडित रेवा प्रसाद द्विवेदी का निधन 22 मई, 2021 को काशी (वर्तमान बनारस) उत्तर प्रदेश में हुआ।
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