"मन पछितैहै अवसर बीते -तुलसीदास": अवतरणों में अंतर

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हम हम करि धन-धाम सँवारे, अंत चले उठि रीते॥2॥
हम हम करि धन-धाम सँवारे, अंत चले उठि रीते॥2॥
सुत-बनितादि जानि स्वारथरत न करु नेह सबहीते।
सुत-बनितादि जानि स्वारथरत न करु नेह सबहीते।
अंतहु तोहिं तजेंगे पामर! तू न तजै अबहीते॥३॥
अंतहु तोहिं तजेंगे पामर! तू न तजै अबहीते॥3॥
अब नाथहिं अनुरागु जागु जड़, त्यागु दुरासा जीते।
अब नाथहिं अनुरागु जागु जड़, त्यागु दुरासा जीते।
बुझै न काम-अगिनि तुलसी कहुँ, बिषयभोग बहु घी ते॥४॥
बुझै न काम-अगिनि तुलसी कहुँ, बिषयभोग बहु घी ते॥4॥


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10:45, 1 नवम्बर 2014 के समय का अवतरण

मन पछितैहै अवसर बीते -तुलसीदास
तुलसीदास
तुलसीदास
कवि तुलसीदास
जन्म 1532
जन्म स्थान राजापुर, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 1623 सन
मुख्य रचनाएँ रामचरितमानस, दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, आदि
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
तुलसीदास की रचनाएँ

मन पछितैहै अवसर बीते।
दुर्लभ देह पाइ हरिपद भजु, करम, बचन अरु हीते॥1॥
सहसबाहु, दसबदन आदि नप बचे न काल बलीते।
हम हम करि धन-धाम सँवारे, अंत चले उठि रीते॥2॥
सुत-बनितादि जानि स्वारथरत न करु नेह सबहीते।
अंतहु तोहिं तजेंगे पामर! तू न तजै अबहीते॥3॥
अब नाथहिं अनुरागु जागु जड़, त्यागु दुरासा जीते।
बुझै न काम-अगिनि तुलसी कहुँ, बिषयभोग बहु घी ते॥4॥

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