प्रादेशिक
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प्रादेशिक अशोक का एक अधिकारी वर्ग विशेष कहलाता था।[1] अशोक के अभिलेखों में कई अधिकारियों का उल्लेख मिलता है। जैसे राजुकु, प्रादेशिक, युक्त आदि। इनमें अधिकांश राज्याधिकारी चंद्रगुप्त के समय से चले आ रहे थे। अशोक ने धार्मिक नीति तथा प्रजा के कल्याण की भावना से प्रेरित होकर उनके कर्तव्यों में विस्तार किया। केवल धम्म महामात्रों की नियुक्ति एक नवीन प्रकार की नियुक्ति थी।[2]
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