"काहे ते हरि मोहिं बिसारो -तुलसीदास": अवतरणों में अंतर

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जानत निज महिमा मेरे अघ, तदपि न नाथ सँभारो॥1॥
जानत निज महिमा मेरे अघ, तदपि न नाथ सँभारो॥1॥
पतित-पुनीत दीन हित असुरन सरन कहत स्त्रुति चारो।
पतित-पुनीत दीन हित असुरन सरन कहत स्त्रुति चारो।
हौं नहिं अधम सभीत दीन ? किधौं बेदन मृषा पुकारो॥2॥
हौं नहिं अधम सभीत दीन? किधौं बेदन मृषा पुकारो॥2॥
खग-गनिका-अज ब्याध-पाँति जहँ तहँ हौहूँ बैठारो।
खग-गनिका-अज ब्याध-पाँति जहँ तहँ हौ हूँ बैठारो।
अब केहि लाज कृपानिधान! परसत पनवारो फारो॥3॥
अब केहि लाज कृपानिधान! परसत पनवारो फारो॥3॥
जो कलिकाल प्रबल अति हो तो तुव निदेस तें न्यारो।
जो कलि काल प्रबल अति हो तो तुव निदेस तें न्यारो।
तौ हरि रोष सरोस दोष गुन तेहि भजते तजि मारो॥4॥
तौ हरि रोष सरोस दोष गुन तेहि भजते तजि मारो॥4॥
मसक बिरंचि बिरंचि मसक सम, करहु प्रभाउ तुम्हारो।
मसक बिरंचि बिरंचि मसक सम, करहु प्रभाउ तुम्हारो।

06:11, 24 दिसम्बर 2011 के समय का अवतरण

काहे ते हरि मोहिं बिसारो -तुलसीदास
तुलसीदास
तुलसीदास
कवि तुलसीदास
जन्म 1532 सन
जन्म स्थान राजापुर, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 1623 सन
मुख्य रचनाएँ रामचरितमानस, दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, आदि
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
तुलसीदास की रचनाएँ

काहे ते हरि मोहिं बिसारो।
जानत निज महिमा मेरे अघ, तदपि न नाथ सँभारो॥1॥
पतित-पुनीत दीन हित असुरन सरन कहत स्त्रुति चारो।
हौं नहिं अधम सभीत दीन? किधौं बेदन मृषा पुकारो॥2॥
खग-गनिका-अज ब्याध-पाँति जहँ तहँ हौ हूँ बैठारो।
अब केहि लाज कृपानिधान! परसत पनवारो फारो॥3॥
जो कलि काल प्रबल अति हो तो तुव निदेस तें न्यारो।
तौ हरि रोष सरोस दोष गुन तेहि भजते तजि मारो॥4॥
मसक बिरंचि बिरंचि मसक सम, करहु प्रभाउ तुम्हारो।
यह सामरथ अछत मोहि त्यागहु, नाथ तहाँ कछु चारो॥5॥
नाहिन नरक परत मो कहँ डर जद्यपि हौं अति हारो।
यह बड़ि त्रास दास तुलसी प्रभु नामहु पाप न जारो॥6॥

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