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'''शंकर मिश्र रचित उपस्कारवृत्ति'''


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==शंकर मिश्र रचित उपस्कारवृत्ति==
*भवनाथ मिश्र और भवानी के पुत्र, श्रीनाथ के भ्रातृव्य, रघुदेवोपाध्याय के शिष्य, शंकरमिश्र (1400-1500 ई.) द्वारा रचित उपस्कार नामक वृत्ति [[काशी]] [[संस्कृत]] ग्रन्थमाला में प्रकाशित हुई, इसमें प्रशस्तदेव, [[धर्मकीर्ति बौद्धाचार्य|धर्मकीर्ति]], दिङ्नाग, उद्योतकर, उदयन, वल्लभाचार्य आदि का निर्देश उपलब्ध होता है।  
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*उपस्कार ही वैशेषिक सूत्रों के अध्ययन का प्रमुख आधार है।  
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*उपस्कार में कहीं-कहीं नव्यन्याय की शैली में सूत्रों के अर्थ को स्पष्ट किया गया है।  
*उपस्कार में कहीं-कहीं नव्यन्याय की शैली में सूत्रों के अर्थ को स्पष्ट किया गया है।  
*शंकर मिश्र ने वेदान्त पर भी ग्रन्थ लिखे हैं।  
*शंकर मिश्र ने वेदान्त पर भी ग्रन्थ लिखे हैं।  
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08:29, 21 मार्च 2011 के समय का अवतरण

शंकर मिश्र रचित उपस्कारवृत्ति

  • भवनाथ मिश्र और भवानी के पुत्र, श्रीनाथ के भ्रातृव्य, रघुदेवोपाध्याय के शिष्य, शंकरमिश्र (1400-1500 ई.) द्वारा रचित उपस्कार नामक वृत्ति काशी संस्कृत ग्रन्थमाला में प्रकाशित हुई, इसमें प्रशस्तदेव, धर्मकीर्ति, दिङ्नाग, उद्योतकर, उदयन, वल्लभाचार्य आदि का निर्देश उपलब्ध होता है।
  • उपस्कार ही वैशेषिक सूत्रों के अध्ययन का प्रमुख आधार है।
  • प्रो. एच. उई का मत है कि यह व्याख्या प्रशस्तपाद भाष्य से प्रभावित प्रतीत होती है और कहीं-कहीं यह सूत्र के अभिप्राय से दूर हो गई है।
  • इसमें सूत्रसंख्या 370 है।
  • उपस्कार में कहीं-कहीं नव्यन्याय की शैली में सूत्रों के अर्थ को स्पष्ट किया गया है।
  • शंकर मिश्र ने वेदान्त पर भी ग्रन्थ लिखे हैं।
  • उपस्कार पर विवृतिनाम्नी एक व्याख्या गौडदेशीय जयनारायण तर्कपंचानन ने 1867 ई. में लिखी।[1]

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. उपस्कार पर विवृतिनाम्नी टीका; बिबलियोथिका इन्डिका ग्रन्थमाला, बी. 134 में प्रकाशित है।

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