यामुन पर्वत का उल्लेख महाभारत, उद्योगपर्व तथा वनपर्व में हुआ है-
'वारणं वाटधानं च यामुनश्चैव पर्वत:, एष देश सुविस्तीर्णः प्रभूत धनधान्यवान्।'[1]
'यमुनाप्रभवं गत्वा समुस्पृश्य यामुनम् अश्वमेघफलं लब्ध्वा स्वर्गलोके महीयते।'[2]
- इतिहासकार वासुदेव शरण अग्रवाल ने इस पर्वत का अभिज्ञान हिमालय पर्वतमाला में स्थित 'बंदरपूंछ' नामक पर्वत (ज़िला गढ़वाल, उत्तराखण्ड) से किया है।
- बंदरपूंछ का संबंध महाभारत के प्रसिद्ध आख्यान से है, जिसमें भीम और हनुमान की भेंट का वर्णन है।[3]
- महाभारत, अनुशासनपर्व[4] में यामुनगिरि को गंगा-यमुना के मध्य भाग में स्थित बताया गया है तथा इस पहाड़ी की तलहटी के निकट 'पर्णमाला' नामक ग्राम का उल्लेख है-
'मध्यदेशे महान् ग्रामो ब्राह्मणानां वभूव ह । गंगायमुनयोर्मध्ये यामुनस्यगिरेरधः । पर्णशालेतिविख्यातो रमणीयोनराधिप।'
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