"धर्मपाल": अवतरणों में अंतर

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*'''धर्मपाल''' [[पाल वंश]] के [[गोपाल प्रथम]] का पुत्र एवं उत्तराधिकारी व एक योग्यतम शासक था।
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*उसका शासनकाल लगभग 770 से 810 ई. तक माना जाता है।
'''धर्मपाल''' [[पाल वंश]] के [[गोपाल प्रथम]] का पुत्र एवं उत्तराधिकारी व एक योग्यतम शासक था। उसका शासन काल लगभग 770 से 810 ई. तक माना जाता है। उसकी महत्त्वपूर्ण सफलता थी, [[कन्नौज]] के शासक 'इंद्रायुध' को परास्त कर 'चक्रायुध' को अपने संरक्षण में कन्नौज की गद्दी पर बैठाना।
*उसकी महत्वपूर्ण सफलता थी, [[कन्नौज]] के शासक 'इंद्रायुध' को परास्त कर 'चक्रायुध' को अपने संरक्षण में कन्नौज की गद्दी पर बैठाना।
 
*उसने पश्चिम में [[पंजाब]] से लेकर पूर्व में [[बंगाल]] तक तथा उत्तर में [[हिमालय]] से लेकर दक्षिण में [[बरार]] तक अपनी शक्ति स्थापित की थी।
*धर्मपाल ने पश्चिम में [[पंजाब]] से लेकर पूर्व में [[बंगाल]] तक तथा उत्तर में [[हिमालय]] से लेकर दक्षिण में [[बरार]] तक अपनी शक्ति स्थापित की थी।
*धर्मपाल ने 'महाराजाधिराज', 'परमेश्वर' और 'परभट्टारक' जैसी उपाधियाँ धारण की थीं।
*उसने 'महाराजाधिराज', 'परमेश्वर' और 'परभट्टारक' जैसी उपाधियाँ धारण की थीं।
*'खलीमपुर' ताम्रपत्र से ज्ञात होता है कि, उसने कन्नौज में एक दरबार किया था, जिसमें [[भोज]] (बरार), मत्स्य ([[जयपुर]]), मद्र ([[पंजाब]]), कुरु ([[थानेश्वर]]), यदु ([[मथुरा]] या [[द्वारका]]), [[यवन]] ([[सिन्ध प्रांत|सिन्ध]] का अरब शासक), [[अवन्ति]] ([[मालवा]]), [[गांधार]] (उत्तर-पश्चिमी सीमा) तथा कीड़ (कांगड़ा) के शासकों ने भाग लिया था।
*'खलीमपुर' ताम्रपत्र से ज्ञात होता है कि, उसने कन्नौज में एक दरबार किया था, जिसमें [[भोज]] (बरार), मत्स्य ([[जयपुर]]), मद्र ([[पंजाब]]), कुरु ([[थानेश्वर]]), यदु ([[मथुरा]] या [[द्वारका]]), [[यवन]] ([[सिन्ध प्रांत|सिन्ध]] का अरब शासक), [[अवन्ति]] ([[मालवा]]), [[गांधार]] (उत्तर-पश्चिमी सीमा) तथा कीड़ (कांगड़ा) के शासकों ने भाग लिया था।
*11 वीं शताब्दी के कवि 'सोड्ढल' ([[गुजराती भाषा|गुजराती]]) ने 'उदयसुन्दरी' कथा में 'धर्मपाल' को 'उत्तरापथस्वामिन' कहा है।
*11 वीं शताब्दी के कवि 'सोड्ढल' ([[गुजराती भाषा|गुजराती]]) ने '[[उदयसुन्दरी कथा]]' में 'धर्मपाल' को 'उत्तरापथस्वामिन' कहा है।
*धर्मपाल [[गुर्जर प्रतिहार वंश|प्रतिहार वंशी]] शासक [[नागभट्ट द्वितीय]] से पराजित हुआ था।
*धर्मपाल [[गुर्जर प्रतिहार वंश|प्रतिहार वंशी]] शासक [[नागभट्ट द्वितीय]] से पराजित हुआ था।
*उसे [[राष्ट्रकूट वंश|राष्ट्रकूट]] नरेश [[ध्रुव (बहुविकल्पी)|ध्रुव]] ने भी पराजित किया था।
*उसे [[राष्ट्रकूट वंश|राष्ट्रकूट]] नरेश [[ध्रुव (बहुविकल्पी)|ध्रुव]] ने भी पराजित किया था।
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*धर्मपाल ने नालंदा विश्वविद्यालय के ख़र्च के लिए 200 गाँवों को दान में दिया था।
*धर्मपाल ने नालंदा विश्वविद्यालय के ख़र्च के लिए 200 गाँवों को दान में दिया था।


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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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धर्मपाल एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- धर्मपाल (बहुविकल्पी)

धर्मपाल पाल वंश के गोपाल प्रथम का पुत्र एवं उत्तराधिकारी व एक योग्यतम शासक था। उसका शासन काल लगभग 770 से 810 ई. तक माना जाता है। उसकी महत्त्वपूर्ण सफलता थी, कन्नौज के शासक 'इंद्रायुध' को परास्त कर 'चक्रायुध' को अपने संरक्षण में कन्नौज की गद्दी पर बैठाना।

  • धर्मपाल ने पश्चिम में पंजाब से लेकर पूर्व में बंगाल तक तथा उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में बरार तक अपनी शक्ति स्थापित की थी।
  • उसने 'महाराजाधिराज', 'परमेश्वर' और 'परभट्टारक' जैसी उपाधियाँ धारण की थीं।
  • 'खलीमपुर' ताम्रपत्र से ज्ञात होता है कि, उसने कन्नौज में एक दरबार किया था, जिसमें भोज (बरार), मत्स्य (जयपुर), मद्र (पंजाब), कुरु (थानेश्वर), यदु (मथुरा या द्वारका), यवन (सिन्ध का अरब शासक), अवन्ति (मालवा), गांधार (उत्तर-पश्चिमी सीमा) तथा कीड़ (कांगड़ा) के शासकों ने भाग लिया था।
  • 11 वीं शताब्दी के कवि 'सोड्ढल' (गुजराती) ने 'उदयसुन्दरी कथा' में 'धर्मपाल' को 'उत्तरापथस्वामिन' कहा है।
  • धर्मपाल प्रतिहार वंशी शासक नागभट्ट द्वितीय से पराजित हुआ था।
  • उसे राष्ट्रकूट नरेश ध्रुव ने भी पराजित किया था।
  • धर्मपाल बौद्ध धर्म का अनुयायी था, तथा इसने 'परमसौगत' की उपाधि धारण की थी।
  • 'नारायणपाल' अभिलेख में उसे उचित कर लगाने वाला अर्थात् सबसे साथ समान व्यवहार करने वाला (समकर) कहा गया है।
  • उसने प्रसिद्ध बौद्ध विद्धान 'हरिभद्र' को संरक्षण दिया था, तथा वह सभी धर्मों का आदर करता था।
  • धर्मपाल ने बोधगया में चतुर्भुज महादेव मंदिर की स्थापना की थी, उसका मंत्री गर्ग एक ब्राह्मण था।
  • उसके शासन काल में प्रसिद्ध यात्री सुलेमान आया था, जिसने धर्मपाल को 'रुद्रमा' कहा था।
  • धर्मपाल द्वारा बहुत से बिहार एवं मठों का निर्माण करवाया गया था।
  • उसने प्रसिद्ध विक्रमशिला विश्वविद्यालय और नालन्दा विश्वविद्यालय की स्थापना 'पाथरघाट भागलपुर' (बिहार) में की थी।
  • धर्मपाल ने नालंदा विश्वविद्यालय के ख़र्च के लिए 200 गाँवों को दान में दिया था।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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