"लाभ कहा मानुष-तनु पाये -तुलसीदास": अवतरणों में अंतर
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सुर दुरलभ तनु धरि न भजे हरि मद अभिमान गँवाये॥4॥ | सुर दुरलभ तनु धरि न भजे हरि मद अभिमान गँवाये॥4॥ | ||
गई न निज-पर बुद्धि सुद्ध ह्वै रहे राम-लय लाये। | गई न निज-पर बुद्धि सुद्ध ह्वै रहे राम-लय लाये। | ||
तुलसीदास यह अवसर बीते का पुनिके | तुलसीदास यह अवसर बीते का पुनिके पछिताये॥5॥ | ||
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11:21, 1 नवम्बर 2014 के समय का अवतरण
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लाभ कहा मानुष-तनु पाये। |
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