सिमुक
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सिमुक भारत के इतिहास में प्रसिद्ध 'सातवाहन राजवंश' का संस्थापक था। पुराणों के अनुसार सिमुक ने कण्व वंश के अन्तिम राजा सुशर्मा को मार कर मगध के राजसिंहासन पर अपना अधिकार स्थापित किया था। इसमें कोई सन्देह नहीं कि सातवाहन वंश के अन्यतम राजा ने कण्व वंश का अन्त कर मगध को अपने साम्राज्य के अंतर्गत किया था।
- हाथीगुम्फ़ा शिलालेख के अनुसार कलिंग का खारवेल सातवाहन वंश के सातकर्णि का समकालीन था, और खारवेल के समय को पहली सदी ईसवी पूर्व के पश्चात् कदापि नहीं रखा जा सकता।
- कण्व वंश का अन्त 28 ईसवी पूर्व में हुआ। यदि सिमुक के शासन का प्रारम्भ उस समय में हुआ, तो उसके पर्याप्त समय बाद का सातवाहन राजा सातर्णि खारवेल का समकालीन कैसे हो सकता है। यदि सातकर्णि खारवेल का समकालीन था तो राजा सिमुक का काल उससे पूर्व ही होना चाहिए। पौराणिक अनुश्रुति में कण्व वंश का अन्त करने वाले सातवाहन राजा का नाम देने में अवश्य ही भूल हुई है। सिमुक का शासन काल 23 वर्ष का था।
- 210 ई. पू. में सिमुक ने मौर्य शासनतंत्र के विरुद्ध विद्रोह किया और प्रतिष्ठान को राजधानी बनाकर 187 ई. पू. तक स्वतंत्र रूप से शासन किया।
- जैन गाथाओं के अनुसार सिमुक ने अनेक बौद्ध और जैन मन्दिरों का निर्माण कराया था।
- सिमुक के बाद उसका भाई कृष्ण या कन्ह सातवाहन राज्य का स्वामी बना।
- सिमुक का पुत्र सातकर्णि था, जो सम्भवतः अपने पिता की मृत्यु के समय तक वयस्क नहीं हुआ था। इसी कारण सिमुक की मृत्यु के अनन्तर उसका भाई कृष्ण राजगद्दी पर बैठा। पुराणों के अनुसार उसने 18 वर्ष तक राज्य किया। कृष्ण ने भी अपने भाई के समान विजय की प्रक्रिया को जारी रखा।
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