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बिजोलिया | '''बिजोलिया''' क़स्बा [[राजस्थान]] के [[मेवाड़]] में [[भीलवाड़ा ज़िला|भीलवाड़ा ज़िले]] में [[बूँदी]] और [[भीलवाड़ा]] के लगभग मध्य में स्थित है। इसे उपरमाल, [[संस्कृत]] में उत्तम शिखर भी सम्बोधित किया जाता रहा है। '''[[कर्नल टॉड]]''' के अनुसार बिजोलिया का शुद्ध नाम '''विजयावल्ली''' था। कई शिलालेखों में इसे अहेच्छपुर और मोरझरी भी लिखा गया है। | ||
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बिजोलिया में स्थित प्राचीन पार्श्वनाथ मन्दिर की उत्तरी दीवार के पास एक चट्टान पर विक्रम सम्वत् 1226 [[फाल्गुन]] कृष्णा तृतीया ([[5 फ़रवरी]], 1170) का एक लेख उत्कीर्ण है। यह लेख बिजोलिया शिलालेख कहलाता है। लेख की पुष्पिका में इसके रचयिता का नाम गुणभद्र, लेखक कायस्थ केशव, खोदने वाले का नाम आदि लिखा हुआ है। इससे एक बात स्पष्ट होती है कि 12वीं शती तक कायस्थ जाति विशेष नहीं होकर लेखक की पदवी होती थी। | {{tocright}} | ||
बिजोलिया में स्थित प्राचीन पार्श्वनाथ मन्दिर की उत्तरी दीवार के पास एक चट्टान पर [[विक्रम सम्वत्]] 1226 [[फाल्गुन]] कृष्णा तृतीया ([[5 फ़रवरी]], 1170) का एक लेख उत्कीर्ण है। यह लेख बिजोलिया शिलालेख कहलाता है। लेख की पुष्पिका में इसके रचयिता का नाम गुणभद्र, लेखक कायस्थ केशव, खोदने वाले का नाम आदि लिखा हुआ है। इससे एक बात स्पष्ट होती है कि 12वीं शती तक कायस्थ जाति विशेष नहीं होकर लेखक की पदवी होती थी। | |||
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बिजोलिया में उपलब्ध लेख [[संस्कृत भाषा]] में है। इसमें 13 पद्य हैं। इसमें मन्दिर निर्माण की जानकारी के साथ-साथ सांभर और [[अजमेर]] के [[चौहान वंश]] के शासकों की उपलब्धियों का भी प्राचीन उल्लेख किया गया है। इस लेख की मुख्य विशेषता यह है कि इसमें चौहानों के लिए '''विप्रः श्रीवत्सगोत्रेभूत''' अंकन हुआ है, जिसके आधार पर डॉ. दशरथ शर्मा ने चौहानों को ब्राह्मण वंश की संतान सिद्ध किया है। कायम ख़ाँ रासो तथा [[चन्द्रावती]] के लेख भी चौहानों को ब्राह्मण वंशीय लिखते हैं। डॉ.गोपीनाथ शर्मा भी इसमें अपनी सहमति व्यक्त करते हैं। इस लेख से हमें 12वीं शती के राजस्थान के जन-जीवन, धार्मिक व्यवस्था, भौगोलिक और राजनीतिक स्थिति का अध्ययन करने में बहुत सहायता मिलती है। | बिजोलिया में उपलब्ध लेख [[संस्कृत भाषा]] में है। इसमें 13 पद्य हैं। इसमें मन्दिर निर्माण की जानकारी के साथ-साथ सांभर और [[अजमेर]] के [[चौहान वंश]] के शासकों की उपलब्धियों का भी प्राचीन उल्लेख किया गया है। इस लेख की मुख्य विशेषता यह है कि इसमें चौहानों के लिए '''विप्रः श्रीवत्सगोत्रेभूत''' अंकन हुआ है, जिसके आधार पर डॉ. दशरथ शर्मा ने चौहानों को ब्राह्मण वंश की संतान सिद्ध किया है। कायम ख़ाँ रासो तथा [[चन्द्रावती]] के लेख भी चौहानों को ब्राह्मण वंशीय लिखते हैं। डॉ. गोपीनाथ शर्मा भी इसमें अपनी सहमति व्यक्त करते हैं। इस लेख से हमें 12वीं शती के राजस्थान के जन-जीवन, धार्मिक व्यवस्था, भौगोलिक और राजनीतिक स्थिति का अध्ययन करने में बहुत सहायता मिलती है। | ||
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बिजोलिया 19-20वीं शताब्दी में भी चर्चित रहा। इसका प्रमुख कारण यहाँ का किसान आन्दोलन था। बिजोलिया का किसान आन्दोलन [[भारत]]-भर में प्रसिद्ध रहा जो | {{main|किसान आन्दोलन}} | ||
बिजोलिया 19-20वीं शताब्दी में भी चर्चित रहा। इसका प्रमुख कारण यहाँ का '[[बिजोलिया किसान आन्दोलन]]' था। बिजोलिया का किसान आन्दोलन [[भारत]]-भर में प्रसिद्ध रहा जो [[विजय सिंह पथिक]] के नेतृत्व में चला। बिजोलिया आन्दोलन सन् 1847 से प्रारम्भ होकर क़रीब अर्द्धशताब्दी तक चलता रहा। जिस प्रकार इस आन्दोलन में किसानों ने त्याग और बलिदान की भावना प्रस्तुत की, इसके उदाहरण अपवादस्वरूप ही प्राप्त हैं। किसानों ने जिस प्रकार निरंकुश नौकरशाही एवं स्वेच्छाचारी सामंतों का संगठित होकर मुक़ाबला किया वह इतिहास बन गया। | |||
पंचायतों के माध्यम से समानांतर सरकार स्थापित कर लेना एवं उसका सफलतापूर्वक संचालन करना अपने आपमें आज भी इतिहास की अनोखी व सुप्रसिद्ध घटना प्रतीत होती है। इस आन्दोलन के प्रथम भाग का नेतृत्व पूर्णरूप से स्थानीय था, दूसरे भाग में नेतृत्व का सूत्र विजय सिंह पथिक के हाथ में था और तीसरें भाग में राष्ट्रीय नेताओं के निर्देशन में आन्दोलन संचालित हो रहा था। किसानों की माँगों को लेकर [[1922]] में समझौता हो गया परंतु इस समझौते को क्रियांवित नहीं किया जा सका। इसीलिए बिजोलिया किसान आन्दोलन ने तृतीय चरण में प्रवेश किया। निस्सन्देह बिजोलिया किसान आन्दोलन ने राजस्थान ही नहीं, भारत के अन्य किसान आन्दोलनों को प्रभावित किया। | |||
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14:10, 6 अप्रैल 2015 के समय का अवतरण
बिजोलिया क़स्बा राजस्थान के मेवाड़ में भीलवाड़ा ज़िले में बूँदी और भीलवाड़ा के लगभग मध्य में स्थित है। इसे उपरमाल, संस्कृत में उत्तम शिखर भी सम्बोधित किया जाता रहा है। कर्नल टॉड के अनुसार बिजोलिया का शुद्ध नाम विजयावल्ली था। कई शिलालेखों में इसे अहेच्छपुर और मोरझरी भी लिखा गया है।
इतिहास
बिजोलिया में स्थित प्राचीन पार्श्वनाथ मन्दिर की उत्तरी दीवार के पास एक चट्टान पर विक्रम सम्वत् 1226 फाल्गुन कृष्णा तृतीया (5 फ़रवरी, 1170) का एक लेख उत्कीर्ण है। यह लेख बिजोलिया शिलालेख कहलाता है। लेख की पुष्पिका में इसके रचयिता का नाम गुणभद्र, लेखक कायस्थ केशव, खोदने वाले का नाम आदि लिखा हुआ है। इससे एक बात स्पष्ट होती है कि 12वीं शती तक कायस्थ जाति विशेष नहीं होकर लेखक की पदवी होती थी।
प्राचीन लेख
बिजोलिया में उपलब्ध लेख संस्कृत भाषा में है। इसमें 13 पद्य हैं। इसमें मन्दिर निर्माण की जानकारी के साथ-साथ सांभर और अजमेर के चौहान वंश के शासकों की उपलब्धियों का भी प्राचीन उल्लेख किया गया है। इस लेख की मुख्य विशेषता यह है कि इसमें चौहानों के लिए विप्रः श्रीवत्सगोत्रेभूत अंकन हुआ है, जिसके आधार पर डॉ. दशरथ शर्मा ने चौहानों को ब्राह्मण वंश की संतान सिद्ध किया है। कायम ख़ाँ रासो तथा चन्द्रावती के लेख भी चौहानों को ब्राह्मण वंशीय लिखते हैं। डॉ. गोपीनाथ शर्मा भी इसमें अपनी सहमति व्यक्त करते हैं। इस लेख से हमें 12वीं शती के राजस्थान के जन-जीवन, धार्मिक व्यवस्था, भौगोलिक और राजनीतिक स्थिति का अध्ययन करने में बहुत सहायता मिलती है।
किसान आन्दोलन
बिजोलिया 19-20वीं शताब्दी में भी चर्चित रहा। इसका प्रमुख कारण यहाँ का 'बिजोलिया किसान आन्दोलन' था। बिजोलिया का किसान आन्दोलन भारत-भर में प्रसिद्ध रहा जो विजय सिंह पथिक के नेतृत्व में चला। बिजोलिया आन्दोलन सन् 1847 से प्रारम्भ होकर क़रीब अर्द्धशताब्दी तक चलता रहा। जिस प्रकार इस आन्दोलन में किसानों ने त्याग और बलिदान की भावना प्रस्तुत की, इसके उदाहरण अपवादस्वरूप ही प्राप्त हैं। किसानों ने जिस प्रकार निरंकुश नौकरशाही एवं स्वेच्छाचारी सामंतों का संगठित होकर मुक़ाबला किया वह इतिहास बन गया।
पंचायतों के माध्यम से समानांतर सरकार स्थापित कर लेना एवं उसका सफलतापूर्वक संचालन करना अपने आपमें आज भी इतिहास की अनोखी व सुप्रसिद्ध घटना प्रतीत होती है। इस आन्दोलन के प्रथम भाग का नेतृत्व पूर्णरूप से स्थानीय था, दूसरे भाग में नेतृत्व का सूत्र विजय सिंह पथिक के हाथ में था और तीसरें भाग में राष्ट्रीय नेताओं के निर्देशन में आन्दोलन संचालित हो रहा था। किसानों की माँगों को लेकर 1922 में समझौता हो गया परंतु इस समझौते को क्रियांवित नहीं किया जा सका। इसीलिए बिजोलिया किसान आन्दोलन ने तृतीय चरण में प्रवेश किया। निस्सन्देह बिजोलिया किसान आन्दोलन ने राजस्थान ही नहीं, भारत के अन्य किसान आन्दोलनों को प्रभावित किया।
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