"कुलोत्तुंग प्रथम": अवतरणों में अंतर

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==शासन काल==
==शासन काल==
अधिराजेन्द्र के समय में अनेक राजवंश प्रबल होने शुरू हो गए थे, और उनके साथ निरन्तर संघर्ष करते रहने के कारण चोल राजा की शक्ति क्षीण होनी प्रारम्भ हो गई थी, किंतु कुलोत्तुंग के शासन काल में राज्य की शक्ति काफ़ी हद तक क़ायम रही। उसने दक्षिण के चालुक्य नरेश [[विक्रमादित्य षष्ठ]] को पराजित किया। इसका उल्लेख विल्हण के 'विक्रमांकदेवचरित' में मिलता है। 1075-76 ई. में कुलोत्तंग ने [[कलचुरी वंश|कलचुरी]] शासक यशकर्णदेव को तथा 1100 ई. में [[कलिंग]] नरेश [[अनन्तवर्मा चोडगंग]] को पराजित किया।
अधिराजेन्द्र के समय में अनेक राजवंश प्रबल होने शुरू हो गए थे, और उनके साथ निरन्तर संघर्ष करते रहने के कारण चोल राजा की शक्ति क्षीण होनी प्रारम्भ हो गई थी, किंतु कुलोत्तुंग के शासन काल में राज्य की शक्ति काफ़ी हद तक क़ायम रही। उसने दक्षिण के चालुक्य नरेश [[विक्रमादित्य षष्ठ]] को पराजित किया। इसका उल्लेख [[विल्हण]] के '[[विक्रमांकदेवचरित]]' में मिलता है। 1075-76 ई. में कुलोत्तंग ने [[कलचुरी वंश|कलचुरी]] शासक यशकर्णदेव को तथा 1100 ई. में [[कलिंग]] नरेश [[अनन्तवर्मा चोडगंग]] को पराजित किया।
====सिंहली नरेश से मित्रता====
====सिंहली नरेश से मित्रता====
कुलोत्तुंग के शासन काल में सिंहली ([[श्रीलंका]]) नरेश विजयबाहु ने अपने को स्वतंत्र घोषित कर लिया था। कुलोत्तुंग ने उसकी स्वतन्त्रता में हस्तक्षेप न कर उससे मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध बनाकर सिंहली राजकुमार वीरप्पेरुमाल के साथ अपनी पुत्री का [[विवाह]] करा लिया। इस घटना की जानकारी [[बौद्ध]] ‘[[महावंश]]’ से मिलती है।
कुलोत्तुंग के शासन काल में सिंहली ([[श्रीलंका]]) नरेश विजयबाहु ने अपने को स्वतंत्र घोषित कर लिया था। कुलोत्तुंग ने उसकी स्वतन्त्रता में हस्तक्षेप न कर उससे मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध बनाकर सिंहली राजकुमार वीरप्पेरुमाल के साथ अपनी पुत्री का [[विवाह]] करा लिया। इस घटना की जानकारी [[बौद्ध]] ‘[[महावंश]]’ से मिलती है।
==प्रशासन कार्य==
==प्रशासन कार्य==
कुछ युद्धों को छोड़कर कुलोत्तुंग प्रथम का शासन काल शान्ति एवं सुव्यवस्था का काल था। उसने विस्तारवादी नीति की निरर्थकता का अनुभव करते हुए अपनी महत्त्वाकांक्षा की नीति को तिलांजलि दे दी थी। [[राजराज प्रथम]] की तरह कुलोत्तुंग ने भी भूराजस्व निर्धारण के लिए भूमि का पुनः सर्वेक्षण कराया। उसने व्यापार की प्रगति में बाधक चुंगियों तथा तटकरों को समाप्त कर दिया, जिसके कारण उसे 'शुंगम्' (करों को हटाने वाला) की उपाधि मिली। कुलोतुंग प्रथम द्वारा प्रसारित [[चोल राजवंश|चोलों]] के [[स्वर्ण]] सिक्कों पर उसकी कुछ उपाधियाँ जैसे- 'कटैकोण्डचोल' तथा 'मलैनडुकोण्डचोलन' का उल्लेख प्राप्त होता है।
कुछ युद्धों को छोड़कर कुलोत्तुंग प्रथम का शासन काल शान्ति एवं सुव्यवस्था का काल था। उसने विस्तारवादी नीति की निरर्थकता का अनुभव करते हुए अपनी महत्त्वाकांक्षा की नीति को तिलांजलि दे दी थी। [[राजराज प्रथम]] की तरह कुलोत्तुंग ने भी भूराजस्व निर्धारण के लिए भूमि का पुनः सर्वेक्षण कराया। उसने व्यापार की प्रगति में बाधक चुंगियों तथा तटकरों को समाप्त कर दिया, जिसके कारण उसे 'शुंगम्' (करों को हटाने वाला) की उपाधि मिली। कुलोतुंग प्रथम द्वारा प्रसारित [[चोल राजवंश|चोलों]] के [[स्वर्ण]] सिक्कों पर उसकी कुछ उपाधियाँ जैसे- 'कटैकोण्डचोल' तथा 'मलैनडुकोण्डचोलन' का उल्लेख प्राप्त होता है।

07:03, 24 अक्टूबर 2012 के समय का अवतरण

कुलोत्तुंग प्रथम (1070-1120 ई.) चोल राजवंश के सबसे पराक्रमी शासकों में से एक था। उसने चोल साम्राज्य में व्यवस्था स्थापित करने के कार्य में अदभुत पराक्रम प्रदर्शित किया था। इसके पूर्व शासक अधिराजेन्द्र के कोई भी सन्तान नहीं थी, इसलिए चोल राज्य के राजसिंहासन पर वेंगि का चालुक्य राजा कुलोत्तुंग प्रथम को बैठाया गया था। यह चोल राजकुमारी का पुत्र था।

शासन काल

अधिराजेन्द्र के समय में अनेक राजवंश प्रबल होने शुरू हो गए थे, और उनके साथ निरन्तर संघर्ष करते रहने के कारण चोल राजा की शक्ति क्षीण होनी प्रारम्भ हो गई थी, किंतु कुलोत्तुंग के शासन काल में राज्य की शक्ति काफ़ी हद तक क़ायम रही। उसने दक्षिण के चालुक्य नरेश विक्रमादित्य षष्ठ को पराजित किया। इसका उल्लेख विल्हण के 'विक्रमांकदेवचरित' में मिलता है। 1075-76 ई. में कुलोत्तंग ने कलचुरी शासक यशकर्णदेव को तथा 1100 ई. में कलिंग नरेश अनन्तवर्मा चोडगंग को पराजित किया।

सिंहली नरेश से मित्रता

कुलोत्तुंग के शासन काल में सिंहली (श्रीलंका) नरेश विजयबाहु ने अपने को स्वतंत्र घोषित कर लिया था। कुलोत्तुंग ने उसकी स्वतन्त्रता में हस्तक्षेप न कर उससे मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध बनाकर सिंहली राजकुमार वीरप्पेरुमाल के साथ अपनी पुत्री का विवाह करा लिया। इस घटना की जानकारी बौद्धमहावंश’ से मिलती है।

प्रशासन कार्य

कुछ युद्धों को छोड़कर कुलोत्तुंग प्रथम का शासन काल शान्ति एवं सुव्यवस्था का काल था। उसने विस्तारवादी नीति की निरर्थकता का अनुभव करते हुए अपनी महत्त्वाकांक्षा की नीति को तिलांजलि दे दी थी। राजराज प्रथम की तरह कुलोत्तुंग ने भी भूराजस्व निर्धारण के लिए भूमि का पुनः सर्वेक्षण कराया। उसने व्यापार की प्रगति में बाधक चुंगियों तथा तटकरों को समाप्त कर दिया, जिसके कारण उसे 'शुंगम्' (करों को हटाने वाला) की उपाधि मिली। कुलोतुंग प्रथम द्वारा प्रसारित चोलों के स्वर्ण सिक्कों पर उसकी कुछ उपाधियाँ जैसे- 'कटैकोण्डचोल' तथा 'मलैनडुकोण्डचोलन' का उल्लेख प्राप्त होता है।

अन्य राज्यों की स्वतंत्रता

कुलोत्तंग प्रथम के शासन के अन्तिम दिनों में वेंगीमैसूर स्वतन्त्र हो गये थे। इस समय कुलोत्तुंग का शासन केवल तमिल प्रदेश एवं कुल तेलुगू क्षेत्रों तक सीमित रह गया। उसने 72 व्यापारियों के एक दूतमण्डल को 1077 ई. में चीन भेजा था। चोल लेखों में कुलोत्तुंग को ‘शुगम्तविर्त चोल' (करों को हटाने वाला) कहा गया है।


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