"यों मन कबहूँ तुमहिं न लाग्यो -तुलसीदास": अवतरणों में अंतर
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त्यों न साधु, सुरसरि-तरंग-निर्मल गुनगुन रघुबरके॥2॥ | त्यों न साधु, सुरसरि-तरंग-निर्मल गुनगुन रघुबरके॥2॥ | ||
ज्यों नासा सुगंध-रस-बस, रसना षटरसरति मानी। | ज्यों नासा सुगंध-रस-बस, रसना षटरसरति मानी। | ||
राम-प्रसाद-माल, जूठनि लगि, त्यों न ललकि | राम-प्रसाद-माल, जूठनि लगि, त्यों न ललकि ललचानी॥3॥ | ||
चंदन-चंदबदनि-भूषन-पट ज्यों चह पाँवर परस्यो। | चंदन-चंदबदनि-भूषन-पट ज्यों चह पाँवर परस्यो। | ||
त्यों रघुपति-पद-पदुम-परसको तनु पातकी न | त्यों रघुपति-पद-पदुम-परसको तनु पातकी न तरस्यो॥4॥ | ||
ज्यों सब भाँति कुदेव कुठाकर सेये बपु बचन हिये हूँ। | ज्यों सब भाँति कुदेव कुठाकर सेये बपु बचन हिये हूँ। | ||
त्यों न राम, सकृतग्य जे सकुचत सकृत प्रनाम किये | त्यों न राम, सकृतग्य जे सकुचत सकृत प्रनाम किये हूँ॥5॥ | ||
चंचल चरन लोभ लगि लोलु द्वार-द्वार जग बागे। | चंचल चरन लोभ लगि लोलु द्वार-द्वार जग बागे। | ||
राम-सीय-आश्रमनि चलत त्यों भये न स्त्रमित | राम-सीय-आश्रमनि चलत त्यों भये न स्त्रमित अभागे॥6॥ | ||
सकल अंग पद बिमुख नाथ मुख नामकी ओट लई है। | सकल अंग पद बिमुख नाथ मुख नामकी ओट लई है। | ||
है तुलसीहिं परतीति एक प्रभु मूरति कृपामई | है तुलसीहिं परतीति एक प्रभु मूरति कृपामई है॥7॥ | ||
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11:32, 1 नवम्बर 2014 के समय का अवतरण
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यों मन कबहूँ तुमहिं न लाग्यो। |
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