"भरोसो जाहि दूसरो सो करो -तुलसीदास": अवतरणों में अंतर

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सुनियत सेतु पयोधि पषनन्हि, करि कपि कटक तरो॥4॥
सुनियत सेतु पयोधि पषनन्हि, करि कपि कटक तरो॥4॥
प्रीति प्रतीति जहाँ जाकी तहॅं, ताको काज सरो।
प्रीति प्रतीति जहाँ जाकी तहॅं, ताको काज सरो।
मेर तो माय-बाप दोउ आखर, हौं सिसु-अरनि अरो॥५॥
मेर तो माय-बाप दोउ आखर, हौं सिसु-अरनि अरो॥5॥
संकर साखि जो राखि कहउँ कछु, तौ जरि जीह गरो।
संकर साखि जो राखि कहउँ कछु, तौ जरि जीह गरो।
अपनो भलो रामनामहिं ते, तुलसिहि समुझि परो॥६॥
अपनो भलो रामनामहिं ते, तुलसिहि समुझि परो॥6॥


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11:29, 1 नवम्बर 2014 के समय का अवतरण

भरोसो जाहि दूसरो सो करो -तुलसीदास
तुलसीदास
तुलसीदास
कवि तुलसीदास
जन्म 1532
जन्म स्थान राजापुर, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 1623 सन
मुख्य रचनाएँ रामचरितमानस, दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, आदि
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
तुलसीदास की रचनाएँ

भरोसो जाहि दूसरो सो करो।
मोको तो रामको नाम कलपतरु, कलिकल्यान फरो॥1॥
करम उपासन ग्यान बेदमत सो जब भाँति खरो।
मोहिं तो सावनके अंधहि ज्यों, सूझत हरो-हरो॥2॥
चाटत रहेउँ स्वान पातरि ज्यों कबहुँ न पेट भरो।
सो हौं सुमिरत नाम-सुधारस, पेखत परुसि धरो॥3॥
स्वारथ औ परमारथहूको, नहिं कुञ्जरो नरो।
सुनियत सेतु पयोधि पषनन्हि, करि कपि कटक तरो॥4॥
प्रीति प्रतीति जहाँ जाकी तहॅं, ताको काज सरो।
मेर तो माय-बाप दोउ आखर, हौं सिसु-अरनि अरो॥5॥
संकर साखि जो राखि कहउँ कछु, तौ जरि जीह गरो।
अपनो भलो रामनामहिं ते, तुलसिहि समुझि परो॥6॥

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